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“मेरे पिता मेरे सबसे बड़े समर्थक थे और खेल मेरा सबसे बड़ा प्रेरक है"

पटना के संदीप कुमार (38) जब बच्चे थे तो उन्होंने अपने पिता अखिलेश मिश्रा से कहा कि वो क्रिकेट मैच देखना चाहते हैं। मिश्राजी अपने छोटे लड़के को अपनी साइकिल पर मोइन-उल-हक स्टेडियम ले गये जहाँ एक मैच चल रहा था। "कृपया मेरे बेटे को एक झलक देखने की अनुमति दें," उन्होंने सुरक्षा गार्डों से विनती की और वो मान गये। उन्होंने संदीप को अपने कंधों पर उठा लिया। वे अपनी सबसे प्यारी यादों में से एक को ताज़ा करते हुये कहते हैं “यह क्रिकेट स्टेडियम का मेरा पहला दृश्य था। हरी घास, ऊपर नीला आकाश... मैंने सोचा, यह स्वर्ग है।“ लेकिन यह एक मीठी-कड़वी याद है, क्योंकि उनके पिता अब नहीं रहे: पिछले साल दिवाली पर एक बाइक दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई।
 
संदीप, जो क्लब फुट के साथ पैदा हुये थे (उनकी दाहिनी एड़ी अंदर की ओर मुड़ी हुई है), अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलना पसंद करते थे लेकिन उन्होंने पेशेवर क्रिकेटर बनने का सपना नहीं देखा होगा। हालाँकि, वे खेलों में शामिल हो गये और राष्ट्रीय स्तर के जिमनास्ट बन गये! केरोसिन व्यापारी अखिलेश मिश्रा और गृहिणी सरवानी देवी के सबसे बड़े बेटे, संदीप का एक भाई, प्रदीप और एक बहन, अंजलि है। वे कहते हैं, ''मेरा परिवार मेरी ताकत है।'' “मेरी विकलांगता के कारण उन्होंने मुझे कभी भी कम महसूस नहीं होने दिया। मेरे पिताजी मेरे सबसे बड़े समर्थक थे। वास्तव में उन्होंने मेरे लिये एक फुटबॉल खरीदी और मुझे अपने दाहिने पैर से किक मारने के लिये प्रोत्साहित किया।''
 
जब संदीप दसवीं कक्षा में थे, तब वे प्रदीप के साथ उनके जिमनास्टिक क्लब में जाते थे। कोच सुरेंद्र कुमार विश्वकर्मा ने संदीप को देखा और उन्हें इस खेल को आजमाने के लिये प्रोत्साहित किया। वे याद करते हैं, "शुरुआत में मुझे यकीन नहीं था, लेकिन कोच ने मेरी प्रतिभा को पहचाना और मुझ पर भरोसा किया।" "यह मुझपर उनका विश्वास ही था जिसने मुझे वो बना दिया जो मैं आज हूँ।" अंजलि जिम्नास्टिक का अभ्यास करने में अपने बड़े भाइयों के साथ शामिल हुईं; हालाँकि, वे और प्रदीप दोनों अन्य क्षेत्रों में चले गये। अंजलि मुंबई की एक अभिनेत्री हैं: उन्होंने हिंदी और भोजपुरी धारावाहिकों और फिल्मों में छोटी भूमिकाएं निभाई हैं। डांस प्रदीप का जुनून बन गया; वे  एक डांसर और कोरियोग्राफर हैं जो दुबई के बॉलीवुड पार्क में काम करते हैं और उन्होंने रियलिटी शो डांस इंडिया डांस (हिंदी) और नाच नचैया (भोजपुरी) में भाग लिया है।
 
