नई दिल्ली की हिमांशी सरदाना (32) ने शिक्षा और नौकरी की तलाश के अपने अनुभवों की प्रतिक्रिया के रूप में 2020 में डिकोड डिसेबिलिटी नामक एक फेसबुक पेज शुरू किया। सेरेब्रल पाल्सी (CP) के साथ जन्म लेने के कारण, वे सुगम्य कार्यस्थलों की पैरवी करने और विकलांगता पर बातचीत शुरू करने के लिए एक मंच बनाना चाहती थीं। उन्होंने उम्मीद नहीं की थी कि यह मंच किसी ऐसे व्यक्ति का ध्यान आकर्षित करेगा जो उनका जीवन साथी बन जाएगा!
रेवंत कत्याल (31) को 2021 में एचआर पेशेवरों के एक समुदाय, पीपल मैटर्स के लिए एक पायलट प्रोजेक्ट करते समय डिकोड डिसेबिलिटी के बारे में पता चला। वे पहले विकलांग व्यक्ति (PwD) थे जिन्हें कंपनी ने काम पर रखा था और वे चाहते थे कि वे एक ऐसी टीम बनाएं जिसमें अधिक विकलांग लोग शामिल हों। हिमांशी और रेवंत का कार्यस्थल वाला रिश्ता तब व्यक्तिगत हो गया जब उन्हें एहसास हुआ कि उनके बीच कितनी समानताएं हैं।
हिमांशी एक “ठेठ पंजाबी संयुक्त परिवार में पली-बढ़ी हैं, जहाँ घर अंतहीन प्यार, हंसी, दावतों से भरा हुआ है।” परिवार ने उन्हें रोका नहीं और वे जो भी कर सकती थीं, करने के लिए प्रोत्साहित किया। वे याद करती हैं, "ज़्यादातर बच्चे डॉक्टरों के पास जाना पसंद नहीं करते, लेकिन मुझे अपने फिजियोथेरेपी सेशन बहुत पसंद थे!" "वहाँ [पंडित दीनदयाल उपाध्याय राष्ट्रीय शारीरिक विकलांग व्यक्ति संस्थान] के डॉक्टरों ने इसे बहुत मज़ेदार बना दिया, खेल खेले और मुझे टॉफियाँ खिलाई। वहाँ मैं अलग नहीं थी, मैं बाकी सभी की तरह ही थी।"
हालाँकि, स्कूल में सब कुछ वैसा नहीं था। वे दूसरे बच्चों से अलग दिखती थीं क्योंकि वे अलग तरह से चलती थीं और ऑर्थोपेडिक जूते पहनती थीं। उनके आस-पास कोई नहीं जानता था कि CP क्या होता है। कक्षा 4 में, उन्हें छोड़कर पूरी कक्षा को रामलीला प्रतियोगिता में भूमिकाएं दी गईं और जब उनकी माँ ने टीचर को उन्हें शामिल करने के लिए मनाने की कोशिश की, तो टीचर उन्हें गायन मंडली का हिस्सा बनने देने के लिए सहमत हो गए। हिमांशी बताती हैं, "लेकिन मैं गाना नहीं गाना चाहती थी"। "मेरे टीचर के लिए, वे मुझे गाने की अनुमति देकर बस एक खानापूर्ति रहे थे। लेकिन समावेश केवल खानापूर्ति करना भर नहीं है।"
कॉलेज में उनके अंतर स्पष्ट रूप से सामने आए। उन्होंने शहीद सुखदेव कॉलेज ऑफ बिजनेस स्टडीज से ग्रेजुएशन की, जहाँ कई कंपनियां नए ग्रेजुएटों को नियुक्त करने के लिए आती थीं। हिमांशी ने आमने-सामने बातचीत के अंतिम दौर को छोड़कर सभी दौर पास कर लिए। अपने पहले साक्षात्कार के दौरान वे तब हैरान रह गई जब कंपनी के प्रतिनिधि ने सीधे पूछा, "क्या आपके पैर में पोलियो है?" उन्होंने महसूस किया कि सभी साक्षात्कारकर्ता उनकी विकलांगता को लेकर असहज महसूस कर रहे थे। उन्होंने स्ट्रीम बदलने का फैसला किया और दिल्ली विश्वविद्यालय से सोशल वर्क में मास्टर्स किया। वे कहती हैं, "MSW ने मुझे बदलाव लाने के लिए हथियार दिए।" "इसने मुझे अपनी विकलांगता के बारे में अधिक आत्मविश्वास दिया और मुखर बना दिया।"
आज वे _ह्यूमन फैक्टर_ कंपनी के लिए D&I HR विशेषज्ञ के रूप में काम करती हैं। वे अप्रैल 2024 में और रेवंत पाँच महीने बाद एक्सेसिबिलिटी विशेषज्ञ के रूप में शामिल हुए। _ह्यूमन फैक्टर_, विकलांगता समावेशन के लिए भर्ती, प्रशिक्षण और संवेदीकरण कार्यक्रमों तथा समाधान के साथ बुनियादी ढांचे की पहुँच संबंधी ऑडिट के संबंध में संगठनों को परामर्श सेवाएं प्रदान करता है। रेवंत कंपनी के ग्राहकों के लिए HR परामर्श प्रदान करते हैं और विकलांगता समावेशन पर केंद्रित B2C बाज़ार के लिए एक सेवा लाइन विकसित कर रहे हैं। वे एक मान्यता प्राप्त एक्सेसिबिलिटी ऑडिटर बनने के लिए सर्टिफिकेट कोर्स भी कर रहे हैं।
