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"समस्या को लेकर बैठे मत रहो। इसके बारे में कुछ करो और इसे आपने लिए कारगर बनाओ"

बेंगलुरु के सूर्यकांत गिरि गिरि (36) जब धनलक्ष्मी (30) के साथ अपनी अरेंज मैरिज को याद करते हैं तो उनका  मुस्कराना बंद नहीं होता। धनलक्ष्मी ने उनके अंधेपन के बावजूद उनके लिए तीन अन्य 'सक्षम' लोगों के प्रस्तावों को ना कर दिया, क्योंकि वे उनके व्यक्तित्व से मंत्रमुग्ध थी।

विंध्य ई-इन्फोमीडिया के लिए काम करने वाले, आज आप जिस आत्मविश्वास से भरे हुए सूर्यकांत को देख रहे हैं, वह उस शर्मीले और बिना दोस्तों वाले बच्चे से काफी अलग है। कोडंबल गाँव, बीदर में एक किसान परिवार में अंधेपन के साथ पैदा हुए, उन्हें उनके बड़े भाई चंद्रकांत और छोटी बहन संतोषी की तरह उनके पिता ने स्वीकार नहीं किया था। हालाँकि, उनके दादा बाकप्पा, एक सेवानिवृत्त पुलिस उप-निरीक्षक, और दादी सुशीला बाई ने उन्हें अपनी छत्रछाया में ले लिया था। वे कहते हैं, "मेरे दादा-दादी और माँ ने मुझे गरिमापूर्ण जीवन जीने लायक बनाने में मदद करने के लिए हर संभव प्रयास किया" ।

परिवार ब्लाइंड स्कूल होते हैं और कहाँ होते हैं इसके बारे में अनजान था और सूर्यकांत 10 वर्ष के थे, जब बकप्पा ने आखिरकार उन्हें बेलगाम में माहेश्वरी स्कूल फॉर द ब्लाइंड में दाखिला दिलाया। स्कूली शिक्षा मुफ्त थी, वे हॉस्टल में रहे, प्रबंधन सहानुभूतिपूर्ण और बहुत सहायक था, और उनके सामने एक पूरी दुनिया आ गई। वे याद करते हैं कि कैसे वे पढ़ने और लिखने में आलसी थे लेकिन लोगों से बात करना पसंद करते थे। वे   कक्षा में नामी जोकर थे जिसे "कॉमेडी करना और लोगों को हंसाना पसंद था"!

2002 में 10वीं कक्षा के बाद उन्होंने मैसूर में अलग क्षमताओं वालों के लिए जेएसएस पॉलिटेक्निक में प्रवेश लिया और दृष्टिबाधित के लिए कंप्यूटर एप्लीकेशन में अपना तीन साल का डिप्लोमा पूरा किया। एनजीओ इनेबल इंडिया में उन्होंने मेडिकल ट्रांसक्रिप्शन में प्रशिक्षण प्राप्त किया। अभी भी वे अपने इनेबल इंडिया के प्रशिक्षकों के संपर्क में हैं और वे विशेष रूप से 'बाबू-सर' को याद करते हैं जिन्होंने उन्हें प्रोत्साहित किया और उन्हें आत्मनिर्मभार होने का महत्व दिखाया। वे कहते हैं, आज वे जो आत्मविश्वास रखते हैं, वह बाबू-सर के कारण है।

सूर्यकांत के लिए नौकरी ढूँढना आसान नहीं था। एक समय था जब, अपना कोर्स पूरा करने के बाद, वे कंपनियों को अपना बायोडेटा भेजते थे और उन जवाबों का इंतज़ार करते रहते थे जो कभी नहीं आते थे। विंध्य ने उन्हें ले लिया। वे एक टेली-कॉलर हैं, ग्राहक सेवा प्रतिनिधि के रूप में काम कर रहे हैं। उनकी पत्नी उन्हें ऑफिस छोड़ती हैं और लाती हैं। आज उनकी और धनलक्ष्मी, जिन्हें वे अपनी "ताकत का स्तंभ" कहते हैं, की एक चार साल की बेटी है - आध्या। उन्हें अपनी बेटी के जन्म से पहले के पुराने दिन याद हैं जब उनकी पत्नी के पास नौकरी थी और वे हर दिन दोपहर के भोजन पर ज़रूर मिलते थे। वे अभी भी एक-दूसरे के लिए समय निकालते हैं: हालाँकि धनलक्ष्मी एक पूर्णकालिक गृहिणी हैं, जो उनकी और उनकी बेटी की देखभाल करती हैं, वे महीने में कम से कम एक बार बाहर का खाना खाते हैं। रोटी, इडली और पुलाव उनके पसंदीदा भोजन हैं और जब मिठाई की बात आती है, तो धारवाड़ पेड़ा और कलाकंद उनके मुँह में पानी ले आता है।

जब वे एक परिवार के रूप में बाहर घूमने जाते हैं तो वे कर्नाटक के भीतर के स्थानों पर छोटी छुट्टियां और तीर्थ यात्रा करना पसंद करते हैं। सूर्यकांत का कहना है कि पहली बार में आध्या के सामने उसके पिता के रूप में जाना मुश्किल था। उसे उनके अंधेपन के साथ तालमेल बिठाने में समय लगा। अब वह उनकी ज़रूरतों के प्रति बहुत संवेदनशील है और उनका ख्याल रखती है।


संगीत उनका संबल है और उन्हें भक्ति और लोक गीत सुनने में आनंद आता है। हालाँकि वे अपने जीवन से संतुष्ट हैं, वे चाहते हैं कि सिस्टम विकलांग व्यक्तियों के लिए अधिक अनुकूल हो। अपने यात्रा पास का नवीनीकरण करते समय वे विशेष रूप से निराश हो जाते हैं। हर बार वे उनसे नया मेडिकल सर्टिफिकेट मांगते, जिससे बस या रेल पास जारी करने में देरी होती।

सूर्यकांत साधारण ज़रूरतों वाले एक साधारण व्यक्ति हैं और चुनौतियों का सामना करते हुए हमेशा मुस्कुराते रहते हैं। वे नए नवाचारों के लिए हमेशा प्रशंसा करते हैं जो दृष्टिबाधित लोगों के लिए बेहतर पहुँच अनुभव प्रदान करते हैं, जैसे कि सहायक टेक्नालजी कंपनी एनविज़न द्वारा बनाया गया एआई-संचालित 'स्मार्ट' चश्मा। लेकिन एक आविष्कार उनकी विश लिस्ट में है: नेत्रहीनों को घर के अंदर वस्तुओं का पता लगाने में मदद करने के लिए एक उपकरण। हमें लगता है कि घरेलू वस्तुओं को नियमित रूप से खोने वाले दृष्टि वाले व्यक्ति भी इसे लेने में पीछे नहीं रहेंगे!

तस्वीरें:

विक्की रॉय