संदीप, जिन्होंने नेट परीक्षा उत्तीर्ण की और भूगोल में एम.ए. किया, दृढ़ता से जिमनास्टिक पर टिके रहे। उन्होंने वर्ष 2015 के विशेष ओलंपिक में भाग लिया और 2023 में भारतीय टीम का हिस्सा भी थे, जब हमने रिकॉर्ड 111 पदक जीते थे। हालाँकि, उनका लक्ष्य केवल व्यक्तिगत गौरव हासिल करना नहीं है। विकलांग लोगों की मदद करना उनके प्रमुख लक्ष्यों में से एक है। वे अकेडमी ऑफ जिमनास्टिक्स नाम से अपनी खुद की खेल अकादमी चलाते हैं, जहाँ वे विकलांग और गैर-विकलांग व्यक्तियों के साथ-साथ ऑटिज्म जैसी बौद्धिक और विकासात्मक विकलांगता वाले बच्चों को भी प्रशिक्षित करते हैं। उन्हें याद है जब एक खेल आयोजन में उनका सामना पहली बार विकलांग बच्चों से हुआ था। “शुरुआत में मुझे आश्चर्य हुआ - वे कैसे प्रबंधन करेंगे? लेकिन जितना अधिक मैंने उन्हें मैदान पर देखा उतना अधिक मैं मंत्रमुग्ध हो गया। हमारी अकादमी में हम इन बच्चों को मुख्यधारा में लाने के लिये खेलों का उपयोग करते हैं। यदि हम असाधारण रूप से प्रतिभाशाली बच्चों की पहचान करते हैं तो हम उन्हें अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के लिये भी प्रशिक्षित करते हैं।''
 
संदीप के पास कई 'आधिकारिक' पद हैं: बिहार की पैरालंपिक समिति के सचिव, विशेष ओलंपिक भारत के खेल निदेशक और विशेष ओलंपिक बिहार के क्षेत्र निदेशक होने के अलावा, वे सेरेब्रल पाल्सी के लिये भारतीय खेल महासंघ के राष्ट्रीय खेल निदेशक और व्हीलचेयर रग्बी फेडरेशन ऑफ इंडिया के खेल निदेशक हैं। वे बताते हैं कि व्हीलचेयर रग्बी खिलाड़ी आम तौर पर वे होते हैं जिन्हें दुर्घटनाओं के बाद रीढ़ की हड्डी में चोट लगी होती है। उनमें से कई अवसाद से पीड़ित हैं और आत्मघाती विचारों से ग्रस्त हैं। खेल उन्हें अधिक आत्मविश्वासी बनाने और जीवन में एक नया उद्देश्य देने का एक तरीका है।
 
संदीप की दिनचर्या बहुत व्यस्त है। सुबह 4 बजे वे घर से 20 कि.मी. दूर अपनी अकादमी के लिये निकलते हैं। प्रशिक्षण के बाद, जो सुबह 5 बजे शुरू होता है, वे पास के एक कमरे में जाते हैं जिसे उन्होंने किराए पर लिया है, तरोताजा होते हैं, और पैरालंपिक समिति कार्यालय में जाते हैं जहाँ वे शाम 4 बजे तक काम करते हैं। फिर वे प्रशिक्षण के लिये अकादमी में वापस आते हैं, और रात 9 बजे तक घर लौटते हैं। अपने खाली समय में वे ट्रैकिंग का आनंद लेते हैं, 'अछूते' स्थानों पर जाना पसंद करते हैं, जहाँ अन्य लोग कम जाते हैं, जैसे कि चौरासन मंदिर और रोहतासगढ़ किला, जहाँ उन्हें "बहुत शांति" मिलती है। बिहार की कैमूर रेंज उनकी पसंदीदा है।
 
संदीप कहते हैं, ''मेरी अकादमी के विशेष बच्चों ने मुझे एक नया अर्थ और उद्देश्य दिया है।'' "मैं उनका मित्र, मार्गदर्शक, कोच और ट्रेनर हूँ और उनके माध्यम से मैं हर दिन कुछ नया सीखता हूँ।"


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विक्की रॉय