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"मेरे पास जो कुछ भी है उसके लिये मैं शुक्रगुजार हूँ लेकिन मैं सोचती हूँ कि अगर मेरी हालत बिगड़ती है तो मेरी देखभाल कौन करेगा"

जब हमने अरुणाचल प्रदेश की पाते यारो (36) से कहा कि हमें अपनी परिस्थितियों के बारे में और उन्हें विकलांगता, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (एमडी) कैसे हुई के बारे में बताने के लिये कहा, तो उन्होंने जवाब दिया, “मुझे अपने अतीत के बारे में ज़्यादा याद नहीं है। इसके बारे में सोचना बहुत दर्दनाक है।” हमने पाया कि उनके पिता, जिनकी दो पत्नियाँ थीं, की मृत्यु तब हुई जब वे पाँच वर्ष की थीं और जब वे 12 वर्ष की थीं तब उनकी माँ की मृत्यु हो गई ("वे बीमार पड़ गईं और इलाज कराने में समर्थ नहीं थीं")। जाहिर तौर पर उनकी माँ और सौतेली माँ दोनों के कई बच्चे थे, जिनमें से कई की मृत्यु हो गई थी।
 
यह ऑल अरुणाचल प्रदेश दिव्यांगजन यूथ एसोसिएशन था जिसने फोटोग्राफर विक्की रॉय को उस राज्य में (संयोग से जिसका विकलांगों के लिये सरकारी योजनाओं को लागू करने के लिये सबसे खराब ट्रैक रिकॉर्ड है) पाते और अन्य विकलांग व्यक्तियों के बारे में बताया था। जब वे  अपने बड़े परिवार को संदर्भित करती है तो पाते की आवाज़ में कड़वाहट का एक स्वर आ जाता है। कम उम्र में ही उनकी अक्षमता स्पष्ट हो गई थी और उनकी उपेक्षा की गई। वे  कहती हैं, “वे मुझे एक चारपाई पर बिठाते और पूरे दिन वहीं छोड़ देते”। उन्होंने अपने सौतेले भाइयों और सौतेली बहनों के साथ संपर्क नहीं बनाये रखा है। वे कहती हैं, ''मेरे गिनती से ज़्यादा भाई-बहन हैं लेकिन कोई मेरे बारे में पूछने नहीं आता।'' "अगर उन्हें मेरी परवाह नहीं है, तो मुझे उनके संपर्क में क्यों रहना चाहिये?"
 
पाते का कहना है कि जब वे नौ साल की थीं तो उनके चाचा उन्हें मेडिकल चेकअप के लिये ले गये थे और डॉक्टरों ने कहा था कि वे चल या बात नहीं कर पायेंगी। वे स्पष्ट नहीं थीं कि वास्तव में उन्हें एमडी है इसका डायग्नोस कब हुआ था। उनके खराब स्वास्थ्य ने उन्हें स्कूल जाने से रोका लेकिन उनकी दोनों बहनें, एक बड़ी और एक छोटी, ने औपचारिक शिक्षा प्राप्त की है। वे कहती हैं कि वे अपनी बहनों की तरह शादी करना चाहेंगी लेकिन उन्हें डर है कि संभावित पति उनकी कमज़ोरी के कारण उन्हें छोड़ सकता है।
 
एक बार, पाते ने राहगीरों को यीशु मसीह की स्तुति गाते हुये सुना। उन्होंने गाया कि "वे सभी से प्यार करते हैं, चाहे वे अंधे हों, बहरे हों या लंगड़े हों या कोढ़ वाले हों"। उन्होंने चर्च जाने का फैसला किया और अपनी आवाज़ और गतिशीलता को बहाल करने के लिये भीख माँगने का फैसला किया। उनका मानना है कि ईसा मसीह से प्रार्थना शुरू करने के कुछ साल बाद उन्होंने अपनी बोली और अपनी गतिशीलता वापस पा ली। इसलिए उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया, हालाँकि वे एक हिंदू परिवार में पैदा हुई थीं।
 
पाते ने खुद से कहा: "कोई भी मुझे हमेशा के लिये खिलाने या देखभाल करने वाला नहीं है, इसलिए मुझे अपना जीवन यापन करने के लिये काम करने की ज़रूरत है।" एक घरेलू कामगार के रूप में वे लोगों के घरों में साफ-सफाई और खाना बनाती थीं। 19 साल की उम्र में वे स्थायी रूप से अपनी बड़ी बहन कृपा के घर चली गईं। वहाँ उन्होंने सब्जियाँ बेचना शुरू कर दिया, प्रार्थना की कि खरीदार खुले तौर पर उनकी 'विकृति' के प्रति अपनी घृणा न दिखाएँ। वे अपने शरीर को लेकर शर्मिंदा हैं, इसलिए वे अपना बायां हाथ छिपाती हैं (उनका बायां हाथ और बायां पैर प्रभावित हो गया है)। उन्हें अधिक पैसे कमाने के लिये सब्जियाँ उगाने की सलाह दी गई थी लेकिन वे कहती हैं कि ऐसा करने के लिये पर्याप्त रूप से मज़बूत नहीं हैं।
 
अपनी स्वयं की बचत और कुछ बहन कृपा की सहायता से, उन्होंने अपने घर के परिसर में अपनी छोटी सी किराने की दुकान शुरू की। वे सुबह 6 बजे से 7 बजे के बीच अपनी दुकान खोलती हैं और रात 9 बजे बंद कर देती हैं। वे नये कपड़े पहनना चाहती हैं, लेकिन कृपा की उतरन पहनने से संतुष्ट हैं। हालाँकि उनकी बहन का परिवार उनकी अच्छी देखभाल करता है, फिर भी वे उनका अहसान महसूस करती हैं। उनकी इच्छा है कि उनके पास अपनी खुद की ज़मीन और घर हो ताकि वे स्वतंत्र हो सकें और अपना जीवन अपनी शर्तों पर जी सकें। उन्होंने कहा कि वे किसी भी तरह की सरकारी सहायता का स्वागत करेंगी।
 
एमडी एक प्रगतिशील बीमारी है। पाते कहती हैं, "मैं अपने जीवन के लिये अपनी बहन की एहसानमंद हूँ, लेकिन वे हमेशा के लिये तो मेरी देखभाल नहीं कर सकती।" "क्या होगा अगर मेरी हालत खराब हो जाती है?" हालाँकि उनके अंतिम शब्द हैं: “ईश्वर मुझ पर दयालु रहा है और उसने दया दिखाई है। इसलिए मुझे भी दूसरों के प्रति दयालु होना चाहिये।


तस्वीरें:

विक्की रॉय