Icon to view photos in full screen

“मुझे लिपस्टिक लगाना और जींस पहनना पसंद है। वक़्त बिताने के लिए मैं सीरियल भी देखती हूँ”

झारखंड की ‘स्टील सिटी’ बोकारो में जब रोजी निशा (21) का जन्म हुआ तो वो एक सामान्य बच्चे की तरह तंदुरुस्त नहीं थीं। वो इतनी दुबली-पतली थीं कि उसके पिता उसे उठाने तक से डरते थे। जन्म के वक़्त उनका वजन केवल 1.25 किलोग्राम था और वो ‘प्रीमैच्योर’ बच्ची थीं। जैसे-जैसे वो बड़ी हुईं, उसके माता-पिता को अहसास हुआ कि उसका शरीर पूरी तरह स्वस्थ नहीं है। इसके बाद उन्होंने अपनी बेटी के ‘CT स्कैन’ और ‘EEG’ जैसे मेडिकल टेस्ट करवाए। रिपोर्ट आने के बाद डॉक्टर ने जो कुछ बताया उससे रोजी के माँ और पिता को सिर्फ़ इतना समझ आया कि उनकी बेटी का दिमाग़ कुछ कमज़ोर है। उसके दिमाग़ में पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं है। और उसके दिव्यांगता प्रमाण पत्र में लिखा है कि उसे 'माइल्ड मेंटल रिटार्डेशन' है।

रोजी के माता-पिता ने सोचा कि विटामिन और दूसरी दवाएं उसके दिमाग़ की ताक़त को लौटा देंगीं। आज तक उनको अफ़सोस होता है कि अगर उनके पास उसे दूध और फल देने के लिए पैसे होते तो उनकी बच्ची की दिमाग़ी ताक़त बढ़ सकती थी। उसके पिता बार-बार एक ही बात दोहराते हैं, "उसे हॉर्लिक्स पीने की ज़रूरत है और हमारे पास हॉर्लिक्स ख़रीदने के भी पैसे नहीं हैं।" जब वो छह साल की थीं, तो उन्होंने उसे आंगनवाड़ी में भेजने की कोशिश की, लेकिन ये साफ़ हो गया कि रोजी कुछ भी पढ़कर सीखने या याद करने में असमर्थ थी।

हालांकि उसके परिवार में दिव्यांगता कोई नई बात नहीं है। रोजी के पिता बोकारो स्टील प्लांट में काम करते थे लेकिन एक लंबी बीमारी की वजह से उनकी नौकरी चली गई। उनके सबसे बड़े बेटे मोहम्मद जावेद सही से देख नहीं सकते। जावेद को बचपन से ही एक आँख से धुंधला दिखाई देता था। उनकी दादी को लगा कि जावेद पढ़ाई में इसलिए पिछड़ते जा रहे हैं, क्योंकि उन्हें बोकारो में ख़राब संगति मिल गई है। जिसके बाद दादी ने उनको पश्चिम बंगाल के पुरुलिया भेज दिया। जहाँ उन्होंने 9वीं क्लास तक पढ़ाई की। लेकिन फिर उनको घर की याद सताने लगी, तो वो 10वीं की पढ़ाई पूरी करने के लिए वापिस बोकारो आ गए।

इसके बाद जावेद को दिल्ली में नौकरी मिली और उन्होंने 2014 में 24 साल की सुरैया परवीन से शादी भी कर ली। लेकिन सिर्फ़ एक साल बाद ही, जावेद की दूसरी ठीक आँख में भी दिक़्क़त होने लगी। इलाज के बावजूद उनकी हालत बिगड़ती गई। वो दिल्ली से बोकारो लौट आए, जहां एक डॉक्टर की नासमझी की वजह से जावेद की आंख की रोशनी पूरी तरह चली गई।

फ़िलहाल रोजी और उसके माता-पिता उसके चाचा के घर में एक कमरे में रहते हैं। जावेद और उसका भाई जाहिद प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मिले 1.20 लाख रुपये और रिश्तेदारों से मिले पैसों की मदद से बने दो कमरों के घर में रहते हैं। जिसमें एक कमरे में जावेद और सुरैया रहते हैं। जबकि 20 साल के जाहिद ने दूसरे कमरे के एक हिस्से को बिस्किट नमकीन जैसी परचून का सामान बेचने वाली एक छोटी दुकान में बदल दिया है। हालांकि इससे वो महीने में 800 रुपये से भी कम की कमाई कर पाते हैं। उन्होंने केंद्र सरकार की योजना के तहत शौचालय भी बनवाया है। राशन में मिले चावल और रोजी और उसके पिता को मिलने वाली पेंशन के सहारे ही ये परिवार गुज़र बसर करता है।

रोजी अपने रोज़ की दिनचर्या ख़ुद कर पाती हैं, और इसके अलावा वो अपने घर के काम भी कर सकती हैं। क्या उसे किसी तरह के रोज़गार के लिए ट्रेनिंग दी जा सकती है? क्या ये ख़्याल भी उनके माता-पिता के दिमाग़ में नहीं आया? वो अपना पूरा दिन TV देखने में बिताती हैं। किसी भी किशोर उम्र लड़की की तरह उसे भी लिपस्टिक लगाना, जींस और टी-शर्ट पहनना पसंद है। बेहद प्यार करने वाले उसके माता-पिता उसे वो सब कुछ ला कर देते हैं, जो वो ख़रीदना चाहती है, फिर चाहे वो नए कपड़े हों या नई सैंडल। वो स्कूल भले ही नहीं जाती, लेकिन जब वो अपने पिता से स्कूल बैग मांगती है, तो उसके पिता भला उसे कैसे मना कर सकते हैं?

तस्वीरें:

विक्की रॉय