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"मैं चाहता हूँ कि स्टेम (STEM) शिक्षा दृष्टिबाधित लोगों के लियेआसानी से सुलभ हो"

सौरभ प्रसाद 11 साल के थे, अपने छोटे भाई राज के साथ झारखंड में अपने घर की छत पर खेल रहे थे, जब वो 20 फीट नीचे जमीन पर गिर गये। चमत्कारिक रूप से वो बिना किसी बड़ी शारीरिक चोट के वो बच गये लेकिन गिरने से शायद उनके शिशु ग्लूकोमा में वृद्धि हुई क्योंकि केवल तीन वर्षों में वो पूरी तरह से अपनी दृष्टि खो चुके थे।

अब 22 वर्ष के सौरभ, महेश और मोनिका प्रसाद की मँझली संतान हैं, जो वनाच्छादित जिले के टंडवा में स्कूल शिक्षक हैं। जिस सरकारी स्कूल में उन्होंने पढ़ाई की, वो 14 साल की उम्र में दृष्टि खोने पर उन्हें पढ़ाने के लिये सुसज्जित नहीं था। उन्होंने रांची में सेंट माइकल स्कूल फॉर द ब्लाइंड में दाखिला लिया और कठिनाई के साथ वे "बड़े शहर" की संस्कृति से तालमेल बैठाने में कामयाब रहे। लेकिन चूंकि ववो ब्रेल लिपि नहीं जानते थे, इसलिये उन्हें किंडरगार्टन में भर्ती कराया गया था! अकादमिक रूप से उज्ज्वल किशोर बहुत निराश था और उसने जोर देकर कहा कि उसके पिता कोई विकल्प खोजें। हालाँकि, सेंट माइकल में उनके संक्षिप्त कार्यकाल ने उन्हें ब्रेल सीखने में मदद की।

सौरभ आठवीं कक्षा की प्रवेश परीक्षा पास करने के बाद देहरादून के मॉडल स्कूल फॉर विजुअली हैंडीकैप्ड में चले गये। वो याद करते हैं “देहरादून में एक अलग माहौल था। मुझे गणित विशेष रूप से कठिन लगा, और मुझे यकीन नहीं था कि मैं इसका सामना कर पाऊंगा”। हर दिन कक्षा के बाद वो गणित का अभ्यास करने के लिये अपने खाली समय का त्याग करते थे। विषय में महारत हासिल करने का उनका दृढ़ संकल्प फलित हुआ: उन्होंने गणित की परीक्षा में कक्षा में टॉप किया।

विज्ञान ने सौरभ को मंत्रमुग्ध कर दिया। हालाँकि, कक्षा 10 की विज्ञान परीक्षा में अपने शानदार प्रदर्शन के बावजूद, वो इसे मॉडल स्कूल में आगे नहीं बढ़ा सके क्योंकि स्कूल केवल मानविकी की पेशकश करता था। विज्ञान को लेने की अनुमति देने की उनकी लगातार दलील पर ध्यान देते हुये उनके माता-पिता उन्हें दिल्ली पब्लिक स्कूल में एक इंटरव्यू के लिये ले गए। उन्होंने प्रवेश परीक्षा पास कर ली लेकिन उनके पिता 1 लाख रुपये की चुनौतीपूर्ण स्कूल फीस से स्तब्ध रह गये और वे अपने पुराने स्कूल में वापस चले गये।

सौरभ ने खुद को दृढ़ता से अपने भाग्य पर छोड़ दिया था, जब अचानक से नेशनल एसोसिएशन फॉर द ब्लाइंड (एनएबी), दिल्ली ने उनका समर्थन करने के लिये कदम बढ़ाया। वो दिल्ली में टैगोर इंटरनेशनल स्कूल में 40,000 रुपये की रियायती शुल्क पर शामिल हो सकते थे, और एनएबी उनकी यात्रा और आवास को भी प्रायोजित करेने वाला था। मुख्यधारा के स्कूल में एकमात्र दृष्टिबाधित छात्र के रूप में, सौरभ ने खुद को एक और अपरिचित माहौल में पाया, लेकिन उन्होंने जल्दी से खुद को ढाला, और स्कूल ने उनके उत्कृष्ट ग्रेड को पुरस्कृत करने के लिये उनकी फीस माफ कर दी।

उनका अगला लक्ष्य भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान था। सौरभ कहते हैं, “आईआईटी मेरा सपना था, मेरा अंतिम लक्ष्य,” जिन्होंने महामारी से प्रेरित लॉकडाउन का पूरा फायदा उठाया और संयुक्त प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिये ऑनलाइन कक्षाओं में लग गये। आईआईटी दिल्ली में प्रोफेसर डॉ. उमा माहेश्वरी और आईआईटी खड़गपुर में पूर्व भौतिकी लेक्चरार, डॉ. टी.के. बंसल, जो अपनी धुंधली दृष्टि के कारण समय से पहले सेवानिवृत्त हो गये थे उनके लक्ष्य में उनकी सहायता कर रहे थे। उनके अंकों ने उन्हें IIT में प्रवेश के योग्य नहीं बनाया, लेकिन उन्होंने जल्दी ही अपनी निराशा पर काबू पा लिया और इंद्रप्रस्थ सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली में शामिल हो गये। संयोग से उनके बड़े भाई शुभम (23), जो कंप्यूटर साइंस में स्नातक है, अब नौकरी की तलाश में है।

हालाँकि सौरभ सिर्फ किताबी कीड़ा नहीं हैं। स्कूल में अपने सीनियर्स से शतरंज सीखने के बाद (ब्लाइंड शतरंज एक महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजन है) 2017 में वे ब्लाइंड रिलीफ एसोसिएशन द्वारा आयोजित एक राष्ट्रीय स्तर के टूर्नामेंट के फाइनल में पहुँचे। वे कहते हैं, "मैं अब मनोरंजन के लिये शतरंज खेलता हूँ न कि प्रतिस्पर्धा करने के लिये।" वे अपने कॉलेज ड्रामा क्लब मचान के हिस्से के रूप में हिंदी थिएटर में भी शामिल हैं। उन्होंने कथानाक में अपनी आवाज़ देते हैं और मंच पर एक डॉक्टर और एक बैरोनेस की भूमिका निभाई है!

सौरभ ने देखा कि अधिकांश नेत्रहीन छात्र एसटीईएम (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) का अनुसरण नहीं करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इसे संभालना बहुत जटिल है। यही कारण है कि वे स्टेम (STEM) विषयों में कक्षा 6 से 12 तक नेत्रहीन और दृष्टिबाधित छात्रों को प्रशिक्षित करने के लिये समय निकालते हैं। दिल्ली के एनजीओ प्रथम ट्रस्ट ने उन 25 छात्रों को सोर्सिंग करने में मदद की है, जिन्हें अब वे अपने सत्रों की रिकॉर्डिंग भेजकर ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से कोचिंग देते हैं।

सॉफ्टवेयर उद्योग में काम करने के लिये, दृष्टिबाधित लोगों के लिये और भी अधिक सुलभ सॉफ्टवेयर बनाने के लिये, एक समावेशी और सुलभ आभासी कक्षा के लिये एक मॉडल तैयार करने हेतु - ये ऐसे लक्ष्य हैं जो सौरभ ने अपने लिये निर्धारित किये हैं। विकलांगता पर 2021 एनसीपीईडीपी-जावेद आबिदी फैलोशिप के प्राप्तकर्ता होने के नाते निस्संदेह उन्हें इन लक्ष्यों को पूरा करने के लिये प्रेरित करेगा।

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विक्की रॉय