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“लोगों को मेरी पत्नी से प्रेरणा लेनी चाहिए, जिसने एक दृष्टिहीन शख़्स से शादी करने में ज़रा भी हिचकिचाहट नहीं दिखाई।”

एक सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाले टीचर की शादी में कई VIP हस्तियों और एक पूर्व महाराजा का शिरकत करना कोई साधारण बात नहीं, दरअसल साधारण तो भाई प्रकाश चंद खीची की कहानी भी नहीं है, उनकी कहानी कई मायनों में बिल्कुल अनोखी, अलहदा है। ये कहानी है, एक दृष्टिहीन शख़्स और उसके प्यार की। एक ऐसी ख़ूबसूरत प्रेम कहानी जो पूरे जोधपुर की ज़ुबान में चढ़ गई। 
42 साल के प्रकाश राजस्थान के आसोप गाँव के रहने वाले हैं। पाँच भाई-बहनों में सबसे छोटे प्रकाश को दो साल की उम्र में एक ऐसी बीमारी ने जकड़ा कि फिर उसका इलाज नहीं हो सका और आखिरकार प्रकाश को अपनी आँखों की रोशनी गंवानी पड़ी। प्रकाश अलग ही मिट्टी के बने थे, लिहाजा वो ज़िन्दगी की जंग में डटे रहे। आठवीं क्लास तक उन्होंने जोधपुर के नेत्रहीन विकास संस्थान से पढ़ाई की, इसके बाद राजस्थान सरकार की एक योजना के तहत उन्हे दिल्ली में पढ़ाई के लिए चुन लिया गया।

 हाई स्कूल के बाद गर्मियों की छुट्टी में, प्रकाश को पता चला कि सिरोही बस स्टैंड पर जो फेरी वाले चुटकुलों और सामान्य ज्ञान की किताबें बेचते हैं, वो आमतौर पर 200 रुपये रोज़ाना तक कमा लेते हैं। प्रकाश के मन में ख़्याल आया कि क्यों न वो भी इस काम में हाथ आजमाएं कमा सकते हैं। बस फिर क्या था, उन्होंने किताबें बेचनी शुरू कर दीं। पॉलिटिकल साइंस में ग्रेजुएट होने तक वो बस स्टैंड पर किताबें बेचते रहे। इसके साथ ही उन्होने एक जूस की दुकान और STD बूथ भी खोल लिया। पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने एक टीचर-ट्रेनिंग कोर्स में दाख़िला लिया, लेकिन दृष्टिहीनों के लिए समाज में मौजूद धारणा की वजह से उन्हे  प्रैक्टिकल ट्रेनिंग देने से मना कर दिया गया। वहाँ सबका मानना था कि जब प्रकाश देख ही नहीं सकते, तो वो भला क्लास कैसे लेंगे? हालांकि उन्होने इस फ़ैसले को अदालत में चुनौती दी, आखिरकार दो साल तक चली लम्बी लड़ाई के बाद उन्हे सरकार और उस दकियानूसी सोच के ख़िलाफ़ जीत मिली। 
प्रकाश के बोलने का अंदाज़ उनकी गर्मजोशी, ज़िन्दादिली और सहज स्वभाव ने महाराष्ट्र के अमरावती की कविता महादेव पर जैसे जादू कर दिया था। कविता अपनी बहन से मिलने माउंट आबू पहुँचीं थीं, वहीं उनकी प्रकाश से पहली बार मुलाकात हुई। जल्दी ही दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गई।
19 मई 2005, ये दिन प्रकाश की ज़िन्दगी में ख़ुशियों भरे दो यादगार लम्हें लेकर आया। इस दिन उन्हें बतौर टीचर अपनी पहली नौकरी का नियुक्ति पत्र मिला और इसी दिन वो बिना वक़्त गंवाए, कविता के परिवारवालों से उसका हाथ माँगने के लिए ट्रेन से अमरावती पहुँच गए। वो पहुँच तो गए, लेकिन कविता के माता-पिता ने साफ़ इनकार कर दिया। भला वो अपनी 21 साल की पढ़ी लिखी बेटी का हाथ एक ऐसे इंसान (जो देख न सकता हो) के हाथ में देने का ‘अपराध’ कैसे कर सकते थे?

लेकिीन कविता ने भी ज़िद पकड़ ली कि “मैं शादी सिर्फ़ उसी से करूँगी।” अपने माता-पिता को इस रिश्ते के लिए मनाने में कविता को दो साल का वक़्त लग गया। आख़िरकार दोनो ने 19 फ़रवरी 2007 को पहले कोर्ट में शादी की और फिर नौ दिनों के बाद राजस्थानी रीति रिवाजों के साथ परिवार वालों की मौजूदगी में दोनों धूमधाम से शादी के बंधन में हमेशा हमेशा के लिए बंध गए। राजस्थान के उस इलाक़े में आमतौर पर न के बराबर बारिश होती है, लेकिन उस दिन बरसात हुई। एक रीज़नल अख़बार ने लिखा कि इस ख़ास जोड़े के एक होने की मौसम ने भी ख़ुशी मनाई। प्रकाश शादी में पहुँचे सभी 1500 मेहमानों का पूरा ख़र्चा ख़ुद ही उठाने पर अड़े रहे।
2013 में प्रकाश टीचर से हेडमास्टर बन गए और फिर 2017 में उनको प्रिंसिपल की पोस्ट मिल गई। वो पूरे आत्मविश्वास से कहते हैं कि “रिटायर होते-होते मैं ज़िला शिक्षा अधिकारी बन जाऊंगा”। इस सफ़र में उनकी पत्नी हमेशा उनके साथ रहीं। वो उन्हे सपोर्ट करने के लिए वो अपनी पत्नी कविता के शुक्रगुज़ार रहते हैं, साथ ही उनके हाथ की बनी दाल बाटी चूरमा और पालक पनीर के लिए भी। आज प्रकाश अच्छा ख़ासा कमा लेते हैं, उनके तीन प्यारे बच्चे हैं और उन्होने दो मंज़िला का अपने सपनों का आशियाना भी बना रखा है। पूछने पर प्रकाश कहते हैं कि वो किसी भी ऐसे पारिवारिक आदमी को नहीं जानते, जो इस मामले में उनसे ज़्यादा ख़ुश हो। 

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विक्की रॉय