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"समाज सोचता है कि विकलांग व्यक्ति केवल मदद मांगते हैं। मैं बताना चाहता हूँ कि हम भी मदद कर सकते हैं।“

शुभजीत भट्टाचार्य (34) 11 साल के थे, जब उन्होंने उत्तर 24 परगना, पश्चिम बंगाल से अपनी माँ शिबानी के साथ बैंगलोर में अपनी बहन के घर की यात्रा की। शिबानी का इरादा अपनी बेटी को उसकी मुश्किल गर्भावस्था और प्रसव के बाद की मुश्किलों में मदद करना था। एक दिन शुभजीत छत पर अपने पालतू कुत्ते किश्मिश के साथ खेल रहे थे। पास में एक नारियल के पेड़ ने उनका ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने लोहे की छड़ से एक नारियल को हिलाया, और छड़ एक उच्च तनाव तार में लग गयी। वे बेहोश होकर गिर पड़े। साथ के घर में एक लड़के ने दुर्घटना देखी और शिबानी को बताने के लिये दौड़ा। हालाँकि वो कन्नड़ नहीं समझती थीं लेकिन उन्हें पूर्वाभास हो गया था। वे छत पर गयीं और किष्मिश को शुभाजीत के पास बैठे देखा।

अस्पताल में 48 घंटे के बाद शुभजीत को होश आया लेकिन दोनों हाथ काटे जान के बाद वो 10 महीने तक वहीं रहे। वो कहते हैं, "यह मई 2000 में हुआ था। यह मेरा दूसरा जन्म था।" शिबानी ने उनमें भविष्य का सामना करने का दृढ़ संकल्प जगाया। वे बताते हैं कि कैसे मनोचिकित्सक डॉ. मीरा चांडी ने उनसे पूछा, "क्या आपको लगता है कि जीवन बेकार है? क्या आपको लगता है कि आपने अपना सब कुछ खो दिया है क्योंकि आपने अपना हाथ खो दिया है?" उन्होंने उत्तर दिया, "नहीं, मैं भगवान का धन्यवाद करता हूँ कि दोनों आंखें बच गयीं ताकि मैं इस खूबसूरत दुनिया को देख सकूं।" यह सुनकर डॉ. चांडी ने शिबानी से कहा कि उन्हें शुभजीत के मानसिक स्वास्थ्य के बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। शुभजीत अक्सर बेडसाइड विजिटर, सेवानिवृत्त एचएएल इंजीनियर श्री रामास्वामी को भी प्यार से याद करते हैं, जिन्होंने उन्हें खुश मिज़ाज बने रहने के लिये वॉकमैन, संगीत कैसेट और बैटरी दी। फिल्म "आनंद" में राजेश खन्ना से प्रेरित होकर वे वॉलंटियर अस्पताल काउंसलर बन गय थे।

2002 में शुभाजीत अपनी माँ के साथ घर लौटे। उन्होंने अपनी सकारात्मकता बनाए रखी। वह कहते हैं, "जब भी कोई मुझे 'ना' कहता है तो यह मुझे और प्रेरित करता है!" पहले दिन जब वो अपने दोस्तों के साथ फ़ुटबॉल खेलने के लिये गये, तो वो नीचे गिर गये और बेहोश हो गये। दोस्तों की चेतावनियों के बावजूद, अगले दिन फिर वो उनके बीच पहुँच गये। फ़ुटबॉल ने उनके संतुलन में बहुत सुधार किया और बाद में उन्हें फ़ुटबॉल क्लबों से भी निमंत्रण मिले।

हालाँकि, वर्षों की बहाली के बाद ही वे फिर से स्कूल में शामिल हो सके। अटेंडेंस में कमी के कारण 2010 में वे बोर्ड परीक्षा लिखने के लिये अयोग्य थे क्योंकि शिक्षा बोर्ड ने उनकी विकलांगता पर ध्यान नहीं दिया था। रवींद्र मुक्त विश्वविद्यालय के माध्यम से उन्होंने 2011 में अपनी परीक्षाएं लिखीं, लिखने के लिये किसी की मदद के लिये पूछने के बजाय उन्होंने कृत्रिम हाथ का उपयोग किया। इस उपलब्धि ने उन्हें गर्व की भावना दी और उन्होंने अपनी बारहवीं कक्षा की परीक्षा के लिये भी ऐसा ही किया।

