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"मैं सोचती हूँ अगर मैने बुनाई नहीं सीखी होती, तो क्या करती?"

भारत के छोटे-छोटे दूर दराज़ के गाँवों में बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएं भी नहीं होतीं। वहाँ साधारण सा बुख़ार भी सही इलाज नहीं मिलने की वजह से बेहद ख़तरनाक साबित हो सकता है। कुछ इसी से जुड़ी है मणिपुर की नियॉन्गनंगेन्म की कहानी, क्योंकि इसी साधारण से बुख़ार ने उसकी ज़िन्दगी में हमेशा हमेशा के लिए ख़ामोशी भर दी, इसी साधारण से बुख़ार ने उनके पिता को छीन लिया। 

एक किसान माता-पिता की बेटी नियांगनंगेन्म अपनी पाँच बहनों में सबसे बड़ी थीं। उनके पिता थॉन्ग ज़ैदॉन्ग और माँ जिन खानचिंग गाँव के मुखिया के खेत पर काम करते थे। नियांगनंगेन्म महज़ एक साल की थी, जब ऊपरवाले ने उसकी सुनने की शक्ति छीन ली। उसके घर की आर्थिक स्थिति बेहद ख़राब थी। वो जिस माहौल में पली बढ़ी उस माहौल में अच्छी पढ़ाई नामुमकिन सी बात थी। उसकी बहनों ने भी सिर्फ़ किसी तरह प्राइमरी तक की पढ़ाई पूरी की। उन दिनों नियांग अपने पिता के साथ खेत पर जाया करती थी, लेकिन 2006 में पिता को खोने के बाद, छोटी बहनों की देखभाल की ज़िम्मेदारी भी उनके ही कंधों पर आ गई। अपनी 'इंटरप्रेटर' सांगी के ज़रिये बात करने के दौरान नियॉन्ग अपने पिता को याद करते हुए बोलीं, “मेरे पिता मुझे बेहद प्यार करते थे और मुझे कभी भी डांटते नहीं थे।” 

नियॉन्ग बुनाई सीखना चाहती थी। 2015 में मणिपुर के चुराचंदपुर की NGO ‘सेंटर फ़ॉर कम्युनिटी इनिशिएटिव’ (CCI) ने उसके सपनों को पूरा करने की नींव रखी। इस NGO ने अपने एक पुनर्वास प्रॉजेक्ट के तहत नियॉन्ग को एक निजी संस्थान में दाख़िला दिलवा दिया, ताकि वो अपने बुनाई के हुनर को तराश सके। साल 2016 नियॉन्ग की ज़िंदगी के लिए एक ऐसा साल रहा जो वो शायद कभी नहीं भूल पाएंगी, क्योंकि इसी साल उन्होंने एक साथ सुख और दुख दोनों एहसासों को बराबरी से जिया।
ये वो साल था जब कामकाज के सिसलिसे में उन्हे काफ़ी कामयाबी मिली, इसी साल पहली दफ़ा उनका पढ़ाई-लिखाई से वास्ता हुआ। CCI ने उन्हें अपने ‘मालसॉम एबिलिटी रिसोर्स सेंटर’ में बुनाई, साइन लैंग्वेज, कम्युनिकेशन स्किल, गणित, स्वच्छता, समाजीकरण और फ़ू़ड प्रोसेसिंग से जुड़ी ट्रेनिंग दी। यहाँ सिर्फ़ दो महीनों में वो इतनी अच्छी बुनकर बन गईं कि CCI ने उन्हें रोज़ी रोटी कमाने के लिए उनका ख़ुद का हैंडलूम दे दिया। इतना ही नहीं, 6 महीने बाद जब नियॉन्ग अपने काम में और भी बेहतर हो गईं और उनका बैंक खाता भी खुल गया तब CCI ने उन्हें किराये पर एक और हैंडलूम दिया ताकि उनकी बहनें भी उनके इस काम का हिस्सा बन सकें।
लेकिन सफलता और ख़ुशियों की इन घड़ियों के बीच कहीं, दुख भी उनकी राह देख रहा था। एक ऐसी घटना हुई, जिससे नियॉन्ग और उनकी सभी ख़ुशियों पर पानी फिर गया। एक दिन वो अपने गाँव लौटने की तैयारी कर रही थीं कि उनको ख़बर मिली कि उनकी बीमार माँ ने अवसाद की वजह से आत्महत्या कर ली। अब नियॉन्ग के पास अपने गाँव थुआंगतम लौटने की कोई वजह ही नहीं बची थी। वहाँ सिर्फ़ उसकी माँ ही तो थी, लेकिन अब वो भी नहीं थीं। हालांकि नियॉन्ग ने अपने बुलंद हौसलों के सहारे आगे बढ़ते रहने की ठानी।
फ़िलहाल वो अपनी बहन नियांगलियानकिम के साथ बंगमुआल में एक किराये के मकान में रहती हैं। उनकी दो शादीशुदा बहनें पास के ही गाँव में रहती हैं, और सबसे छोटी बहन अपने चाचा के साथ रहती है।
नियॉन्ग एक हफ़्ते में दो पुआंटन बुन लेती हैं- ये वहाँ की महिलाओं का एक पारम्परिक लिबास है, जिसे वो एक लोकल स्टोर में बेचती हैं। इससे वो अपने काम भर की कमाई करने के साथ रोज़मर्रा का ख़र्चा और घर का किराया भी निकाल लेती हैं। वहीं उनकी बहन किम दूसरी हैंडलूम पर काम करती हैं और अपनी कमाई के साथ हैंडलूम का किराया भी निकालती हैं। नियॉन्ग को लोगों से मिलना पसंद तो है, लेकिन उनसे बातचीत करना उनके लिए एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि उनके पास आने वाले ज़्यादातर लोगों को 'साइन लैंग्वेज' नहीं आती, ऐसे में संवाद मुश्किल हो जाता है। 

तस्वीरें:

विक्की रॉय