जब ओडिशा के पुरी जिले के बालीपुट के प्रशांत परिदा हमसे कहते हैं, "हमारे गाँव में बहुत से लोग सांकेतिक भाषा (साइन लैंग्वेज) जानते हैं," तो हम यह सोचने पर मज़बूर हो जाते हैं कि इसके लिये 12 वर्षीय सोनाली ज़िम्मेदार थी। सुनने से बाधित सोनाली, प्रशांत और कुनी परिदा से पैदा हुई तीन लड़कियों में सबसे बड़ी, अक्सर अपने पिता की छोटी किराने की दुकान में ग्राहकों को समान देती है। क्या साइन लैंग्वेज सीखना उनका कर्तव्य नहीं है?
बधिरों के लिये एक स्कूल की आठवीं कक्षा की छात्रा सोनाली अनजाने में और अकेले ही अपने गाँव में इसे फैलाते हुये भारतीय सांकेतिक भाषा (ISL) का 'बिंदु स्रोत' बन गई है! उसके दोस्त जिनके साथ वह शाम को खेलती है, साइन लैंग्वेज में भी बातचीत करते हैं। उसके माता-पिता और बहनें रूपाली और मिताली, जो ISL में औपचारिक ट्रेनिंग लेना चाहती थी, उन्होंने चंदनपुर के एक प्राइवेट सेंटर और गोप जिले के ओगलपुर में एक सरकारी सेंटर में कक्षाओं में भाग लिया।
जब जोगमाया चैरिटेबल ट्रस्ट के राकेश प्रधान फोटोग्राफर विक्की रॉय को परिदा परिवार में ले गये, तो सोनाली आसपास थी क्योंकि महामारी की शुरुआत के बाद से उसका स्कूल बंद है। हालाँकि, टीचर हर सुबह ट्यूशन देने के लिये घर आते हैं और उसके पिता कहते हैं "वो ज़ोर देकर कहती है कि वो जाने से पहले दोपहर का भोजन कर लें, वरना वो गुस्सा हो जाती है"।
दुकान करके और चावल की खेती करके, प्रशांत अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं जिसमें उनकी माँ और उनके पिता शामिल भी हैं जो लकवे से पीड़ित हैं। उनकी दुकान में कोल्ड ड्रिंक और पान के पत्ते भी बिकते हैं। वे कहते हैं, "सोनाली दुकान को संभालती है, ग्राहकों जो सामन मांगते हैं वो देती और उनकी पसंद के अनुसार अलग-अलग तरह के पान बनाना भी जानती है"। “उसे एक ही मुश्किल होती है तब जब कोई उसे बड़ा नोट देता है और वो जल्दी से गिनती करके पैसे वापस नहीं कर पाती!"
प्रशांत सोनाली का वर्णन एक हंसमुख बच्ची के रूप में करते हैं जो हमेशा मुस्कुराती रहती है। वो बताते हैं, "जब वो छोटी थी तो उसकी इच्छा पूरी नहीं होने पर वो नखरे करती थी"। "लेकिन अब वह इतनी बड़ी और समझदार हो गयी है कि मैं उसे पता है मैं वो सब कुछ नहीं खरीद सकता जो वो मांगता है, जैसे हर त्योहार पर एक नई ड्रेस।" कला उसे तल्लीन रखती है: वो किताबों या टीवी पर दिखाई देने वाली तस्वीरों को बनाती है और उन्हें रंगने के लिए येसिल, पेन या पेंट का इस्तेमाल करती है।
इस परिवार में, सहायक चीज़ों और उपकरणों से अधिक प्राथमिकता साइन लैंग्वेज को दी गई है। चार-पाँच साल पहले प्रशांत और कुनी 'इलाज' की तलाश में सोनाली को पुरी, कटक और भुवनेश्वर के डॉक्टरों के पास ले गये थे। उन्होंने कर्णावर्त प्रत्यारकाक्लीअर इंप्लांट) का सुझाव दिया, जिसकी लागत लाखों रुपये थी, जिसे प्रशांत वहन नहीं कर सकते थे। उन्होंने उसे एक हियरिंग एड दिया, जिसपर उसने कोशिश की और मना कर दिया। जब ज़रूरी होता है तो वह बोलने वाले के होंठों को पढ़ (लिप-रीड कर) सकती है और यहाँ तक कि मुँह से भी बोल सकती है, हालाँकि स्पष्ट रूप से नहीं। हर शाम को 7 बजे जब परिवार भगवद गीता के श्लोकों का जाप करने के लिये इकट्ठा होता है, सोनाली भी दूसरों के साथ-साथ किताब से पढ़ती है, हालाँकि वो बोल कर जप नहीं कर सकती।
"अब वो जो है वो ही उसके लिये 'नॉर्मल' है और उसे इसकी आदत है", प्रशांत बहुत आराम से कहते हैं और जोड़ते हैं कि, “आजकल विकलांग लोग आईएएस अधिकारी बन रहे हैं और विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रहे हैं, इसलिये मुझे उम्मीद है कि भगवान ने उसके लिए भी कुछ अच्छा सोच के रखा है।"