जब बी.एल. मंगल और सावित्री मंगल के घर जुड़वाँ बच्चे पैदा हुए, तो उन्होंने उनके नाम, जैसा कि अनुमान था, सुनील और अनिल रखे। लेकिन वे यह अनुमान नहीं लगा सकते थे कि 15 मिनट छोटे सुनील के साथ क्या होगा। छह महीने की उम्र में, उसे पोलियो की दवाइयाँ दी गईं (शायद गलत तापमान पर रखी गई) जिससे वह पोलियो वायरस से संक्रमित हो गया और दो साल तक बिस्तर पर पड़ा रहा। होम्योपैथिक इलाज़ से उसका ऊपरी शरीर ठीक हो गया, लेकिन घुटने के नीचे के निचले अंगों में ताकत नहीं आ सकी।
मंगल दंपत्ति अपनी किस्मत पर का रोना लेकर बैठे नहीं रहने वाले थे। अनुशासन उनके घर की नींव थी: उनकी पृष्ठभूमि रक्षा विभाग से थी (वे एक ऐसे संगठन में काम करते थे जो विभाग के लिए सामान की आपूर्ति करता था) और सावित्री एक टीचर थीं। सुनील को कभी अपनी विकलांगता के बारे में शिकायत करने का मौका नहीं दिया गया और उसे हमेशा शौक रखने और बाहर घूमने जाने के लिए प्रोत्साहित किया गया। जब वह पाँच साल का था, तब उसकी चाची उसे स्कूल ले जाती और लाती थीं। जब वह लगभग सात साल का हुआ, तब उसे कैलीपर्स लगा दिए गए और वह बैसाखी के सहारे अनिल के साथ स्कूल जाता था। दसवीं कक्षा तक वो अपनी विकलांग ट्राइसाइकिल पर खुद स्कूल जाने लगा था।
सुनील याद करते हैं, "हमारे घर में तीन अखबार आते थे और मैं उन सभी को पढ़ता था।" (53 साल की उम्र में भी उनके घर पर तीन अखबार आते हैं।) "मैं रेडियो भी खूब सुनता था।" उन्होंने कॉलेज में अच्छी पढ़ाई की और 1992 में एम.कॉम की डिग्री हासिल की, जिसमें उन्होंने अपने पसंदीदा विषय, बीमा, में स्वर्ण पदक जीता। उसी साल उन्होंने एक बीमा एजेंट के रूप में अपना कैरियर शुरू किया। उनके दूरदर्शी माता-पिता भी उनके इस चुनाव को लेकर थोड़े चिंतित थे क्योंकि यह एक 'फील्ड जॉब' थी, लेकिन उन्हें मेज़ से बंधे रहकर काम करना पसंद नहीं था।
सविता से शादी के एक साल बाद, 2002 में, सुनील ने प्रतिष्ठित एलआईसी चेयरमैन क्लब की सदस्यता प्राप्त की और मिलियन डॉलर राउंड टेबल, यूएसए के भी गौरवशाली सदस्य बने, जिसने बाद में बीमा क्षेत्र में उत्कृष्ट व्यवसाय के लिए उन्हें आजीवन सदस्य बना दिया। वे 2018 से बीमा एजेंटों को प्रशिक्षण दे रहे हैं और अब एक मुख्य एजेंट हैं, जो आठ सुपरवाइज्ड एजेंटों और चार बैक ऑफिस कर्मचारियों को मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। जब आप उनसे पूछते हैं कि क्या बीमा बेचने वाले ऑनलाइन पोर्टलों ने उनके व्यवसाय को प्रभावित किया है, तो वे जवाब देते हैं कि यह अभी भी फल-फूल रहा है क्योंकि "बीमा में व्यक्तिगत रूप से स्पर्श की आवश्यकता होती है"। उनका बेटा, अमन (23), जो चार्टर्ड अकाउंटेंसी कर रहा है, वह भी अपने पिता के व्यवसाय में मदद करता है। (उनके घर के बाहर लगी नेमप्लेट पर "अमन का किला" लिखा है!)