जब रेवंत किंडरगार्टन में थे, तब उनके टीचरों ने उनकी अस्थिर चाल को देखा और उनके माता-पिता को सूचित किया, जो उन्हें मेडिकल चेक-अप के लिए ले गए। वे कहते हैं, "अब तक दो मुख्य डाइग्नोज़ स्पाइनल मस्कुलर अट्रोफी और वंशानुगत मोटर और संवेदी न्यूरोपैथी रहे हैं।" नियमित फिजियोथेरेपी के साथ वे चलने में सक्षम थे, लेकिन नौवीं कक्षा में एक दुर्घटना ने उन्हें एक साल के लिए बिस्तर पर रहने के लिए मज़बूर कर दिया, जिसके बाद उन्होंने व्हीलचेयर का उपयोग करना शुरू कर दिया। वे बताते हैं, "मुझे अपने जीवन के इस नए चरण की आदत डालने में कुछ महीने लगे"। "मेरे परिवार ने मेरा हर समय साथ दिया और मेरे अंदर सकारात्मक दृष्टिकोण बनाने में मदद की। हर झटके ने मुझे और मज़बूत बनाया।" उन्होंने भावनात्मक संघर्ष से निपटने के लिए मानसिक शक्ति भी विकसित की, जब 2012 और 2017 के बीच उन्होंने अपने नाना-नानी और फिर अपनी माँ को खो दिया।
किशोरावस्था में ही रेवंत को आत्मनिर्भर होने की तीव्र इच्छा थी। एक दिन जब वे कक्षा 10 में थे, तो वे अपने दोस्तों के साथ व्हीलचेयर पर बैठकर फिल्म देखने गये। उन्होंने अपनी माँ से कहा कि वे खुद वापस आ जाएंगे, लेकिन माँ ने उन्हें लेने के लिए आने पर ज़ोर दिया। उन्हें बहुत गुस्सा आया था। घर पहुँचने पर उन्होंने अपने माता-पिता को बैठाया और उन्हें दृढ़ता से कहा कि वे उनके साथ उनकी बड़ी बहनों जैसा ही व्यवहार करें। "उन्होंने मुझे उस उम्र में भी अपने फैसले खुद लेने की आज़ादी दी," वे बताते हैं। "अगर उन्होंने ऐसा नहीं किया होता, तो शायद मैं कभी आत्मनिर्भर नहीं हो पाता और अपने जीवन की ज़िम्मेदारी खुद नहीं ले पाता।" क्रिकेट के शौकीन रेवंत बारहवीं कक्षा में दिल्ली व्हीलचेयर क्रिकेट टीम के लिए खेलते थे, लेकिन मोटर स्किल्स खराब होने के कारण वे अब खेल नहीं पाते। उन्होंने ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमेंट की पढ़ाई करने का फैसला किया, जिसमें उन्होंने दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से एमबीए किया। वे एक स्टार्टअप और फिर पीपल मैटर्स से जुड़ गए।
हिमांशी न केवल उनके साथ अच्छी तरह घुलमिल गईं, बल्कि उनसे शादी करने के अपने फैसले पर भी अड़ी रहीं। जब उनके परिवार ने रेवंत की पृष्ठभूमि के बारे में जानना चाहा तो उन्होंने उनकी अच्छी नौकरी, उनके अच्छे परिवार के बारे में बताना शुरू किया... और अंत में कहा कि वे व्हीलचेयर का इस्तेमाल करते हैं। परिवार वाले इस बात से हैरान थे कि वे एक साथ जीवन के विभिन्न अनुभवों और पहलुओं को कैसे संभालेंगे। लेकिन धीरे-धीरे हिमांशी ने उन्हें खुद अपनी आँखों से उनके जीवन को देखने के लिए राजी किया। रेवंत के साथ लंच डेट ने परिवार वालों को बहुत प्रभावित किया; उन्होंने देखा कि वे कितने समझदार हैं, कैसे उन्होंने सही रेस्तराँ चुना और खुद अपनी कस्टमाइज़्ड कार में आए।
15 नवंबर 2024 को शादी के बंधन में बंधने से पहले ही, वे एक हेल्पर के साथ कसौली में छुट्टियाँ मनाने गए, ताकि अपने भविष्य के जीवन के व्यावहारिक पहलुओं को परख सकें। अब उनका सामान्य सप्ताहांत बाहर समय बिताना है, तथा रेवंत खुद प्रोग्राम बनाते हैं, क्योंकि वे बहुत सावधानीपूर्वक प्लानिंग करते हैं। हिमांशी हंसते हुए कहती हैं, “वे हर चीज़ के लिए एक्सेल शीट बनाते हैं, यहाँ तक कि जब हम छुट्टियों में सफर करते हैं तब भी”! “हम हाल ही में सिंगापुर गए थे और उसने हर चीज़ को नोट करके रखा था।” इस जोड़े के लिए जीवन का मतलब है "जिज्ञासा के साथ खोज करना और जगहों को ज़्यादा सुगम्य बनाने में आनंद पाना।" इस बीच हिमां_डिकोड डिसेबिलि_ पेज स्वाभाविक रूप से बढ़ रहा है। वे कहती हैं, "इससे मुझे प्रोत्साहन मिलता है कि यह पेज़ एक ज़रूरत को पूरा कर रहा है।" कौन जानता है कि यह एक और 'विकलांगता' प्रेम कहानी को जन्म दे या नहीं!