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"जब हमें समर्थन प्रणालियों से सहारा मिलता है, तो हमें भी दूसरों के लिये सहारा बनना चाहिये"

शायद कभी न रुके: क्या व्हीलचेयर उपयोग करने वाले इस स्थान पर पहुँच सकते हैं जहाँ मैं अपने पैरों से टकराती लहरों के साथ खड़ा हूँ? एक साधारण व्हीलचेयर के टायर सूखी, ढीली रेत से पर नहीं चलेंगे।  कल्पना कीजिये कि समुद्र के किनारे रहने वाले कितने लोगों ने कभी इसके पानी को छुआ नहीं है या अपने चेहरे पर नमक के छींटे महसूस नहीं किये हैं!

इसका सरल उत्तर है, गुब्बारे के टायरों के साथ एक फ्लोटिंग व्हीलचेयर जो सूखी रेत पर चल  सकती है। और चूंकि हर कोई इसका खर्च नहीं उठा सकता है, तो क्यों ना पानी की ओर जाने वाला रास्ता हो? 2016 से, स्मिता सदाशिवन (42) ग्रेटर चेन्नई कॉरपोरेशन (जीसीसी) के साथ सर्विस रोड से मरीना बीच के तट तक एक स्थायी व्हीलचेयर-सुलभ मार्ग प्रदान करने के लिये काम कर रही हैं। जीसीसी ने हर साल दिसंबर-जनवरी (3 दिसंबर विकलांग व्यक्तियों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस है) के आसपास एक सप्ताह के लिये एक अस्थायी मार्ग बनाकर जवाब दिया। उन्होंने कुछ फ्लोटिंग व्हीलचेयर भी प्रदान किये हैं, लेकिन स्थायी मार्ग के लिये पर्यावरण मंजूरी में समय लगा है। आखिरकार मंजूरी मिल गई है और जीसीसी आयुक्त ने कहा है कि लगभग तीन महीने में एक स्थायी मार्ग तैयार हो जायेगा।

स्मिता की - एक विकलांगता अधिकार अधिवक्ता, एक्सेसिबिलिटी सलाहकार, एक्सेस ऑडिटर, ट्रेनर और बहुत कुछ के रूप में प्रभावशाली साख 19 साल की उम्र में प्राप्त की गई विकलांगता का प्रत्यक्ष परिणाम है। उन्हें मल्टीपल स्केलेरोसिस डायग्नोस किया गया था, जो केंद्रीय तंत्रिका प्रणाली का एक अपक्षयी विकार (डिजेनेरेटिव डिसोर्डर) है  और एक स्व-प्रतिरक्षित (ऑटो इम्यून) रोग माना जाता है।
 
स्मिता, एन.के. सदाशिवन (79), जो एक निजी कंपनी में क्लर्क थे, और संथा कुमारी सदाशिवन (68), जो अस्थायी रूप से लोक शिक्षण निदेशालय में काम करती थीं और तब सेल्फएम्प्लॉइड थीं की इकलौती संतान हैं। वे क्वीन मैरी कॉलेज में अंग्रेजी साहित्य में बीए कर रही थी जहाँ वो  एक लाइववायर थीं - एक लोकप्रिय, अकादमिक रूप से उज्ज्वल छात्र और छात्र संघ की सदस्य जो कराटे सहित विभिन्न एक्स्ट्रा कुरीक्युलर गतिविधियों में लगी हुई थी। अपने डिग्री कोर्स के तीसरे वर्ष में उन्हें थकान, शरीर में दर्द और चलने-फिरने में नियंत्रण न होने का अनुभव होने लगा। उनके सहायक प्रोफेसरों ने इस तथ्य के लिये छूट दी कि वे लंबे समय तक बैठ नहीं सकती थीं। उन्हें अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिये हर रोज़ केवल एक घंटे की कक्षा लेनी पड़ती थी, और उन्होंने उन्हें एक परीक्षा और दूसरी परीक्षा के बीच एक दिन का अवकाश दिया। जब उनकी उँगलियों ने निपुणता खो दी तो उन्होंने एक अलग कमरे की व्यवस्था की जहाँ वो लेट सकती थीं और किसी को लिखने के बता सकती थी। अंत में 2003 में वो ग्रेजुएट हुईं और मनोविज्ञान में मास्टर्स और एम. फिल किया।
 
