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"मैंने कभी खुद को दूसरों से कम काबिल नहीं समझा और मैंने कभी हार नहीं मानी"

जब रामस्वरूप अहिरवार चार साल के थे, तब वे बीमार पड़ गये और उनके बचने की उम्मीद नहीं थी। लेकिन वो बच गये, हालाँकि उनके पैर लगातार कमज़ोर होते गये। उनके माता-पिता ने अस्पतालों और मंदिरों के चक्कर लगाये और आज उनके एक पैर में 70 प्रतिशत और दूसरे में 30 प्रतिशत की ताकत है।
 
इस सब ने उन्हें पूरी तरीके से जीवन जीने से नहीं रोका नहीं। भोपाल ये 39 वर्षीय व्यक्ति शादीशुदा हैं; उनके और उनकी पत्नी रजनी के दो बच्चे हैं: एक वर्षीय कुणाल और सात वर्षीय सुहानी। उनके माता-पिता और एक छोटा भाई और बहन पास में ही शाहपुरा में रहते हैं। 12वीं पास करने के बाद उन्होंने फिजियोथेरेपिस्ट बनने का प्रशिक्षण लिया। वे कॉलिपर्स और बैसाखियों का उपयोग करते हैं और शुक्र है सरकार की विकलांग व्यक्तियों के लिये नीति का, यह उन्हें तीन साल में एक बार मामूली कीमत पर प्राप्त होती हैं। जिस रेल रियायत के वे हकदार हैं, वे उसका पूरा फाइदा लेते हैं। वे सीढ़ियाँ चढ़ सकते हैं, बसों में यात्रा कर सकते हैं, और संशोधित कार और दोपहिया वाहन चला सक सकते हैं। विकलांग व्यक्तियों के लिये संयुक्त क्षेत्रीय केंद्र, भोपाल में अपने फिजियोथेरेपी प्रशिक्षण के हिस्से के रूप में, उन्हें कुछ हफ़्ते के लिये खुद दिल्ली जाने की ज़रूरत पड़ी, उन्होंने वो भी किया।
 
अपनी विकलांगता को अपनी महत्वाकांक्षा के आड़े नहीं आने देने के लिये दृढ़ संकल्प, रामस्वरूप ने शरीर सौष्ठव पर ध्यान केंद्रित किया, खासकर जब उनके पिता ने उन्हें शिक्षित करने के लिये संघर्ष किया। आज, वे अपना मेहनत वाला फिजियोथेरेपी काम उतनी ही बढ़िया तरीके से करते हैं जितना की कोई भी अन्य सक्षम व्यक्ति करता है, उनके काम के लिये लंबे समय तक खड़ा रहना पड़ता है। वे एक निजी संस्था के साथ काम करते हैं जहाँ विभिन्न प्रकार की विकलांगता वाले बच्चे फिजियोथेरेपी के लिये आते हैं। वे उन लोगों के घर भी जाते हैं जो बाहर निकलने में असमर्थ हैं, या जहाँ परिवार उन्हें बाहर लाने में असमर्थ हैं - या तो सामाजिक कलंक, या शर्मिंदगी, या अक्षमता के कारण।
 
अपने जीवन के एक चरण पर, उन्होंने एक कारखाने में काम किया जो उन लोगों के लिये कुर्सियाँ बनाने में मदद करता था जिन्हें बैठने के लिये सहारे की आवश्यकता होती थी - मुख्य रूप से सेरेब्रल पाल्सी वाले लोगों के लिये। जैसे-जैसे उन्होंने और अधिक सीखा, उन्होंने अपना स्वयं का सेटअप खोला - रोगी का अध्ययन करना, उनकी आवश्यकताओं का पता लगाना, कुर्सी को डिज़ाइन करना और फिर इसे एक बढ़ई से बनवाना। बाद में, ऐसी कुर्सियों का बाज़ार कम हो गया क्योंकि रेडीमेड कुर्सियाँ उपलब्ध हो गईं और कस्टम-निर्मित कुर्सियों की तुलना में बहुत कम कीमत पर। इसके अलावा, जिन बढ़इयों के साथ वे काम कर रहे थे, वे भी भोपाल से चले गये। हालाँकि, अगर आज कोई उनके पास जाता है, तो वे स्वेच्छा से कुर्सी डिज़ाइन करते हैं और उन्हें अपने लिये कहीं और बनवाने के लिये कहते हैं।
 
रामस्वरूप का मानना है कि कभी हार नहीं माननी चाहिये। उनका कहना है कि उन्होंने कभी भी खुद को दूसरों से कम काबिल नहीं समझा। उनके स्कूटर में तीन पहिए हैं और कार में हाथ से चलने वाले ब्रेक के साथ स्वचालित गियर हैं। इस तरह के संशोधन पहले काफी महंगे और कठिन थे, क्योंकि सब कुछ आयात करना पड़ता था। अब इन संशोधनों को निर्माता द्वारा स्थानीय रूप से काफी सस्ती कीमत पर किया जाता है।
 
उनकी शादी "लव-अरेंज्ड" थी। उनकी पत्नी उनकी बहन की सहेली थीं। वे एक-दूसरे को पसंद करते थे, परिवार मिले और इस मेल के लिये राजी हो गये। उनकी विकलांगता उनके लिये कभी कोई मुद्दा नहीं रही। एक किशोर और युवा वयस्क के रूप में उनके जीवन कई वर्षों के दौरान, ऐसे संशयवादी लोग थे जो उनके पिता को यह कहते हुये हतोत्साहित करते थे कि उनके पास कुछ भी नहीं होगा - कि वे जीवित रहने या खुद की देखभाल करने में सक्षम नहीं होंगे। वे कहते हैं, “अब वे उन लोगों के बच्चों की तरह ही संपन्न है। उन्हें अपने परिवार में कभी किसी से निराशा का सामना नहीं करना पड़ा। वे उनके बारे में कभी शर्मिंदा नहीं हुये, और केवल उन्हें अपने हितों को आगे बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित किया।
 
जहाँ तक उनके सपनों की बात है, उन्होंने उन सभी को हासिल किया है, जिसमें हवाई जहाज और हेलीकॉप्टर में उड़ान भरना भी शामिल है! उन्हें विश्वास है कि वे जो भी ठान लेंगे, उसे हासिल कर लेंगे क्योंकि उन्होंने कभी अपने आप को किसी भी तरह से कमतर नहीं समझा - कभी नहीं सोचा कि उनकी अक्षमता योग्यता की कमी है। वे खाना बनाते हैं, अपने बच्चों के साथ खेलते हैं और वह सब कुछ करते हैं जो एक औसत व्यक्ति करता है। वे कई विकलांग लोगों को जानते हैं जिनके परिवार उन्हें कभी बाहर नहीं ले गये, उन्हें कभी आत्मनिर्भर होने के लिये प्रेरित नहीं किया। हालाँकि, उनके माता-पिता ने इसके विपरीत ही किया। और देखिये आज उनकी ज़िंदगी कैसी है!


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विक्की रॉय