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"मेरे तीरंदाजी के कोच मुझे पैरालिंपिक को लक्ष्य बनाने के लिये प्रोत्साहित कर रहे हैं, लेकिन भाग लेने के लिये मुझे एक महंगे मिश्रित (कम्पाउन्ड) धनुष का उपयोग करना होगा"

हमें संदेह होता है कि स्टोक गाँव के रिगज़िन तमचोस (34) जब अपनी 11 वर्षीय भतीजी नंगसल लामो को हर सुबह स्कूल जाते हुये देखते हैं तो क्या को कभी-कभी मन से कोई याद गुज़रती है। यह वही सरकारी स्कूल है जिसमें रिगज़िन जाते थे - जब तक कि उनकी पढ़ाई रुक नहीं गई थी और जिसमें उनकी कोई गलती नहीं थी।

रिगज़िन, जो “छोटे पैरों के साथ पैदा हुये थे, कहते हैं, "मुझे पढ़ाई में बहुत दिलचस्पी थी।" वो अपने "बहुत मददगार" शिक्षक और सहपाठियों को याद करते हैं जिन्होंने यह सुनिश्चित किया कि उनकी विकलांगता उनकी प्रगति में बाधा न बने। कक्षा 3 में वे बीमार पड़ गये और उन्हें एक महीने तक घर पर रहना पड़ा। जब वो ठीक हुये तो उन्होंने पाया कि उनके स्कूल जाने का रास्ता बंद हो गया था। वो खेत पारकर एक संकरे रास्ते से जाते थे, लेकिन अब किसान ने उसपर कब्जा कर लिया था, उसे खोदकर क्यारियाँ बना ली थीं। कोई तरीका नहीं था कि रिगज़िन इन बाधाओं से कोई रास्ता निकाल पाते।

स्कूल छोड़ने के बाद उनकी रुचियों में से एक पारंपरिक लद्दाखी पेंटिंग करना था। उन्होंने फोटोग्राफर विक्की रॉय (जिन्होंने रेवा (REWA) सोसाइटी के त्सेरिंग दोरजे के माध्यम से रिगज़िन से संपर्क किया) के लिये एक लकड़ी के बक्से के पास पोज़ दिया, जिसे उन्होंने पारंपरिक शैली में रंगा था। यह उनकी वर्तमान नौकरी में था कि उनमें तीरंदाजी के लिये एक जुनून पैदा हुआ, एक ऐसा खेल जो लद्दाख की सांस्कृतिक विरासत का एक अभिन्न अंग है। पिछले पाँच वर्षों से वे लेह शहर में पीपुल्स एक्शन ग्रुप फॉर इंक्लूजन एंड राइट्स (PAGIR) संस्थान में कार्यरत हैं और 6000 रुपये मासिक वेतन कमाते हैं। PAGIR संस्थान द्वारा प्रदान की गई रेट्रोफिटेड स्कूटी पर सवार होकर, वे घर से संस्थान की रीसाइक्लिंग इकाई तक 17 किमी की यात्रा करते हैं, जहाँ वे पाँच अन्य लोगों के साथ तारा (TARA) बेकार कागज रीसाइक्लिंग मशीन चलाते हैं। 

जब संस्थान को खेल प्रशिक्षक मिलने लगे, तो रिगज़िन ने तीरंदाजी में प्रशिक्षण लेने का विकल्प चुना। उनके कोच स्टैनज़िन डॉलर हैं, जो राष्ट्रीय खेल संस्थान से डिप्लोमा धारक हैं, जिन्होंने इस साल की राष्ट्रीय चैंपियनशिप में भाग लेने वाली लद्दाख तीरंदाजी टीम को कोचिंग दी थी। वे उन्हें पैरालिंपिक को अपना लक्ष्य बनाने के लिये प्रोत्साहित करती रही हैं। वे कहते हैं, "भाग लेने के लिये मुझे एक मिश्रित धनुष खरीदना होगा, जो महंगा है"। इन दिनों वे हर दिन सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक अभ्यास करते हुये अपने लक्ष्य को सुधारने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।

संस्थान में, एक कनाडाई कोच लद्दाख के एक अन्य लोकप्रिय खेल आइस हॉकी में लोगों को प्रशिक्षण दे रहे थे। रिगज़िन की दिलचस्पी थी, लेकिन इससे पहले कि वे इसके लिये अपना नाम दे पाते, उन्हें और उसके पूरे परिवार को कोविड-19 हो गया। यह छह महीने पहले की बात है। लेह के अस्पताल ले जाते समय उनके पिता की मौत हो गई। उनकी मां त्सवांग डोल्मा और उनकी बहन त्सेरिंग चोंडोल अस्पताल में भर्ती होने से बच गये और उनके शरीर में दर्द और गंध और स्वाद के अस्थायी नुकसान जैसे हल्के लक्षण थे।

रिगज़िन के भाई यौंटन थारचेन, जो पूर्व में अपने पिता की तरह सेना में थे, तीन बच्चों के साथ विवाहित हैं और अलग रहते हैं, लेकिन रिगज़िन का कहना है कि उनका परिवार काफी करीब है जो अक्सर त्योहारों पर साथ मिलते हैं। उनका पसंदीदा त्योहार लोसार, तिब्बती नव वर्ष है, जिसके बारे में उनका कहना है कि यह दिवाली के समान है: बुराई के खिलाफ अच्छाई की लड़ाई। दीया जलाने के बजाय वे बुरी आत्माओं को दूर भगाने के लिये जलती हुई मशालें का एक जुलूस निकालते हैं।

अपने खाली समय में रिगज़िन संगीत सुनते हैं, दोस्तों से मिलते हैं और थोड़ा खाना भी बनाते हैं, उनका पसंदीदा भोजन पारंपरिक तिब्बती व्यंजन - मोमोज, पाबा और थुकपा है। अपने भविष्य के बारे में सोचते हुये वे कहते हैं, “मैं शादी करना चाहता हूँ। और मुझे उम्मीद है कि तीन साल में मुझे पैरालंपिक में प्रतिस्पर्धा करने का मौका मिलेगा।“ हमें कोई कारण नहीं दिखता कि उनकी दोनों इच्छाएँ पूरी न हों!


तस्वीरें:

विक्की रॉय