Icon to view photos in full screen

“मैंने हाल ही में अपने पिता के साथ योगासन करना शुरू किया है। मैं जग और बोतलों में पानी भरकर अपनी माँ की मदद करता हूँ”

विकलांगता से ग्रस्त बच्चे का जितनी जल्दी डायग्नोस किया जायेगा, उसनकी प्रगति की संभावना उतनी ही बेहतर होगी। कभी-कभी, यह शुरुआती हस्तक्षेप भाग्य की देन हो सकता है, जैसा कि हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा के मटौर गाँव के सात्विक चौधरी (12) के मामले में हुआ।
 
जब सात्विक एक साल का था तो उसके माता-पिता राजेश कुमार (अब 48 वर्ष) और बिंदिया चौधरी (अब 36 वर्ष) उसे एक शादी में ले गये थे, जहाँ उसे जो खाना खिलाया गया, वह उसके लिये शायद सही नहीं था। जब वे घर लौटे तो बच्चा बुरी तरह बीमार था। राजेश और बिंदिया उसे एक निजी अस्पताल ले गये। वहाँ काबिल डॉक्टरों ने केवल उल्टी-दस्त की दवा लिखने के बजाय देखा कि उसके हाथ-पैर की हरकतें ठीक नहीं लग रही हैं। उन्होंने दंपति को पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (PGIMER) चंडीगढ़ में उसकी जांच कराने की सलाह दी। वे उसे वहाँ ले गये, और परीक्षण और एमआरआई ने पुष्टि की कि उसे सेरेब्रल पाल्सी (CP) है।
 
राजेश और बिंदिया को CP के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। बिंदिया की पहली प्रतिक्रिया जो आमतौर पर होती है, वही थी: “मैं ही क्यों? और मैंने क्या ग़लत किया है?” दोनों को वास्तविकता स्वीकार करने में थोड़ा समय लगा। सात्विक के इलाज के लिये चंडीगढ़ जाते रहना भी उनके लिये एक वित्तीय परेशानी थी। सौभाग्य से,  PGIMER के एक डॉक्टर ने उन्हें हिमाचल में चिन्मय ग्रामीण विकास संगठन (CORD) के बारे में बताया। 2013 में उन्होंने सात्विक को CORD में ले जाना शुरू किया, जहाँ फिजियोथेरेपी से उनमें उल्लेखनीय सुधार दिखा; वह खिसकने लगा, खड़ा हुआ और आखिर में चलने लगा।
 
प्रत्येक नये शैक्षणिक वर्ष की शुरुआत में, निजी स्कूलों के लिये अपने शिक्षकों को पड़ोसी इलाकों में यह देखने के लिये भेजना कि वहाँ स्कूल जाने की उम्र के बच्चे हैं या नहीं, एक नियमित अभ्यास बन गया है। इस तरह महर्षि विद्या मंदिर के शिक्षकों ने चौधरी परिवार से संपर्क किया। राजेश, जो हिमाचल प्रेस में एक कर्मचारी है, अपने बड़े भाई जनक राज, एक ड्राइवर, जनक की पत्नी आशु, एक आशा कार्यकर्ता, और उनके बच्चों रोहित और मोनाली के साथ संयुक्त रूप से रहते हैं। जब शिक्षकों को बताया गया कि सात्विक को अभी तक स्कूल नहीं भेजा गया है क्योंकि उसे चलने-फिरने में दिक्कत है, तो वे तुरंत उसे स्कूल में ले जाने के लिये तैयार हो गये।
 