2013 में शुभजीत ने अपने उपयोग के लिये एक साइकिल में बदलाव करने का फैसला किया। हर साइकिल की दुकान के मालिक ने, जिसने उन्हें "ना" कहा, उसने उनका दृढ़ संकल्प बढ़ाया। आखिरकार उन्हें एक साथी मिल गया और उन्होंने उसे अपने पिता की पुरानी साइकल पर काम करने के लिये केवल सात दिनों के भीतर एक प्रोटोटाइप बनाने के लिये निर्देशित किया! उन्होंने कंप्यूटर में एक साल का डिप्लोमा और दो महीने का डेटा एंट्री प्रोग्राम पूरा किया। 2014 में उन्होंने गोबरदंगा हिंदू कॉलेज में दाखिला लिया जहाँ उनकी मुलाकात अपनी भावी पत्नी जूली आइच से हुई। उन्होंने 2015 में बेंगलुरु में नौकरी की तलाश में नौकरी छोड़ दी क्योंकि "मैं उसी शहर से कमाना और हासिल करना चाहता था जहाँ मुझे नुकसान हुआ था"।

दंपति शहर चले गये। जूली ने आयुर्वेदिक क्लिनिक में काम किया और शुभजीत ने एसोसिएशन ऑफ पीपल विद डिसएबिलिटी (एपीडी) में ग्राफिक डिज़ाइनर के रूप में काम किया। ऑफिस के लिये भीड़ भरी बस की सवारी इतनी तनावपूर्ण थी कि उन्होंने सबसे भीड़-भाड़ वाले समय से बचने के लिये अपने समय को एडजस्ट कर लिया। फिर उन्होंने सोचा: जब मैं साइकिल चला सकता हूँ, तो स्कूटर क्यों नहीं चला सकता?

शुभजीत ने असफल रूप से ऑनलाइन खोज की और दोपहिया वाहन निर्माताओं को लिखा। फिर उन्होंने एक सेकेंड हैंड मोपेड खरीदी और उन्हें एक मैकेनिक मिला, जिसके साथ वे ऑफिस के बाद रात 8 बजे तक रोजाना काम करते थे। उन्होंने एक महीने में एक प्रोटोटाइप बनाया और स्कूटर खरीदने और इसे संशोधित करने से पहले उन्होंने एक और महीने तक इसका अभ्यास किया।

जब वे लाइसेंस लेने के लिये क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय गये तो सहायक आरटीओ ने उन्हें आश्वासन दिया कि हालाँकि कानून बिना हाथों वाले सवारों को मना करता है, कोई भी पुलिस वाला उनका चालान नहीं काटेगा। निश्चित रूप से, शुभजीत 2017 से स्वतंत्र रूप से सवारी कर रहे हैं और जब वो सिग्नल पर रुकटे हैं तो अक्सर जिज्ञासु, सराहना करने वाले ट्रैफिक पुलिस से मिलते हैं। 2020 में, जब उन्होंने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (IGNOU) से ग्रेजुएशन किया, तो उन्हें अपने स्कूटर के डिज़ाइन के लिये IGNOU इनोवेशन अवार्ड भी मिला!

शुभजीत ने एपीडी से तीन प्रदर्शन पुरस्कार और इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में एक उल्लेख जैसी अन्य प्रशंसाएं प्राप्त की हैं, लेकिन कोरोना योद्धा पुरस्कार शायद उनके दिल के सबसे करीब है। जब महामारी आई, तो उन्होंने और जूली ने तालाबंदी के दौरान पीड़ित प्रवासियों की मदद करने के लिये कदम बढ़ाया, और दोस्तों से भी योगदान करवाया। उन्होंने वॉलंटियर्स जुटाये और सुबह 6 बजे से रात 9 बजे तक सैकड़ों परिवारों को भोजन वितरित करने में अथक परिश्रम किया। 

अप्रैल 2021 में शुभजीत ने ऑटिज्म और विशेष ज़रूरतों वाले बच्चों के लिये प्रोग्राम मैनेजर के रूप में अक्षरा फाउंडेशन के स्कूल में दाखिला लिया। बंजारा अकादमी के एक प्रमाणित परामर्शदाता, वे किशोरों और वरिष्ठ नागरिकों के साथ काम करते हैं; जब उनकी दर्दनाक कहानियां उन्हें निराश करती हैं तब किशोर कुमार के गाने उन्हें उत्साहित करते हैं। प्रकृति एक और उपचारक है: उन्हें स्कूल के बगीचे में काम करने और हरे-भरे स्थानों पर लंबी सवारी करने में मज़ा आता है।

शुभजीत का ड्रीम प्रोजेक्ट 21 दिनों में सड़क मार्ग से दिल्ली से लद्दाख तक 3,000 किलो मीटर की यात्रा करना है, ताकि विकलांगता का संदेश - “कभी हार मत मानो। अपने जीवन पर नियंत्रण रखें।” - जा फैलाया सके।

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विक्की रॉय