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“हम सबमें कोई ना कोई डिसेबिलिटी है, फ़र्क सिर्फ़ इतना है कि हमारी नज़र आती है, औरों की नज़र नहीं आती”

विकेंगुनु फ़ातिमा केरा का पता छोटा सा है- लोकल ग्राउंड के क़रीब , खुज़ामा। नागालैंड के कोहिमा के लगभग पाँच हज़ार की आबादी वाले एक गाँव में कई लोग उन्हें दिव्यांगों के अधिकारों के लिए लड़ने वाली कार्यकर्ता के तौर पर जानते हैं। लेकिन देशभर में बहुत कम ही लोग हैं जो उनकी असली कहानी से वाक़िफ़ हैं।

अपने माँ-बाप के 10 बच्चों में से एक विकेंगुनु सिर्फ़ 18 महीने की थीं, जब उन्हें पोलियो हो गया। इस बीमारी ने उनके पैरों को ऐसा जकड़ा कि वो चलने फिरने के लायक़ भी नहीं बचीं। अपने परिवार की मदद से उन्होंने 1998 में खुज़ामा से हाई स्कूल किया। लेकिन उसके बाद कॉलेज के दिनों में उन्हे और भी दिक़्क़तों का सामना करना पड़ा- जैसे कि, (अगर छोटा सा उदाहरण दें तो), सेंट जोज़फ़ कॉलेज की बस पकड़ना ही अपने आप में एक चुनौती थी। वो कहती हैं “कभी-कभी मैं बहुत दुखी और निराश हो जाया करती थी”।

लेकिन 2006 में B.A. की पढ़ाई पूरी होने से पहले ही उन्होंने जखामा में अपने भतीजे-भतीजी के साथ रहते हुए अपने पुराने कॉलेज में बतौर असिस्टेंट लाइब्रेरियन काम करना शुरू कर दिया। 2007 में, विकेंगुनु के पिता की ‘स्ट्रोक’ से मृत्यु हो गई। जिसके बाद विकेंगुनु ने काम के साथ-साथ इंदिरा गांधी नैशनल ओपन यूनिवर्सिटी से M.A. भी पूरा किया। लेकिन माँ के साथ रहने के लिए उन्होंने 2014 में अपनी नौकरी छोड़ दी। उनके परिवार ने उनके फ़ैसले में उनका साथ दिया। हालाँकि समाज ने उनकी काफ़ी आलोचना की। लोग पूछा करते थे, “दिव्यांग होते हुए तुम्हें एक नई नौकरी कैसे मिलेगी?” मगर लोगों के इसी संदेह ने विकेंगुनु को उन्हें ग़लत साबित करने के लिए प्रेरित किया।

वो कहती हैं "अपनी डिसेबिलिटी को स्वीकार करने के बाद साल 2014 मेरे जीवन में एक अहम मोड़ लेकर आया।" विकेंगुनु ने खुज़ामा में किराए पर एक घर लिया। M.A. के बाद शौक़िया तौर पर उन्होंने जो सिलाई सीखी थी, वही सिलाई अब उनके नए पेशे की बुनियाद बन गई। इलेक्ट्रिक सिलाई मशीन ख़रीदने के साथ सिलाई के कोर्स में सर्टिफ़िकेट हासिल करने के बाद उनका ये काम बेहद तेज़ी से आगे बढ़ा। 2018 में विकेंगुनु दीमापुर शिफ़्ट हो गईं जहाँ वो ‘प्रॉडिगल्स होम रिहैबिलिटेशन सेंटर’ में बतौर इंस्ट्रक्टर काम करने लगीं। लेकिन वो अपने खुज़ामा वाले घर का किराया देती रहीं, जहाँ वो जनवरी 2021 में दोबारा लौट आईं।

इसके बाद विकेंगुनु ने अपने क्राफ़्ट के काम और समाज सेवा के लिए अपने राज्य का प्रतिष्ठित‘MykiFest Award 2020-21’ जीता। 2014 से ही वो कई लीडरशिप और ट्रेनिंग प्रोग्राम में हिस्सा लेती आ रही हैं। अपनी सक्रियता की वजह से डिसेबिलिटी से जुझ रहे लोगों के हक़ की लड़ाई लड़ने वाली एक मज़बूत योद्धा बन गई हैं। साल 2018 से ही नागालैंड स्टेट डिसेबिलिटी फ़ोरम की कोषाध्यक्ष विकेंगनु का कहना है कि, “जब मैं डिसेबिलिटी से जूझ रहे दूसरे लोगों की परेशानियों को सुलझाती हूँ, तो मुझे अपने जीवन की निराशाओं से निपटने में मदद मिलती है।”

अपने ख़ाली समय में विकेंगुनु को बाग़बानी करना पसन्द है। इसके अलावा उनके परिवार की एक परम्परा है जिसका वो ख़ूब आनन्द लेती हैं। "हर रात, जब यहाँ मौसम ठंडा हो जाता है, हम आग जलाते हैं, फिर पूरा परिवार इकट्ठा होता है और हम सब चैन से एक दूसरे से बातें करते हैं, हंसते हैं, मुस्कुराते हैं...

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विक्की रॉय