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"मुझे बॉलीवुड गाने बहुत पसंद हैं और मैं दो साल से कीबोर्ड का अभ्यास कर रहा हूँ"

जहाँ कोविड-19 महामारी ने दुनिया को अत्यधिक पीड़ा दी, कुछ लोगों के लिये इसका अप्रत्याशित लाभ हुआ। उदाहरण के लिये, त्रिपुरा में अगरतला के तुषार कांति और रत्नाबाली रे सेनगुप्ता ने लॉकडाउन अवधि का उपयोग अपने ऑटिस्टिक बेटे त्रिबिद्या को पेंट करना और सिंथेसाइज़र बजाना सिखाने के लिये किया।
 
बहुत पहले जब उनका बेटा छोटा था, सेनगुप्ता ने देखा कि वो अपने भाई-बहनों से अलग था। वो बोल नहीं सकता था, लेकिन गा सकता था। वो केवल कुछ शब्द कह पाता था लेकिन पूरा वाक्य नहीं बोलता था। अगरतला में डॉक्टरों को उसके साथ कुछ भी गड़बड़ नहीं लगी तो वे उसे कोलकाता ले गये, जहाँ एक डॉक्टर ने उन्हें ADHD (अटेंशन डेफिसिट/हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर) का डायगनोस किया। डॉक्टर की सिफारिश पर, उन्होंने उसे एक बड़े स्कूल में दाखिला दिलाया, लेकिन उसके "अशांतिकारक" व्यवहार के कारण एक महीने के बाद उसे हटाने के लिये मज़बूर होना पड़ा। ऐसा ही तब हुआ जब उन्होंने उसे नए शुरू हुये SSRVM स्कूल में दाखिला दिलाया। अगरतला के इन मुख्यधारा के स्कूलों में से किसी में भी शिक्षक त्रिबिद्या से जुड़ने के लिये तैयार या प्रशिक्षित नहीं थे।
 
फिर सेनगुप्ता अपने साढ़े तीन साल के बेटे को बेंगलुरु के निम्हांस (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेस) ले गये, जहाँ पता चला कि उसे ऑटिज्म है। वहाँ के डॉक्टरों ने एक 'विशेष स्कूल' का सुझाव दिया लेकिन त्रिपुरा में कोई था नहीं। इसलिए जब त्रिबिद्या पाँच साल के हुये, तो उनका दाखिला कोलकाता के एक विशेष स्कूल में कराया गया जहाँ उन्होंने वहाँ शिक्षकों के साथ बैठना और काम करना सीखा। लेकिन यह एक दीर्घकालिक समाधान नहीं हो सकता था क्योंकि परिवार त्रिपुरा में स्थित था। स्कूल ने सुझाव दिया कि माता-पिता स्वयं अपने गृहनगर में एक विशेष स्कूल स्थापित करें।
 
अपने बेटे के डायगनोस के शुरुआती आघात के बाद, दंपति ने स्वीकार किया कि उन्हें अपनी स्थिति से निपटना होगा। त्रिबिद्या की बेहतर देखभाल के लिये रत्नाबाली ने पेशेवर प्रशिक्षण लिया। भले ही वो अब 26 वर्ष का हो गया है, फिर भी वो उसकी बोलने की कठिनाइयों में मदद करने के लिये पेशेवरों से सहायता प्राप्त करती हैं। कोई हैरानी के बात नहीं है, परिवार को अपने आसपास के लोगों से तानों का सामना करना पड़ता है और हालाँकि वे इसके आदी हो चुके हैं, फिर भी हर बार यह दुख देता है। "ये तो पागल है" किसी ने एक बार कहा था।
 
