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“स्कूल के बाद मैं अपनी माँ की मदद करती हूँ, बर्तन धोती’ हूँ, सब्जियाँ काटती हूँ। मेरी छड़ी मुझे आत्मनिर्भर बनाती है”

आम तौर पर, 17 साल की उम्र में किशोर जीवन के माध्यम से अपने रास्ते ढूँढना शुरू कर देते हैं। पूजा सिंह के मामले में, यह शाब्दिक है, वे अपने बेंत की मदद से अपना रास्ता खोज रही हैं। वे बिल्कुल बिना दृष्टि के पैदा हुई थीं और पहले से ही बहुत दर्द का अनुभव कर चुकी हैं। उनकी माँ हेमलता सिंह के मुताबिक, उनकी आँखें खुलने में भी कई साल लग गये।
 
भोपाल की एक आंगनवाड़ी में आशा (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) कार्यकर्ता, हेमलता ने कहा कि जिस दिन पूजा का जन्म हुआ, उनके पति ने घोषणा की कि उनका उसके साथ कोई लेना देना नहीं है और उसने अपनी पत्नी और नवजात शिशु को आर्थिक रूप से समर्थन देने से इनकार कर दिया। “मैं अपने माता-पिता के घर गयी और वहाँ डेढ़ साल तक रही। फिर मेरे ससुराल वाले आये और ज़ोर देकर कहा कि मैं वापस आ जाऊं। लेकिन मेरे पति का व्यवहार नहीं बदला। तभी मैंने नौकरी करने का फैसला किया।”
 
सभी आशा कार्यकर्ताओं की तरह, उन्हें भी नाममात्र का भुगतान किया जाता है, केवल ₹5,000 प्रति माह। इसी से वे अपने तीन बच्चों का भरण-पोषण करती हैं। पूजा जब चार साल की थी तब उनकी बहन खुशी का जन्म हुआ। इस बच्चे का प्यार से स्वागत किया गया। “इससे पूजा बहुत दुखी हो जाती थी और वह रोती थी, मुझसे पूछती थी कि उसे कोई प्यार क्यों नहीं करता। लेकिन मैं उसे समझाती थी कि मैं उसे सबसे ज़्यादा प्यार करती हूँ।
 
खुशी ने जब स्कूल जाना शुरू किया तो चीजें और भी मार्मिक हो गईं। “पूजा रोती थी, मुझसे उसे भी स्कूल भेजने की भीख माँगती थी। मैं हर किसी से मदद करने के लिये कहती रही, लेकिन वे सभी यह कहते हुये हँसे, 'तुम एक अंधी लड़की को स्कूल क्यों भेजना चाहती हो? उसपर अपना पैसा क्यों बर्बाद करना?’ कुछ ने मुझसे कहा कि उसे नेत्रहीनों के लिये छात्रावास में भेज दो, लेकिन मैं एक माँ हूँ; मैं अपने बच्चे को खुद से दूर कैसे भेज सकती हूँ?”
 
हार न मानने वालों में से, हेमलता, मदद के लिये इधर-उधर गुहार लगाती रहीं। अंत में, तत्कालीन स्थानीय विधायक, विश्वास सारंग ने सुझाव दिया कि वे विकलांग व्यक्तियों के लिये काम करने वाली एक गैर-लाभकारी संस्था, आरुषि से संपर्क करें। “मैं अपने भाई के साथ वहाँ गयी और प्रिंसिपल से मिली। शुरू में उन्होंने मुझे बताया कि वार्षिक शुल्क ₹5,000 था, लेकिन फिर इसे घटाकर ₹2,000 कर दिया।“
 
इससे पूजा के रास्ते खुल गये। अब व संगीत और रंगमंच का अध्ययन करती है, ब्रेल सीखती है, और कंप्यूटर का उपयोग करना जानती है। उसे इतिहास और राजनीति विज्ञान भी पसंद है।
 