दवाओं का एक मिश्रण, हर एक का विभिन्न अंगों पर दुष्प्रभाव, उनके जीवन का हिस्सा बन गया। दर्द और थकान निरंतर साथी थे जिन्हें जल्द ही एक परिचित साथी-यात्री-  डिप्रेशन- ने घेर लिया।  ध्यान, वैकल्पिक उपचार, और स्वस्थ आयुर्वेद आधारित आहार कम करने वाले कारक थे। उनके बनते-बिगड़ते स्वास्थ्य और कभी-कभार होने वाले रिलैप्स (जिनमें से कुछ के बाद उन्हें  शुरू से शुरू करना पड़ा) से निपटने के लिये, अपनी स्थिति को धीरज के साथ स्वीकार करना - यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं थी। वे कहती हैं कि बीमारी और ठीक होने के बीच कितना समय निकल जायेगा, इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। "उस समय में, वो करें जो आप कर सकते हैं, और करना चाहेंगे। यदि आप कुछ भी नहीं कर सकते हैं, तो भी ठीक है।"

और यह कहना कि स्मिता ने बहुत कुछ किया है, बड़ी छोटी बात होगी! 2003 में, एक प्रोफेसर के सुझाव पर अमल करते हुये, उन्होंने विकलांग व्यक्तियों के लिये संसाधन केंद्र, विद्या सागर में नौकरी मांगी। तत्कालीन निर्देशक पूनम नटराजन उन्हें काम पर रखने के लिये उत्सुक थीं, उन्हें अपनी विकलांगता कानून इकाई में रखा, और उन्हें वो सभी सहायता प्रदान की जिसकी उन्हें ज़रूरत थी। वो ऑटो से अपने कार्यस्थल तक लगभग 7 किमी की यात्रा करती थी, और यह उनके लिये थका देने वाला था। इसलिये, दो साल बाद, वे आधा किलोमीटर दूर एक जगह चली गई, जिसका मतलब था कि वो अपने मोटर चालित व्हीलचेयर पर आसानी से ऑफिस जा सकती थी।
 
स्मिता ने खुद को विद्या सागर की नौकरी में झोंक दिया। 2017 तक वे विकलांगता कानून इकाई की कॉओर्डिनेटर थीं और अब वे उनकी स्वतंत्र जीवन प्रोजेक्ट, ट्रस्ट एनेब्ल्ड डिसीजन्स एंड सपोर्ट सिस्टम की सदस्य हैं। पिछले 19 वर्षों में उन्होंने अपने क्षितिज का विस्तार किया है और विकलांगता के विभिन्न क्षेत्रों में काम किया है। मल्टीपल स्केलेरोसिस सोसाइटी ऑफ इंडिया (MSSI) के चेन्नई चैप्टर, एक संगठन जो वर्षों से उनके लिये समर्थन का एक बड़ा स्रोत रहा है, की सदस्य होने के अलावा वे भारत के चुनाव आयोग के लिये एक एक्सेसिबिलिटी सलाहकार हैं, विकलांगता अधिकार गठबंधन, तमिलनाडु की सदस्य हैं, और संयुक्त राष्ट्र के तहत यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज 2030 के लिये सिविल सोसाइटी एंगेजमेंट मैकेनिज्म के लिये एक सलाहकार समूह की सदस्य हैं। एक ट्रेनर के रूप में उन्होंने कई कार्यशालाएँ आयोजित की हैं और विदेश यात्राएँ भी की हैं।

पहुँच (एक्सेसिबिलिटी) और समावेश (इंक्लुजन) स्मिता के एक्टिविज़्म के मुख्य आधार हैं, और वे  उम्मीद करती हैं कि हमारा देश इसे अपनायेगा। निजी तौर पर वे उन स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में चिंतित हैं जिनका सामना उनके वृद्ध माता-पिता कर रहे हैं। वे  कहती हैं कि इस पूरे समय उन्होंने उनकी देखभाल की है, और अब उनकी बारी है कि उन्हें सर्वोत्तम संभव सस्ती स्वास्थ्य सेवा दिलाने की कोशिश करें। इसमें कोई संदेह नहीं है कि वे इसे अपने सामान्य स्वभाव "बस जीवन के साथ बहो” के अपने दृष्टिकोण को बनाये रखते हुये इसे संभालेंगी।


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विक्की रॉय