दंपति ने, विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के कुछ अन्य माता-पिता के साथ, अगरतला में विद्या वेलफेयर सोसाइटी की स्थापना की और 2004 में एक स्कूल, विद्या की शुरुआत की। विद्या, जिसमें तीन विशेष शिक्षक हैं, समग्र विकास पर ध्यान केंद्रित करता है और बच्चों को नृत्य, संगीत, कला और शिल्प के माध्यम से जीवन कौशल में प्रशिक्षित करता है। विद्या वेलफेयर सोसाइटी को माता-पिता और शुभचिंतकों के दान से समर्थन प्राप्त होता है। सरकारी सहायता प्राप्त करने के प्रयास अब तक असफल रहे हैं। वर्तमान में, स्कूल में 22 छात्रों में से अधिकांश लड़के हैं। 18 वर्ष की आयु तक के बच्चों को स्कूली शिक्षा मिलती है लेकिन 18 वर्ष से अधिक आयु वालों को व्यावसायिक पाठ्यक्रम पढ़ाया जाता है।
 
रत्नाबाली अब महिला कॉलेज के इतिहास विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। उन्होंने वहाँ तब पढ़ाना शुरू किया जब त्रिबिद्या सिर्फ छह महीने का था और वे कहती हैं कि उनके प्रिंसिपल सहित उनके साथी बहुत सहयोगी हैं। यदि उन्हें समय की आवश्यकता होती है, तो वो उन्हें मिला जाता है, हालाँकि वे यह स्पष्ट करती हैं कि वे अपनी परिस्थितियों का लाभ नहीं उठाना चाहती। वे दोपहर 3 बजे कॉलेज से लौटती हैं। और फिर वेलफेयर सोसाइटी पास जाती है, जहाँ वे शाम 5 बजे तक रहती हैं। तुषार कांति, जो एक बैंक अधिकारी के रूप में सेवानिवृत्त हुये, अब इसके सचिव के रूप में सोसाइटी के लिये पूर्णकालिक काम करते हैं। त्रिबिद्या की स्थिति ने उनकी मौसी, कथकली को कोलकाता में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य संस्थान में एक विशेष शिक्षा पाठ्यक्रम करने के लिये प्रेरित किया; वे अब इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ सेरेब्रल पाल्सी में काम करती हैं।
 
त्रिबिद्या माता-पिता की देखरेख में फले-फूले हैं और उन्हें बाहर जाना और यात्रा करना अच्छा लगता है। उन्हें संगीत सुनना पसंद है और बॉलीवुड के गानों से मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। "मैं कोई ऐसा गीत गाऊँ और आरज़ू जगाऊँ, अगर तुम कहो" उनका पसंदीदा गाना है। खाने के शौकीन, उनका स्टैंडर्ड काफी ऊँचा है और उनके पसंदीदा व्यंजन आलू भाजा (तले हुये आलू) और अंडा करी हैं। उनकी दिनचर्या सीधी-सादी है: सुबह करीब 7.30 बजे उठना, नाश्ता करना, पिता के साथ पढ़ना, नहाना और पिता के साथ स्कूल जाना। वे लिखने में सक्षम हैं और अब टाइम देखना सीख रहे हैं। दोनों दोपहर के भोजन के लिये घर लौटते हैं जिसके बाद त्रिबिद्या एक छोटी सी झपकी लेते हैं। शाम उनके सिंथेसाइज़र पर अभ्यास का समय होता है। रत्नाबाली ने उन्हें उपकरण और स्केचिंग और पेंटिंग से परिचित कराया क्योंकि उन्हें लगा कि वे हाथ-आंख के समन्वय के लिये अच्छे व्यायाम होंगे।
 
हालाँकि उनके माता-पिता ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया है, एक चीज जिसका उन्हें सामना करना पड़ता है वो है उनकी आक्रामकता, जब वो गुस्से में होते हैं। कभी-कभी ये शारीरिक हो जाता है। यह रत्नाबाली के दिल को चीरता है, खासकर जब उम्र के साथ उनका गुस्सा बढ़ गया है। उनके माता-पिता उनके भविष्य को लेकर चिंतित हैं और एक ट्रस्ट या आश्रय गृह स्थापित करना चाहते हैं जहाँ उनके जाने के बाद उनकी देखभाल हो सकेगी।
 
रत्नाबाली कहती हैं, "हर कोई, चाहे ऑटिस्टिक हो या नहीं, अगर उन्हें स्वीकार किया जाता है, तो जीवन आसान हो जाएगा," और ऑटिज्म पर अधिक जागरूकता होनी चाहिये।

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विक्की रॉय