नील कमल साउ पश्चिम बंगाल के पश्चिम मेदिनीपुर के खंडरुई गांव में साइकिल की दुकान चलाते थे। दुकान उनके घर से जुड़ी हुई थी जहाँ वो अपनी पत्नी अनीता और नवजात बेटी पूजा के साथ रहते थे। एक दिन, एक जली हुई अगरबत्ती की राख से निकली चिंगारी ठीक उसके नीचे पेट्रोल के डिब्बे पर गिर गयी और दुकान आग की लपटों में घिर गयी। आग घर के कुछ हिस्सों में भी पहुँच गयी। दुकान में लगी आग पर काबू पाने में लोग इतने व्यस्त थे कि घर में सो रही एक साल की पूजा को ही भूल गये। चिलचिलाते ताप ने उसकी कोमल त्वचा को पिघला दिया था।
खंडरुई में केवल एक चिकित्सा केंद्र था जो साधारण बीमारियों का इलाज कर सकता था, इसलिये नील कमल और अनीता, पूजा को मेदिनीपुर के सरकारी अस्पताल में ले गये। वो वहाँ एक हफ्ते तक रही जिस दौरान उनकी त्वचा पर क्रीम लगायी गयी। उनके माता-पिता उन्हें कोलकाता ले गये, जहाँ उन्होंने लगभग छह महीने तक नील रतन सरकारी अस्पताल में इलाज कराया, जिससे परिवार की आर्थिक स्थिति चरमरा गयी। जब वे खंडरुई लौटे, तो पड़ोसियों और रिश्तेदारों ने दंपति से कहा, “आपको उसे मरने देना चाहिये था। उसकी हालत में बच्ची केवल एक बोझ ही होगी।”
दुकान से होने वाली आमदनी को बढ़ाने के लिये नील कमल ने बाज़ार में और ठेले पर सब्जियां बेचना शुरू कर दिया। पूजा को तीन बहनें मिलीं - पीयू, प्रिया और प्रीति - जो उनसे चार, छह और आठ साल छोटी थीं। वे एक स्थानीय सरकारी स्कूल में पढ़ती थीं। पूजा स्कूल जाने से डरती थी, जहाँ उसके विकृत चेहरे के कारण अन्य विद्यार्थियों ने उसे अस्वीकार कर दिया था। वो याद करती हैं, "कुछ मुझसे डरते थे"। "कुछ ने कहा कि मैंने अपने पिछले जन्म में कुछ बुरे काम किये होंगे।" नील कमल अपनी बेटी के आँसू नहीं देख सके। वो उससे कहते, "तुम रोओगी तो मैं भी रोऊँगा।" उन्होंने उसे जीवन के हर चरण में दिलासा दिया और प्रेरित किया।
पूजा जो अब आत्मविश्वास से लबरेज 22 साल की हो गयी हैं, कहती हैं, ''मेरे पिता मेरी ताकत रहे हैं”। "जब भी कोई मुझसे कहता है, 'तुम ऐसा नहीं कर सकती', तो मैं यह साबित करने के लिये प्रेरित हो जाती हूँ कि मैं कर सकती हूँ।" वे एक घटना को याद करती हैं जब वो ग्यारहवीं कक्षा में थीं। पड़ोस के एक लड़के ने उन्हें यह कहते हुये चुनौती दी थी, "तुम बाइक नहीं चला पाओगी।" उन्होंने अपने पिता को उन्हें सिखाने के लिये कहा। जीत की खुशी से भरकर वो कहती हैं, "मैंने एक दिन के अंदर बाइक चलाना सीख लिया"। "उस लड़के ने बहुत अधिक समय लिया था!"
परिवार की कमाई में तब इज़ाफा हुआ जब नील कमल को एक गैस कंपनी में नौकरी मिल गयी और अनीता ने स्थानीय सरकारी अस्पताल में कैंटीन चलाना शुरू कर दिया। बैंक और रिश्तेदारों से कर्ज़ के साथ, जिसे वे अभी भी चुका रहे हैं, उन्होंने अपनी ज़मीन के टुकड़े पर एक छोटा सा घर बनाया। पूजा ने हाई स्कूल पूरा किया और पश्चिम मेदिनीपुर के बेल्दा कॉलेज से बंगाली में सम्मान के साथ ग्रेजुएशन की। कुछ समय पहले तक वे बेंगलुरू में विंध्य ई-इन्फोमीडिया में काम कर रही थीं, लेकिन जब उन्होंने देखा कि उनके पास इतने पैसे नहीं है कि वो घर भेज सकें तो उन्होंने नौकरी छोड़ दी। इसके अलावा, वे अपने हाथ की सर्जरी करवाना चाहती थीं।
जब हमने पूजा से बात की तो वे खंडरुई में थीं, कैंटीन चलाने में अपनी माँ की मदद कर रही थीं। उन्होंने हमें बताया कि हाथ की सर्जरी से कुछ अतिरिक्त मांस निकल जायेगा। कुछ साल पहले उनके पैर की सर्जरी हुई थी। वे बताती हैं, "तब तक मैं जूते नहीं पहन सकती थी क्योंकि जलने से मेरे पैरों पर असर पड़ा था, लेकिन सर्जरी के बाद मैं उन्हें पहन पा रही हूँ।"
पूजा एक खुदरा दुकान चलाने की इच्छा रखती हैं जो या तो परचून या साड़ी बेचती हो, जिसके लिये उन्हें 2 लाख रुपये का निवेश करने की ज़रूरत है। वे बताती हैं कि चूंकि उनके माता-पिता पीयू के लिये दूल्हे की तलाश कर रहे हैं, इसलिये उसे बढ़ते खर्च का अंदेशा है। वो बस इतना चाहती हैं कि वो अपने परिवार का हर तरह से सहारा बनें।