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"व्हीलचेयर में 'फँसा' होना उतना बुरा नहीं है जितना कि अपने दिमाग में, अपने जीवन में फंसा होना है"

आंध्र प्रदेश की साईं पद्मा के पास के एक तरह से उनके परिवार के डॉक्टरों की बाढ़ सी आ गई है। उनके पिता डॉ. बी.एस.आर. मूर्ति एक सर्जन हैं, उनकी (दिवंगत) माँ डॉ. आदि सेशु एक स्त्री रोग विशेषज्ञ थीं, उनके (दिवंगत) भाई डॉ. नरेंद्र एक जनरल सर्जन थे, उनकी बहन डॉ. वामसी पवनी एक डेंटल सर्जन हैं, जो अपने पति डॉ. वेंकट के साथ अपना खुद का अस्पताल चलाती हैं। बेटा पर्धा मेडिकल के दूसरे वर्ष में है।

लेकिन दुनियाभर की सारी चिकित्सा सहायता उनके जीवन में बार-बार आने वाली बाधाओं को नहीं टाल सकती है। इस तरह की पहली बाधा तब आई जब वो इसके बारे में जान पाने के लिये बहुत छोटी थीं। 1972 में विशाखापत्तनम से 70 कि.मी. दूर गजपतिनगरम में जन्मी, जहाँ वो अब रहती हैं, साई पद्मा के माता-पिता अपने पहले बच्चे को तीन महीने की उम्र - डब्ल्यूएचओ द्वारा निर्धारित (और बाद में संशोधित) दिशानिर्देश - में पोलियो का टीका लगाने के लिये बिल्कुल तैयार थे। लेकिन वायरस ने उनपर तब हमला किया जब वो सिर्फ 45 दिन की थीं। यह इतना गंभीर था कि इसने उनके वाक तंतुओं (वोकल कोर्ड्स) और उनके पूरे शरीर को लकवा मार दिया। शिशु को 52 शॉक ट्रीटमंट्स से गुजरना पड़ा जो उस समय लकवे के लिये जाना-माना उपाय था। इसने उनकी आवाज़ को वापस ला दिया लेकिन उनके हाथ का हिलना-डुलना सीमित था और उनके पैर काम नहीं कर रहे थे।
 
बचपन में अपने निचले पैरों पर 17 सर्जरी के लिये वो अस्पतालों में अंदर-बाहर करती रही। चूंकि चलने में उनके धड़ की मांसपेशियां (ट्रंक मसल्स) शामिल थीं, धीरे-धीरे उन्हें स्कोलियोसिस - रीढ़ की एक तीव्र वक्रता - हो गया, जिसने उनके फेफड़ों को खतरनाक रूप से सिकोड़ दिया। इसलिये 24 साल की उम्र में उन्होंने रीढ़ की हड्डी की 18 घंटे की सर्जरी करवाई। ठीक होने में उन्हें दो साल तक बिस्तर पर पड़े रहना पड़ा, उस दौरान वो अवसाद (डिप्रेशन) के दौर से भी गुज़री।
 
वो कहते हैं ना, मुसीबत आपको सब कुछ सिखा देती है। पद्मा ने अपने सबक़ों का भरपूर उपयोग किया। उनका एक साहसी और मुखर व्यक्तित्व निखरकर आया। यदि आप उनका ब्लॉग [lotusbeats.wordpress.com] पढ़ेंगे तो आपको एक ऐसी महिला का पता चलेगा जो वर्जित विषयों को खुलकर सामने लाती है। माहवारी वाले व्हीलचेयर-उपयोगकर्ताओं के कष्टों और विकलांग व्यक्तियों के यौन अधिकारों के बारे में कौन लिखता है। एक महिला जिसने अपने पुरुष मित्र से पूछा, "क्या तुम मुझसे शादी करोगे?" और फिर उसे कई कारण बताये कि उसे इसके बारे में क्यों दो बार सोचना चाहिये! यह दोस्त, वैसे, विकास पेशेवर प्रग्नानंद बुसी हैं जो उनके पति बन गये, एक हमसफ़र जो "मेरे जीवन को प्रकाश और करुणा से भर रहा है"।

जीवन के कठिन प्रहारों को सहन करने की दृढ़ता के साथ केवल एक महिला ही आगे और ऊपर की ओर बढ़ना जारी रख सकती है। कंप्यूटर और शास्त्रीय संगीत में डिप्लोमा हासिल करने के बाद ("एक अजीब कॉमबिनेशन" वो मजाक करती है) उन्होंने कॉमर्स में पोस्ट-ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की, कानून में ग्रेजुएशन की उपाधि प्राप्त की और फ़ाइनेंस में एमबीए किया। वो कहती हैं, "मैं हमेशा फ़ाइनेंस की दुनिया में काम करना चाहती थी," लेकिन उनकी योग्यता के बावजूद, उन्होंने जितने भी जॉब इंटरव्यू दिये, उनमें से कोई भी सफल नहीं हुआ। सरकारी हिंदुस्तान पेट्रोलियम कंपनी लिमिटेड में उनका इंटरव्यू दूसरी मंजिल पर था और लिफ्ट खराब हो गई थी। सहायता से वो किसी तरह इंटरव्यू रूम में पहुँची और उनसे पूछा गया, "अगर आग लग गई तो आप कैसे संभालेंगी?" उन्होंने कहा, "वैसे ही जैसे आज किया" और खराब लिफ्ट और पहुँच के बाहर शौचालय की ओर इशारा किया। वे कहती हैं कि "सिस्टम अभी भी विकलांगता रोजगार को परोपकार के रूप में देखता है"। समावेश और परोपकार साथ-साथ नहीं चल सकते।"

2008 में, जिस वर्ष उन्होंने आनंद से शादी की, उन्होंने गैर-लाभकारी ग्लोबल ऐड [globalaid.in] की स्थापना की, जो पहुँच, गतिशीलता और रोजगार के क्षेत्रों में काम करता है, और ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा और रोजगार का साधन प्रदान करने के लिये वंचित बच्चों के लिये छात्रावास चलाता है। बीच में वो अपने शौक - पढ़ना, लिखना (अंग्रेजी और तेलुगु में), और फिल्में देखना - के लिये समय निकालती हैं। भारतीय विकलांगता पर उनकी कॉफी टेबल बुक अंतिम चरण में है। वे एक प्रशिक्षित एयर राइफल शूटर हैं (तैराकी और शूटिंग उन्हें शान्तिदायक लगते हैं), वो एक "समावेशी फिल्म" के लिये स्क्रिप्ट लिखना चाहती हैं, और विकलांगता के मुद्दे पर जागरूकता पैदा करने और धन जुटाने के लिये एक म्यूजिक बैंड बनाना चाहती हैं। वो कहती हैं, "किसी व्यक्ति पर केवल उसकी अक्षमता का लेबल लगा देना, एक बड़ी क्षमता - समग्र मानव विकास और समावेशन उत्पन्न करने की क्षमता - को अनदेखा कर 
 
इस 'पद्मा' (कमल) में एक हज़ार पंखुड़ियाँ हैं और एक हज़ार और हैं जो अभी खुलना बाकी हैं।

तस्वीरें:

विक्की रॉय