एक समावेशी मुख्यधारा स्कूल में होने से सात्विक की प्रगति को काफी बढ़ावा मिला। बिंदिया याद करती हैं कि कैसे उन्होंने सात्विक की विशेष CP कुर्सी स्कूल भेजी थी और प्रिंसिपल ने उसे यह कहते हुये वापस भेज दिया कि वो अपने सहपाठियों की तरह डेस्क पर बैठने में सक्षम है। शिक्षक और बच्चे बहुत सहायक हैं और उसे स्कूल की सभी गतिविधियों में शामिल करते हैं, जब भी उसे ज़रूरत होती है मदद भी करते हैं। अब वो कक्षा 5 में है। राजेश उसे बस स्टॉप तक छोड़ते हैं जहाँ से वह स्कूल बस पकड़ता है। दोपहर 3.30 बजे बिंदिया उसे उसी जगह से लेकर आती हैं। जिसके बाद वह दोपहर का खाना खाता है, टीवी देखता है, पड़ोसी बच्चों के साथ कैरम खेलने जाता है और शाम 6.30 बजे अपने पिता के घर लौटने का इंतजार करता है। राजेश उसकी पढ़ाई और नियमित व्यायाम में मदद करते हैं। बिंदिया ख़ुशी से हमें बताती हैं, "हाल ही में उसने अपने पिता के साथ योगगासन करना भी शुरू किया है।"
 
बिंदिया सात्विक को हर काम खुद करने के लिये प्रोत्साहित करती हैं, चाहे वह अपने दांतों को ब्रश करना हो, खाना खाना हो या कपड़े पहनना हो। राजेश बेहद विचारशील हैं और दंपत्ति बच्चे की देखभाल और घरेलू कामों में हाथ बंटाते हैं। अलग-अलग रसोई वाले उनके संयुक्त घर में, बिंदिया के हिस्से में नीचे एक कमरा है, और उसकी रसोई और दूसरा कमरा पहली मंजिल पर है। सात्विक को सीढ़ियों पर बैठना पसंद है और वह लोहे के बैनिस्टर को पकड़कर सीढ़ियों पर चढ़ने जाता है। वह रसोई में जग और बोतलों में पानी भरने जैसे छोटे-छोटे कामों में अपनी माँ की मदद करना पसंद करता है। बिंदिया को याद है कि कैसे, जब वह चार साल का था, तो जब वो बाहर गयी हुयी थीं उसने खुद ही रूमाल धोने का फैसला किया था। उसने एक टब में पानी भरा और उसमें आधा किलो वाशिंग पाउडर डाल दिया! उसे डर था कि जब वह वापस लौटेगी तो उसे डांटेगी लेकिन बिंदिया उसकी इस कोशिश से इतनी अभिभूत थीं कि उन्होंने उसे गले से लगा लिया और खुशी से रोने लगी।
 
सात्विक के जीवन में कई पसंदीदा चीज़ें हैं: शाहरुख खान, कार्टून शो नोबिता, कॉमेडी श्रृंखला तारक मेहता का उल्टा चश्मा, और मोमोज, बर्गर, पास्ता और आलू परांठे। अकेले खेलते समय वह गेंद उछालना पसंद करता है, या अपने चाचा की तरह ड्राइवर होने का नाटक करता है, या अपने चारों ओर रखे तकियों के बीच में बैठकर ऑफिस में काम करने का नाटक करता है। उसे नाचना भी पसंद है, और आप अक्सर उन्हें एक पहाड़ी गीत, "मेले जाणा कालका दे" गाते हुये सुन सकते हैं। हाल ही में CORD ने उन्हें एक ढोलक उपहार में दी जिसे बजाना उसे बहुत पसंद है; पहले उसे जो भी चीज़ मिल जाती थी - बाल्टी, टब, या बड़े बर्तन - वो उसे ढोलक की तरह बजाता था।
 
पति-पत्नी के इस जोड़े को समाज से कलंक, दया और उपहास का खामियाज़ा भुगतना पड़ा है। लोगों ने उन्हें एक और बच्चा पैदा करने की 'सलाह' दी लेकिन उन्होंने अपना सब कुछ सात्विक को देने का फैसला किया। बिंदिया की एकमात्र इच्छा है कि वह आत्मनिर्भर हो जाये। विकलांग बच्चों के बारे में उन्होंने कहा, "उन्हें दया की ज़रूरत नहीं है।" "उन्हें बस प्यार और समर्थन की ज़रूरत है।"
 


तस्वीरें:

विक्की रॉय