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"मेरा काम था कड़ी मेहनत करना और भगवान मेरे लिये दरवाजे खोलते रहे"

6 फीट 4 इंच के निषाद कुमार (22) न केवल ऊंचाई में बल्कि जीवन के प्रति अपने दृष्टिकोण में ऊंचे हैं। जब फोटोग्राफर विक्की रॉय उनसे मिले, तो वे एक होटल में प्रायोजित कार्यक्रम -
टोक्यो 2020 पैरालिंपिक के पदक विजेताओं का सम्मान - में भाग ले रहे थे। हिमाचल प्रदेश में अपने पैतृक गाँव बडों वापस जाने के बाद हमने उनका इंटरव्यू लिया लिया।
 
चौथी में पढ़ने वाला, निषाद आठ साल का एक चंचल बच्चा था, जिसे सड़क पर खिलोनेवाले के पीछे दौड़ना और उसे परेशान करना अच्छा लगता था। ऐसे ही एक दिन निषाद से पीछा छुड़ाने के लिये खिलौने बेचने वाले ने उससे कहा, तुम्हारी माँ तुम्हें ढूंढ रही है, जल्दी घर जाओ। वो भागा, यह जानने के लिये इतना उत्साहित था कि उसकी माँ उसे क्या बताना चाहती थी कि उसने यह नहीं देखा कि वह कहाँ जा रहा है। भूसा काटने वाली मशीन के ब्लेड से उसकी कलाई के ऊपर हाथ पर गहरा कट गया और वहाँ से उसे काटना ही पड़ा।

स्थानीय सरकारी अस्पताल द्वारा प्राथमिक चिकित्सा सहायता प्रदान करने के बाद, निषाद के पिता राशपाल सिंह ने होशियारपुर के एक प्राइवेट अस्पताल में उनका इलाज कराने का फैसला किया। दिहाड़ी पर काम करने वाले सिंह को एक दिन में बिस्तर की 100 रुपये लागत का भुगतान करना मुश्किल हो रहा था उसके ऊपर से दवाएं और अन्य खर्च भी थे। निषाद को पूरे साल स्कूल छोड़ना पड़ा, जो उनके ठीक होने में लग गया। स्कूल हमेशा उनके लिये सुखद यादें लेकर आता है। क्योंकि उनका परिवार साइकिल नहीं खरीद सकता था, निषाद और उनकी बहन रमा कुमारी, निषाद के सबसे अच्छे दोस्त विशाल, उसकी बहन और उसके चचेरे भाई के साथ, पाँचों के पाँचों एक साइकिल पर लदकर स्कूल जाते थे! निषाद याद करते हैं कि जब वे 10वीं कक्षा में पहुँचे तो उनके क्लास टीचर ने उन्हें एक साइकिल खरीदकर दी!
 
जब भी वो प्रिन्सिपल द्वारा पूरे स्कूल की सभा के सामने छात्रों को पदक से सम्मानित होते देखते थे, तो वो उनकी जगह खुद की कल्पना करते थे। वे कहते हैं, "मैं एक दिन मंच पर पदक प्राप्त करना चाहता था"। "इसने मुझे खेलों में हाथ आजमाने के लिये प्रेरित किया।" खेल उनके लिये स्वाभाविक पसंद था क्योंकि उनकी माँ पुष्पा कुमारी खुद एक एथलीट थीं। विकलांगता के कारण निषाद को सार्वजनिक रूप से जिस तरह की नकारात्मक प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ सकता है, उन्होंने उसका मुकाबला करने के लिये भी उन्हें खेलों से परिचित कराया।

निषाद ने पहले प्रागपुर में एथलेटिक्स में भाग लिया और ऊंची कूद में प्रथम आये, जिसने उन्हें इस विशेष प्रकार के फील्ड इवेंट को आगे बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित किया। हालाँकि उन्होंने जिला और राज्य स्तर की चैंपियनशिप में अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन वे राष्ट्रीय स्तर पर जगह नहीं बना सके। स्कूल के बाद उनके साथी कैरियर चुनने में व्यस्त थे। विशाल सेना में भर्ती हो गया। निषाद भी सशस्त्र बलों में शामिल होने के इच्छुक थे लेकिन उनकी विकलांगता के कारण उन्हें अस्वीकार कर दिया गया था। उनकी माँ के - "भगवान ने तुम्हारे लिये कुछ और अच्छा सोच रखा होगा“ - ये शब्द ही थे जिसने उन्हें आत्मविश्वास दिया।
 
वो सच में सही थीं। निषाद की चचेरी बहन हरियाणा के ताऊ देवी लाल स्टेडियम, पंचकुला में एक बहु-खेल (मल्टी स्पोर्ट्स) स्टेडियम में टेनिस में प्रशिक्षण ले रही थी, और उसने उन्हें एथलेटिक्स कोचों के पास भेज दिया। निषाद याद करते हैं जब उन्होंने पहली बार स्टेडियम देखा था। वो अचंभित थे क्योंकि उन्होंने कभी इतना बड़ा कुछ नहीं देखा था। जब उनके परिवार को बताया गया कि न केवल उन्हें प्रशिक्षण के लिये स्वीकार कर लिया गया है, बल्कि उनके खर्चों का भी ध्यान रखा जायेगा, तो उनकी माँ की आँखें भर आयीं थीं।

हालाँकि, निषाद के लिये शुरूआती दिन संघर्षपूर्ण रहे। कभी-कभी उनका ठीक से सोना नहीं हो पाता था, गुरुद्वारे में मुफ्त खाना खाना पड़ता था और हर तीन महीने में रहने के लिये अलग कमरा ढूंढना पड़ता था। बडों के लड़के को यह बहुत अजीब लगा कि उसके गाँव से उलट, जहाँ हर किसी के घर में गाय थी, यहाँ लोगों को दूध खरीदना पड़ता था, और वह भी अलग-अलग रंगों के पैकेट में! निषाद अपने कोच नसीम और विक्रम को कृतज्ञतापूर्वक याद करते हैं जिन्होंने ईक्विपमेंट और वित्तीय सहायता प्रदान की।

 इसके बाद वे दुबई में वर्ल्ड ग्रां प्री की तैयारी के लिये तीन महीने तक बहलगढ़ के नेशनल कोचिंग कैंप में रहे। हालाँकि उन्हें बेंगलुरु में चयन के दौरान नहीं चुना गया था, यह वो शहर था जहाँ वो अपने 'भगवान', अपने भविष्य के कोच सत्यनारायण से मिले, जिन्होंने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उनपर विश्वास किया। सत्यनारायण ने उन्हें ओलंपिक गोल्ड क्वेस्ट (ओजीक्यू) के लिये भी सफलतापूर्वक नामांकित किया, जो भारतीय एथलीटों को ओलंपिक के लिये तैयार करने में मदद करता है, और पैरालिंपिक के लिये उनका प्रशिक्षण शुरू हुआ।
 
दुबई में विश्व पैरा एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में, निषाद ने 2019 में कांस्य पदक और 2021 में स्वर्ण पदक जीता। उनकी नवीनतम जीत 2020 टोक्यो पैरालिंपिक में रजत पदक है जहाँ उन्होंने पुरुषों की ऊंची कूद (हाई जंप) में 2.06 मीटर का नया एशियाई रिकॉर्ड बनाया।
जब घर पर होते हैं तब निषाद अपने पिता के साथ क्रिकेट के खेल का आनंद लेते हैं, और पंजाबी संगीत सुनना पसंद करते हैं। अब वे चीन में होने वाले 2022 एशियाई खेलों के लिये पूरी तरह तैयार हैं। 

तस्वीरें:

विक्की रॉय