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"मेरी मुख्य चिंता वित्तीय सुरक्षा है। मैं अपने परिवार पर अनावश्यक बोझ नहीं डालना चाहता”

देहरादून के राकेश कोठियाल (34) के पास हर दिन, ऐसे लोगों के कम से कम दो फोन कॉल आते हैं जो उदास (डिप्रेस्स) हैं या आत्महत्या की सोच रहे होते हैं। वे उनके यूट्यूब (YouTube) चैनल RKUnsungWarrior (<https://youtube.com/@RKUnsungWarrior>) को देखने के बाद उन्हें कॉल करते हैं। एक बार एक हताश कॉलर ने कहा कि वह ज़हर पीना चाहता है। राकेश ने अपने अनूठे शान्तिदायक (थेरप्यूटिक) बातचीत के तरीके से उन्हें मना लिया। वे बताते हैं, "मैं हंसी-मज़ाक का इस्तेमाल करता हूँ।" “मैं पहले कॉलर को अपने साथ हँसाता हूँ, और फिर मैं उसे अपनी चुनौतियों के बारे में बताता हूँ। अक्सर, लोग मुझे यह बताने के लिए वापस कॉल करते हैं कि मुझसे बात करने के बाद वे बेहतर महसूस कर रहे हैं।”
 
देखने वाला कोई व्यक्ति सोच सकता है कि राकेश, व्हीलचेयर उपयोगकर्ता, जिसे पक्षाघात है, के बारे में हंसने के लिए क्या हो सकता है। लेकिन जैसा कि आप उनके चैनल के नाम से अंदाजा लगा सकते हैं, जिसके 560 से ज्यादा सब्सक्राइबर हैं, वो एक फाइटर हैं। वे कहते हैं कि वे किसी सैनिक से कम नहीं है क्योंकि वे लगातार एक अदृश्य युद्ध लड़ रहे हैं। यह अच्छी तरह से जानते हुए कि उनकी स्थिति बादल नहीं सकती है, उनके पास गुस्सा या खुद पर तरस खाने का समय नहीं है। वो कहते हैं, "जो मेरे साथ हुआ वो किसी के साथ भी हो सकता था।“
 
जो हुआ वो एक हाइवे की दुर्घटना थी। 27 अक्टूबर 2007 को, राकेश ने अपने परिवार के खेत में बीज बोने का काम पूरा कर लिया था और अपनी बाइक से गढ़वाल, जहाँ वे रहते थे, से मेडिकल जांच के लिए श्रीनगर जा रहे थे। यह पुलिस बल में उनकी भर्ती का अंतिम चरण था। शाम करीब 4 बजे एक ट्रक से उसकी आमने-सामने टक्कर हो गई। चालक फरार हो गया। राकेश के हेलमेट से उसकी जान तो बच गई लेकिन उनकी रीढ़ की हड्डी टूट गई। उनके गले में स्टील की प्लेट लगाने के ऑपरेशन के बाद उनके परिवार को बताया गया कि सर्जरी के बाद वे तीन दिन से ज़्यादा ज़िंदा नहीं रहेंगे। तब से 15 साल हो गए हैं! 
 
अच्छी मेडिकल सुविधाओं के कारण उनका परिवार देहरादून चला गया, हालाँकि इससे उनके पैसों की स्थिति पर दबाव पड़ा। राकेश के पिता गोपाल राम, जो अब 83 वर्ष के हैं, एक रिटायर्ड  सैनिक हैं। उनकी सेना की पेंशन अकेले उनके बेटे की सर्जरी, दवाइयां, दो महीने अस्पताल में रहने, व्हीलचेयर, फिजियोथेरेपी और अन्य बहाली के उपायों के खर्चों को मुश्किल से पूरा कर सकती थी। दोस्तों ने अपना योगदान दिया। दुर्घटना के मुआवजा की कोई सूरत नहीं थी क्योंकि राकेश के पास लर्नर लाइसेंस था और उनकी बाइक का बीमा नहीं था। 
 
ठीक होने की उनकी यात्रा का वर्णन करने के लिए कहने पर, राकेश कहते हैं, “मेरे परिवार का बहुत बड़ा समर्थन रहा है। इसके अलावा, मेरे पास हमेशा एक मज़बूत इच्छा-शक्ति रही है।” वे अपने माता-पिता गोपाल राम और चंद्रा देवी (65), बहन गीता (32) और भाई सागर (40) और अपने परिवार के साथ रहते हैं। जितना संभव हो उतना आत्मनिर्भर होने का दृढ़ संकल्प लिए, उन्होंने खाने, नहाने, शौचालय जाने और खुद के कपड़े पहनने की तकनीक ईजाद की है। रीढ़ की हड्डी की चोट ने उनके मांसपेशियों के नियंत्रण को गंभीर रूप से प्रभावित किया, पकड़ना, जकड़ना, चबाना और मूत्राशय और आंत नियंत्रण को बेहद मुश्किल बना दिया है। उन्हें अपने कपड़े पहनने में 20-30 मिनट लगते हैं। उन्हें अपनी रोटियों को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ने के लिए सहायता की ज़रूरत होती है, और यदि वे किसी वस्तु को गिरा देते हैं तो उनके लिए उसे उठाना असंभव होता है।
 
राकेश अपनी मांसपेशियों की ताकत बनाए रखने और अपने वज़न को नियंत्रित रखने के लिए बहुत सावधान रहते हैं। गीता, फिजियोथेरेपी करने में उनकी मदद करती हैं और वे दिन में दो बार एक घंटे के लिए विशिष्ट योगिक श्वास अभ्यास करते हैं। उन्होंने हाल ही में दोस्तों से पैसे उधार लिए और एक मोटर से चलने वाली व्हीलचेयर खरीदी, जिसने उनके जीवन की गुणवत्ता को बहुत बढ़ा दिया है। अब वो न सिर्फ कुछ घरेलू काम कर सकते हैं बल्कि बाहर जाकर मिलना-जुलना और घूमना-फिरना भी कर सकते हैं। वे अपनी व्हीलचेयर में स्टेशनरी की एक छोटी सी दुकान तक जाते हैं, जो उनकी खुद की है और वो उसे खुद ही चलाते हैं, उसका नाम आर.के. आर्ट एंड क्राफ्ट स्टेशनर्स है। 
 
राकेश बीए प्रथम वर्ष की पढ़ाई कर रहे थे जब वे दुर्घटना का शिकार हुए, और इसलिए उन्होंने नौकरी की कल्पना नहीं की थी। इसके अलावा, उनके अनिश्चित स्वास्थ्य ("कुछ दिन दूसरों दिनों की तुलना में कठिन होते हैं") को देखते हुए, वे काम पर रोज़ उपस्थित नहीं हो सकते हैं। उन्हें सरकार से प्रति माह ₹ 1500 की विकलांगता पेंशन मिलती है। उन्होंने लैपटॉप चलना सीख लिया है, लेकिन वे किसी कंप्यूटर कोर्स का खर्च नहीं उठा सकते। वे अपनी दुकान को बढ़ाकर अपनी कमाई बढ़ाना चाहेंगे। अंत में वे अपने माता-पिता की ज़िंदगी के बाद अपने भाई पर बोझ नहीं बनना चाहता।
 
इस सब के बीच, उनका अपने चैनल पर अन्य विकलांग व्यक्तियों के बीच प्रेरणा और आशा फैलाने वाले वीडियो अपलोड करना जारी है।


तस्वीरें:

विक्की रॉय