सुनील याद करते हैं कि कैसे उनके दिवंगत पिता ने उन्हें उद्यमी बनने के लिए प्रेरित करने के साथ-साथ उन्हें "समाज के लिए कुछ करने" की भी याद दिलाई थी। 1998 में उन्होंने विकलांग व्यक्तियों (PwD) के लिए एक नौकरी उन्मुखीकरण कार्यक्रम शुरू किया था, जिसमें उन्हें मार्गदर्शन दिया जाता था और उन्हें नौकरी खोजने में मदद की जाती थी। (अब तक उन्होंने 4000 विकलांगजनों को व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया है।) हालाँकि, उन्होंने यह भी महसूस किया कि कई लोग काम नहीं कर सकते क्योंकि पहुँच एक समस्या थी। इसलिए 2008 में उन्होंने कार्यशालाएं आयोजित करना शुरू किया और विकलांगजनों से बातचीत करके उनकी चुनौतियों को समझा। यह सुगम्यता के बारे में जागरूकता पैदा करने की उनकी यात्रा की शुरुआत थी, चाहे वह दफ़्तर हों, पार्क हों, बसें हों या ऐसी कोई भी अनगिनत जगहें जो विकलांगजनों के दैनिक जीवन में बाधा डालती हैं। उन्होंने देखा कि अगर पहुँच ही नहीं है तो व्यावसायिक प्रशिक्षण देने का कोई मतलब नहीं है। उनका मुख्य लक्ष्य एक समावेशी वातावरण बनाना था।
सुगम्यता के एक उत्साही समर्थक के रूप में, सुनील एक मोटिवेशनल स्पीकर हैं, जिन्होंने सेमिनारों, संस्थानों और टीवी तथा एफएम चैनलों पर 250 से ज़्यादा व्याख्यान दिए हैं। वे कहते हैं, "लोग सोचते हैं कि रैंप बनाना, रेलिंग लगाना या लिफ्ट लगाना ही काफ़ी है।" इसके लिए वे सात प्रमुख कार्य बिंदुओं का हवाला देते हैं: विकलांगजनों के लिए रेलिंग के किनारे सीढ़ियों पर सजावटी गमले न हों; दफ़्तरों में ढली हुई कुर्सियाँ या कैस्टर वाली कुर्सियाँ न हों; विकलांगजनों की बैठकों में कालीन वाले फर्श न हो; फर्श की सतह के विभिन्न स्तरों को दर्शाने के लिए रंग परिवर्तन; विकलांगजनों के लिए होटल के कमरों में नीची खाटें और सख्त गद्दे हों; अलग-अलग ऊँचाई पर सार्वजनिक मूत्रालय हों; सभागारों, थिएटरों और अन्य सभी सार्वजनिक स्थानों पर सुलभ बैठने की व्यवस्था हो।
जब उत्तर प्रदेश सरकार ने स्थानीय कारीगरों को प्रोत्साहित करने के लिए 2018 में अपनी एक ज़िला एक उत्पाद (ओडीओपी) योजना शुरू की, तो सुनील ने विकलांगजनों को आत्मनिर्भर बनाने में इसकी क्षमता देखी। उन्होंने विकलांगजनों के लिए प्रत्येक स्थान पर उपलब्ध व्यवसाय और रोजगार के अवसरों का अध्ययन करने के लिए पूरे उत्तर प्रदेश की यात्रा की और निष्कर्ष निकाला कि ओडीओपी योजना उनके लिए लाभकारी हो सकती है। जून 2022 में वह और उनके सात दोस्त जो विकलांग थे एक अभियान जिसका शीर्षक था "चलो जीते हम" उसके लिए कानपुर से लखनऊ होते हुए लेह-लद्दाख गए और वापस आए। वे जहाँ भी रुके, उन्होंने विकलांगजनों और विकलांगता संगठनों से विकलांगजनों के अधिकारों, सुलभ वातावरण, ओडीओपी योजना और खेलों के माध्यम से आत्मविश्वास बढ़ाने के बारे में बात की। 15 दिनों में उन्होंने 4,400 किलोमीटर की यात्रा की और छह राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों के 40 गैर-सरकारी संगठनों से मुलाकात की।
विकलांगजन सशक्तिकरण के लिए 2020 में उत्तर प्रदेश सरकार का राज्य पुरस्कार जीतने वाले और चुनाव जागरूकता फैलाने के लिए कानपुर के विकलांगजन आइकॉन सुनील ने पेशेवर और सामाजिक कार्यों के लिए 22 देशों की यात्रा की है और 3.5 लाख किलोमीटर की यात्रा की है! इसके बाद वे गोवा में आयोजित होने वाले अंतर्राष्ट्रीय पर्पल फेस्ट के लिए जाने की योजना बना रहे हैं। यह एक ऐतिहासिक वार्षिक आयोजन है जो समावेशिता और सुगम्यता को बढ़ावा देता है। यह आयोजन इस वर्ष 9 से 12 अक्टूबर तक आयोजित किया जाएगा।