कल्पना कीजिए कि एक दम्पत्ति एक गाँव में दिहाड़ी मज़दूरी कर रहे हैं। उनकी बेटी पोलियो से बुरी तरह प्रभावित हो जाती है। फिर उनकी एक दूसरी बेटी है जो स्वस्थ रहती है। किसकी शिक्षा बाधित है? ऐसा लगता है कि दिमाग लगाने की ज़रूरत नहीं है लेकिन आपको आश्चर्य होगा।
आंध्र प्रदेश के मेंटाडा में रहने वाले रामू और बंगारम्मा मुश्किल से ही गुजारा कर रहे थे, जब 1990 में, उनकी पाँच वर्षीय सत्यवती को पोलियो हो गया। उसका बायां पैर इतने गंभीर रूप से प्रभावित था कि वह चल नहीं सकती थी और रेंगकर इधर-उधर जाती थी। ऐसा कोई तरीका नहीं था जिससे दंपति उन्नत चिकित्सा उपचार का खर्च उठा सकें। इस बीच, बंगारम्मा गर्भवती हो गई। चूंकि वे अपनी बेटी की रोज़मर्रा की ज़रूरतों को नहीं देख पा रही थी, इसलिए रामू के पिता वेंकू नायडू मदद के लिये आगे आये। कुछ समय के लिये, सत्यवती अपने दादा-दादी के साथ रहीं, जिन्होंने उनका आदिवासी चिकित्सा से इलाज किया, जिससे उनके चलने में काफी सुधार हुआ।
जब सत्यवती ने चलना शुरू किया (यद्यपि कठिनाई से) उनके माता-पिता ने उन्हें एक तेलुगु-माध्यम के प्राथमिक विद्यालय में भर्ती कराया। जब उन्होंने मेंटाडा के जाने-माने निजी स्कूलों में से एक एमपीपीएस को चुना तो उनके पड़ोसी हैरान रह गये। उन्होंने पूछा, "आप उसपर पैसे क्यों बर्बाद करते हैं?" "बस एक छोटी सी दुकान करा दीजिये जिसे वह बुढ़ापे तक चला सकती है।" लेकिन दंपति ने इन आलोचकों को नजरअंदाज कर दिया और अपने फैसले पर अड़े रहे क्योंकि, जैसा कि सत्यवती कहती हैं, "वे मुझे सबसे अच्छी शिक्षा देना चाहते थे ताकि मैं एक स्वतंत्र जीवन जी सकूं।" वास्तव में यह उनकी छोटी बहन थी जिसे अपनी स्कूली शिक्षा रोकनी पड़ी थी ताकि वो अपने माता-पिता की कम कमाई में साथ देने के लिये काम करना शुरू कर सके!
पाँचवीं कक्षा के बाद सत्यवती सरकार द्वारा संचालित ज़ेडपीएच (ZPH) स्कूल गई जहाँ उन्होंने 10वीं कक्षा में दूसरा स्थान प्राप्त किया और प्रतिभा पुरस्कार (10वीं कक्षा के मेधावी छात्रों के लिये राज्य पुरस्कार) जीता। वे अपने माता-पिता के उनके लिये देखे सपनों को पूरा करने के रास्ते पर थीं। 2002 में उन्होंने गजपतिनगरम के गवर्नमेंट जूनियर कॉलेज में गणित, भौतिकी और रसायन विज्ञान में इंटरमीडिएट पूरा किया और 2005 में उन्होंने बी.एससी.। एक शिक्षिका बनने की इच्छुक, फिर उन्होंने बी.एड पाठ्यक्रम का विकल्प चुना।
सत्यवती को अभी पूर्णकालिक नौकरी नहीं मिली थी। 2014 में, जब वे अपने शिक्षण कैरियर में संघर्ष कर रही थीं, एक चचेरे भाई ने सुझाव दिया कि वे विजयनगरम में ग्लोबल एआईडी के प्रधान कार्यालय में आ जाये। उन्होंने ऐसा किया, और उनका जीवन नाटकीय रूप से बदल गया। ग्लोबल एआईडी की उर्जावान संस्थापक, साई पद्मा (जिन्हें हमने अप्रैल 2022 में ईजीएस पर दिखाया था) उनकी गुरु बनीं। संगठन में शिक्षक और वार्डन की दोहरी भूमिका निभाने के अलावा, सत्यवती ने एक खिलाड़ी के रूप में अपना कैरियर पाया है!
जून 2016 में जब साईं पद्मा ने उन्हें हैदराबाद में व्हीलचेयर बास्केटबॉल प्रशिक्षण शिविर में भाग लेने के लिये प्रेरित किया, तो उनमें से किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि उनकी खेल यात्रा इतनी तेज़ी से आगे बढ़ेगी। दिसंबर 2016 में उन्होंने चेन्नई में तीसरे राष्ट्रीय व्हीलचेयर बास्केटबॉल टूर्नामेंट में खेलते हुये आंध्रा का प्रतिनिधित्व किया और टीम सेमीफाइनल में पहुँची।
वर्ष 2017 सत्यवती के लिये एक्शन से भरपूर था। वे थाईलैंड में एक प्रशिक्षण शिविर के लिये चुनी गई भारतीय व्हीलचेयर बास्केटबॉल खिलाड़ियों में से थीं। वह याद करती हैं, "मैंने बहुत सारे टिप्स और ट्रिक्स सीखे।" "11 देशों के खिलाड़ी थे, और कोच स्वीडन, नीदरलैंड, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से आये थे।" वे अगस्त में इंडोनेशिया में चौथे बाली कप व्हीलचेयर बास्केटबॉल टूर्नामेंट में भारत के लिये खेलने के लिये 90 के पूल में से चुने गये 12 खिलाड़ियों में से एक थीं। ऑस्ट्रेलियाई कोच नेस ब्रैडली ने उन्हें उनकी गति से आगे बढ़ाया और उन्होंने बाली में कांस्य पदक जीता। नवंबर में उन्होंने हैदराबाद में चौथी राष्ट्रीय बास्केटबॉल चैम्पियनशिप में भाग लिया।
2018 में सत्यवती के खेल मार्ग ने एक नया मोड़ लिया। ग्लोबल एआईडी द्वारा समर्थित उन्होंने कोच बनने के लिये एक प्रशिक्षण शिविर में भाग लिया और उन्हें एक कोच के रूप में प्रमाणित किया गया। वह कहती हैं, "मेरी जानकारी के अनुसार मैं विकलांगता वाली पहली महिला कोच हूँ।" "महामारी ने सभी की योजनाओं को बाधित कर दिया और मुझे उम्मीद है कि मैं न केवल अपने खेल को फिर से शुरू करूंगी बल्कि अधिक से अधिक लोगों को प्रशिक्षित भी करूंगी।"
कभी-कभी जब सत्यवती खेल में अपनी यात्रा को देखती हैं तो यह "अविश्वसनीय और चमत्कारी" लगती है। वे अपनी गुरु साई पद्मा प्रग्नानंद और ग्लोबल एड में उनकी टीम के निरंतर, अद्भुत समर्थन के लिये बहुत आभारी हैं।