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"मैं जहाँ हूँ वहाँ पहुँचने के लिये मुझे खुद को बहुत धकेलना पड़ा है। अब मुझे किसी के सामने खुद को साबित नहीं करना है।"

बेंगलुरु की श्रीलता के.एस. (38) के मुस्कुराने की कई वजहें हैं। बहुराष्ट्रीय निगम (एमएनसी) जहाँ वो प्रोजेक्ट मैनेजमेंट ऑफिसर हैं, वो उन्हें सुलभ ऑफिस वातावरण के लिये सुगम परिवहन प्रदान करती है। वे समावेशी व्हीलचेयर-नृत्य समूह द इनविंसिबल्स का हिस्सा हैं। और उन्हें मिस इंडिया व्हीलचेयर 2015 पेजेंट में मिस ब्यूटीफुल स्माइल नामित किया गया था।

लेकिन जो मुस्कान श्रीलता राहगीरों पर आसानी से बिखेरती हैं, वो उनके जीवन के काफी बड़े हिस्से में नदारद रही। उनका जन्म कर्नाटक के बल्लारी जिले के सिरुगुप्पा में हुआ था। उनके पिता के. सत्यनारायण एक किसान हैं और माता सुशीला एक गृहिणी हैं। श्रीलता कहती हैं, "मैंने अपना बचपन धान के खेतों और चावल की मिलों के बीच बिताया"। एक सुंदर, स्वस्थ बच्ची, जिसने 10 महीने की उम्र में चलना शुरू कर दिया था और जो हर किसी की आँखों का तारा थी, उसे तीन साल की उम्र में पोलियो हो गया। इसने उसके निचले शरीर को गंभीर रूप से प्रभावित किया और उसे घर के अंदर कैद और उसके साथियों और सहपाठियों से वंचित कर दिया।

सिरुगुप्पा में कोई विशेष स्कूल नहीं था और कोई मुख्यधारा का स्कूल उन्हें लेता नहीं था। हालाँकि, सुशीला उसे शिक्षित करने पर तुली हुई थीं और रिश्तेदारों द्वारा उसे ट्यूशन पर "पैसे बर्बाद" न करने की सलाह देने के बावजूद होम ट्यूटरिंग की व्यवस्था की। "शिक्षा तुम्हें स्वतंत्र बनाएगी" एक ऐसा मंत्र था जिसे वो अपनी बेटी के सामने जपते नहीं थकती थीं। कोई ज्यादा लाड़-प्यार नहीं और पढ़ाई से छुटकारा पाने का कोई बहाना नहीं। यदि प्यार बरसाने वाले सत्यनारायण ने कहते "रहने दो", तो सुशीला जवाब देती: "हमारे जाने के बाद वो कैसे रहेगी? वो अपने बड़े भाई के साथ नहीं रह सकती।"

जब वो चौथी कक्षा में थीं तो एक गैर-मान्यता प्राप्त मिडिल स्कूल ने उन्हें एड्मिशन देने के लिये हामी भर दी। तभी बाहरी दुनिया की कड़वी सच्चाई से उनका सामना हुआ। अधिकांश जगहों पर व्हीलचेयर की सुविधा नहीं थी और इसलिये वे चारों (दोनों हाथ और पैरों) से चलती थीं। जब उन्हें सातवीं कक्षा के बाद स्कूल बदलना करना पड़ा तो उनके माता-पिता जहाँ भी गये, वही लाइन सुनाई दी: “सीनियर्स के लिये कक्षाएं पहली मंजिल पर हैं; उन्हें सीढ़ियों पर रेंगना अटपटा लगेगा।” आखिरकार उन्हें एक हाई स्कूल में प्रवेश मिल गया। हालाँकि वे कॉलेज जाने के लिये तरस रही थीं, लेकिन पहुँच में बाधाएँ उनके रास्ते में थीं।

श्रीलता के लिये मुक्त विश्वविद्यालय ही एकमात्र विकल्प था। उन्हों कॉमर्स में पीयूसी पूरा किया। 2004 में वे इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नालजी से फैशन डिज़ाइन में एक वर्षीय डिप्लोमा के लिये बेंगलुरु चली गईं। वो, उनकी माँ और भाई किराए के मकान में रहते थे। उन्होंने कोर्स के अंत में नौकरी की उम्मीद की थी लेकिन निराश हो गई थी। 2006 में एक पड़ोसी ने उन्हें सेल्स कंपनी में भेज दिया, जहाँ उन्होंने 4,500 रुपये के वेतन पर काम किया और सार्वजनिक परिवहन द्वारा आने-जाने में कठिनाई के बावजूद वे वहाँ तीन साल तक साथ रहीं। उन्हें अपनी भयानक मानसून यात्रा याद है: वो बारिश में बस-स्टॉप पर रेंगकर जाती थीं और ड्राइवर से अपने ऑफिस के ठीक बाहर रोकने का अनुरोध करती थीं, लेकिन घर लौटने पर उनके लिये कोई बस नहीं रुकती थी।

श्रीलता ने दूरस्थ शिक्षा (डिसटेंट एडुकेशन) में वापसी की और 2010 में बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में स्नातक की पढ़ाई पूरी की। उसके बाद असफल साक्षात्कारों की एक लड़ी के साथ व्यर्थ नौकरी की तलाश शुरू हुई। 2013 में सेरेब्रल पाल्सी वाला दोस्त उन्हें बेंगलुरु में वार्षिक विकलांगता पर्व - भारत समावेश शिखर सम्मेलन में ले गया। पहली बार उन्होंने पूरी तरह से सुलभ स्थान में प्रवेश किया था और उनके द्वारा दी गई व्हीलचेयर से वो रोमांचित हो गई थी। वो इनेबल इंडिया की संस्थापक शांति राघवन से जुड़ीं और रास्ते खुलने लगे।

नौकरी के इंटरव्यू में बार-बार दो टूक जवाब मिलने से श्रीलता का उत्साह मर गया था। वे सिर झुकाकर बैठती थीं क्योंकि उन्हें नकारे जाने का अनुमान होता था। शांति ही थीं जिन्होंने उनसे व्हीलचेयर का उपयोग शुरू करने और आत्मविश्वास से इंटरव्यू पैनल का सामना करने का आग्रह किया। श्रीलता ने अपना सिर ऊंचा रखना और मुस्कुराना शुरू कर दिया। उन्होंने इनेबल इंडिया के सीएसआर कार्यक्रमों में भाग लिया। उन्हें एक हल्की व्हीलचेयर मिली और 2014 में उन्होंने और उनके दोस्तों ने द इनविंसिबल्स का गठन किया। उसी वर्ष उन्होंने एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में अपने सपनों की नौकरी प्राप्त की और 2018 में एक अन्य बहुराष्ट्रीय कंपनी में चली गई जहाँ वो वर्तमान में कार्यरत हैं।

आज श्रीलता एक स्वतंत्र जीवन व्यतीत करती हैं। वो सादा, स्वस्थ भोजन बनाती हैं, अपने ग्राउंड फ्लोर के घर को वैक्यूम-क्लीन करती हैं और केवल बर्तन धोने के लिये एक घरेलू सहायक को काम पर रखती हैं। वो कहती हैं, "मैं जितना हो सकता है उतना यात्रा करना चाहती हूँ"। "और मैं चुप रहना चाहती हूँ, ताकि मेरे काम मेरे लिये बोलें।"


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विक्की रॉय