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"मेरा कद मेरे जीवन में कभी भी कोई समस्या नहीं बना"

जब 1982 में तबा कलाकर का जन्म कृष्णापुर गाँव, लखीमपुर जिला, असम में हुआ था, तो उनके चार बड़े भाई-बहन थे और अंततः उनसे चार छोटे बच्चे भी होंगे, जिससे वो बखूबी और वास्तव में छह लड़कियों और तीन लड़कों में बीच वाली संतान थीं। उनके पिता, मोहन सिंगनार, और माँ, कंडूरी सिंगनार, कार्बी जनजाति से संबंधित थे, उनकी कोई औपचारिक स्कूली शिक्षा नहीं थी। जैसे-जैसे साल बीतते गये, सभी ने देखा कि कलाकर का विकास कुछ धीमा था क्योंकि वो तीन साल की होने पर भी नहीं चल रही थीं। फिर उनके एक बड़े भाई ने उन्हें छड़ी पकड़कर चलना सिखाया। उनके सभी भाई-बहन औसत ऊंचाई तक बढ़े लेकिन कलाकर नहीं, क्योंकि वो बौनेपन से प्रभावित थीं। कुछ वर्षों में उन्होंने छड़ी को त्याग दिया था और आज तक बिना सहायक उपकरणों के चल रही हैं।
 
हमने कलाकर से हिंदी में बात की, जो वो बोल लेती हैं, लेकिन वे केवल असमिया और न्यीशी जनजाति द्वारा बोली जाने वाली भाषा में धाराप्रवाह हैं, जिससे उनके पति संबंधित हैं। उनके साथ हमारी बातचीत में हमें पता चला कि कक्षा 1 के बाद उन्होंने कुछ वर्षों के लिए स्कूल जाना बंद कर दिया था, शायद चलने फिरने की उनकी शुरुआती कठिनाइयों के कारण। तब उनके पिता ने उन्हें उनके छोटे भाई-बहनों के साथ स्कूल जाने के लिए प्रोत्साहित किया। इस तरह उन्होंने एक स्थानीय असमिया स्कूल में कक्षा 6 तक पढ़ाई की।
 
मोहन सिंगनार की मृत्यु हो गई, और कंड़ूरी ने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए जीविका चलायी। कलाकर ने हमें बताया कि उनकी माँ ने "पहाड़ियों पर मिली कुछ खाली ज़मीन" पर "पहाड़ी खेती" (छत पर खेती) करने के अलावा अंडे बेचने के लिये मुर्गियाँ पालीं। उनका आशय यह प्रतीत होता था कि जनजाति का कोई भी व्यक्ति उस पहाड़ी क्षेत्र में पड़ी भूमि के किसी भी टुकड़े पर खेती करना शुरू कर सकता था।
 
कलाकर बहुत छोटी थीं, जब अरुणाचल प्रदेश की न्यीशी जनजाति से ताल्लुक रखने वाले दिहाड़ी मज़दूर तबा रतन ने उनका हाथ मांगा। वे बहुत उत्सुक नहीं थी क्योंकि वे औसत वयस्क कद के थे और उनके माता-पिता और भाई-बहन जैसे कोई जीवित संबंधी नहीं थे। उन्हें इस बात की भी चिंता थी कि उनके कद के अंतर से खाना पकाने और घर के रखरखाव जैसी व्यावहारिक कठिनाइयाँ होंगी। उनका परिवार भी इस मिलाप के खिलाफ था क्योंकि वे एक अलग जनजाति के थे। फिर भी, रतन जीत गये और उन्हें अपने साथ ले गये।
 
दंपति ने बिना किसी औपचारिक विवाह समारोह के, तापिक कॉलोनी में एक साथ रहना शुरू कर दिया जो असम-अरुणाचल सीमा पर पापुम पारे जिले के बांदरदेवा में, लगभग 200 लोगों का एक गाँव है। एक साल बाद, कलाकर ने एक बेटी को जन्म दिया, जो मृत पैदा हुई थी ("वो  उल्टी पैदा हुयी थी।")। हालाँकि, लगभग दो साल बाद, उनको एक बेटा पैदा हुआ। तबा राहुल, जो 21 वर्ष के हैं, ने अपनी स्कूली शिक्षा सेंट फ्रांसिस असीसी स्कूल से पूरी की और सरकारी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, दोईमुख में 12 वीं कक्षा तक पहुँचे हैं। उन्होंने कला को अपनी प्रमुख धारा के रूप में चुना है। इसमें अर्थशास्त्र, इतिहास, भूगोल, अंग्रेजी और राजनीति विज्ञान के विषय शामिल हैं।
 
रतन के साथ कलाकर का जीवन नहीं चला क्योंकि उन्होंने उसे छोड़ दिया और पास की एक अन्य महिला के साथ हो लिये। बाद के इस मिलन से चार लड़के और एक लड़की पैदा हुई। वे कभी-कभार कलाकर से मिलने जाते हैं लेकिन आर्थिक रूप से उनका समर्थन नहीं करते हैं। कलाकर 2013 से अपने क्षेत्र में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) में काम कर रही हैं। यह उनकी झोपड़ी से पैदल दूरी पर है, जो न्यीशी जनजाति की पारंपरिक शैली में बांस से बनी है। उनके काम में प्रतिदिन पीएचसी परिसर की सफाई, झाडू लगाना और पोछा लगाना शामिल है। वे कहती हैं कि जब उन्हें ऊंचाई पर किसी वस्तु तक पहुँचना होता है, तो नर्सें उनकी मदद करती हैं। मंगलवार को जब पीएचसी बच्चों का टीकाकरण करवाती है तो उन्हें पूरे दिन वहीं रहना पड़ता है क्योंकि उन्हें बच्चों के बाद साफ-सफाई करनी होती है। उन्हें वहाँ टीकाकरण के लिए आने वाले प्रत्येक बच्चे की फोटो भी लेनी होती है और दिन के अंत में प्रभारी चिकित्सक को देनी होती है। उन्हें 10,000 रुपये मासिक वेतन मिलता है।
 
कलाकर को अक्षमता से निपटने या भविष्य के लिए उनकी आशाओं के बारे में सामान्य प्रश्न पूछने से कोई महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया नहीं मिलती है। वे कहती हैं कि बौनेपन के कारण उन्हें जीवन में कोई परेशानी नहीं हुई। वे काम करती हैं, वे स्वतंत्र हैं, वे अपने बेटे का समर्थन करती हैं, और उनके दिमाग में कोई बड़ी योजना नहीं है। वे स्वीकार करती है कि "सरकार से कुछ मदद मिलेगी तो उन्हें कोई ऐतराज नहीं होगा"।


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विक्की रॉय