उसकी माँ कहती हैं, “उसे जाते हुये छह साल हो चुके हैं, और अब वह पढ़ाने में शिक्षकों की मदद भी करती है। वे मुझे बताते हैं कि वह बहुत अच्छी और प्रतिभाशाली है, और मुझे उसे [मुख्यधारा के] स्कूल में भेजने के लिये कहते हैं, लेकिन मेरे पास पैसे नहीं हैं।”
 
हेमलता का संघर्ष अथक रहा है। खुशी आरएसटी मेमोरियल पब्लिक स्कूल जा रही थी। “लेकिन मैं अकेली ही कमाती हूँ। मैं उनको खिलाने-पिलाने और फिर उनकी पढ़ाई लिये भी पैसे नहीं दे सकती। ख़ुशी को कक्षा 7 में अपना स्कूल छोड़ना पड़ा क्योंकि मैं यह खर्च नहीं उठा कर सकती थी। इससे मुझे दुख होता है, लेकिन मैं कुछ नहीं कर सकती।"
 
हेमलता की सबसे छोटी बच्ची, तनु, जो अब 11 वर्ष की है, अभी कक्षा 6 में है, और उसकी फीस और किताबों का खर्च उठाना मुश्किल है। “तनु के पास सही जूते भी नहीं हैं। मेरे बच्चे और मैं अपने पति के साथ एक ही छत के नीचे रहते हैं लेकिन वो दिखाता है कि उसका हमसे कोई लेना-देना नहीं है और वह किसी भी तरह से हमारा समर्थन नहीं करता है।“
 
मानो अपने पिता की बेरुखी की भरपाई करने के लिये, बहनें एक-दूसरे से बहुत जुड़ी हुई हैं और सब कुछ एक साथ करती हैं। “अगर मैं पूजा को हॉस्टल भेजने की धमकी देती हूँ, तो वे मुझसे ऐसा नहीं करने की भीख मांगती हैं। उनका प्यार देखकर मेरा दिल खुश हो जाता है।”
 
इस बीच, पूजा अपने स्कूल में फल-फूल रही है और अपने संगीत शिक्षक की अराधना करती है। “मुझे गाना पसंद है क्योंकि इससे मुझे खुशी मिलती है। मेरा पसंदीदा गाना आतिफ असलम का 'तेरे संग यारा' है।" वे कहती हैं कि हेमलता हमेशा से गायिका बनना चाहती थीं। "लेकिन परिस्थितियों के कारण, वो नहीं कर सकीं। मुझे विशेष रूप से खुशी तब होती है जब वे अल्का याग्निक का गाना 'छोटी सी प्यारी सी नन्ही सी' गाती हैं।"
 
स्कूल अपने छात्रों को प्रदर्शन करने के लिये न केवल भोपाल बल्कि मुंबई भी भेजता है। "मैं वास्तव में अपने स्कूल से प्यार करती हूँ और वहाँ समय बिताना पसंद करती हूँ। वहाँ मेरे दो बहुत प्यारे दोस्त हैं, महिमा और पूर्वी।
 
एक बार स्कूल से वापस आने के बाद, पूजा सब्जी काटने और बर्तन धोने में अपनी माँ की मदद करती हैं। "मैं घूमने-फिरने के लिये छड़ी का इस्तेमाल करती हूँ और मुझे किसी मदद की ज़रूरत नहीं है और मैं अपने दम पर सब कुछ संभाल सकती हूँ।"
 
उसकी महत्वाकांक्षा एक गायिका बनने या रंगमंच जैसी कलाओं में आने की है। “जब मैं छोटी थी, तब मुझे बहुत बुरा लगता था जब मेरे परिवार के बड़े सदस्य केवल मेरी बहनों को प्यार करते थे, मुझे नहीं। लेकिन तब मेरी माँ हमेशा मेरे साथ खड़ी रहीं, मेरा सबसे बड़ा सहारा रहीं, और मुझे सबसे ज़्यादा प्यार करती हैं।


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विक्की रॉय