जब शहर की सड़कों पर रहने वाले परिवार में तीन लड़कियाँ हों, जिनमें से एक विकलांग हो, तो उनके लिए जीवन और भी कठिन हो जाता है। कोलकाता के हेस्टिंग्स फ्लाईओवर के नीचे एक अस्थायी झोपड़ी में 13 वर्षीय नसरीन खातून रहती है जो बहरी है, साथ में उसके पिता शेख नसीरुद्दीन (35), माँ सलमा बीबी (30) और छोटी बहनें निकहत खातून (7) और कुलसुम खातून (6) रहती हैं। लड़कियाँ जन्म से ही यहाँ रह रही हैं।
नसीरुद्दीन के पिता जो स्थानीय होटलों में सहायक के रूप में काम करते थे, जब नसीर बच्चे थे, तभी उनकी मृत्यु हो गई। उनकी माँ एक घरेलू कामगार थीं और अब उनके बड़े भाई के साथ रहती हैं। उनकी बड़ी बहन शादीशुदा हैं और अपने परिवार के साथ रहती हैं। नसीरुद्दीन ने सिलाई में हाथ आजमाया और फिर दिहाड़ी मज़दूर के रूप में विभिन्न शहरों और कस्बों में काम किया। सलमा के साथ परिवार शुरू करने के बाद उनका खानाबदोश जीवन समाप्त हो गया। दंपति ने फ्लाईओवर के नीचे जड़ें जमा लीं।
पेंटर के सहायक के रूप में शुरुआत करने वाले नसीरुद्दीन ने अपने दम पर काम करना शुरू किया। अब वे घरों में पेंटर का काम करते हैं और कभी-कभार उन्हें हेस्टिंग्स के फोर्ट विलियम में सेना मुख्यालय से भी काम मिल जाता है। वे कहते हैं, ''मैं और मेरी पत्नी कभी स्कूल नहीं गए।'' लेकिन वे नहीं चाहते कि उनके बच्चे औपचारिक शिक्षा से वंचित रहें। नसरीन पड़ोस के सरकारी स्कूल में कक्षा 1 में पढ़ती थी, लेकिन महामारी के दौरान बंद होने के बाद से स्कूल फिर से नहीं खुला है। दंपति उसे अपने पाठों का अभ्यास करते रहने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। नसीर हमें बार-बार बताते हैं, ''वो अपना नाम अंग्रेजी और बंगाली में लिख सकती है।'' सलमा हमें बताती हैं कि इलाके में एक एनजीओ बच्चों को पढ़ाने आता है और नसरीन इन सत्रों में जाती है।
जब नसरीन का बहरापन बचपन में ही साफ हो गया तो दंपत्ति ने सोचा कि यह एक ऐसी बीमारी है जिसका इलाज संभव है। उसे कई स्थानीय अस्पतालों और नर्सिंग होम में ले जाने में समय और पैसा बर्बाद करने के बाद, एक परिचित ने सुझाव दिया कि वे उसे दिल्ली ले जाएं। उन्होंने राजधानी की यात्रा पर और पैसे खर्च किए, लेकिन डॉक्टर ने उसकी जांच की और कहा कि उसे सुनने में सहायता की ज़रूरत है। नसीर कहते हैं, "मुझे सुनने की मशीन की कीमत पता चली। मैं इसका खर्च नहीं उठा सकता।" एनजीओ अपने आप वूमन वर्ल्डवाइड के एक व्यक्ति ने हाल ही में उनसे संपर्क किया और उन्हें नसरीन को बोनहुगली के एक अस्पताल में ले जाने में मदद की, जहाँ डॉक्टर ने इस साल के अंत में सुनने की मशीन लगाने की तारीख तय की।
नसीर की उम्मीद है कि एक बार नसरीन को मशीन लग जाने के बाद वो सुनने के साथ-साथ बोलने भी पाएगी। वे उपयुक्त स्कूलों की तलाश कर रहे हैं और कहते हैं कि वे या सलमा उसे वहाँ भेजने के लिए तैयार हैं, भले ही स्कूल कुछ दूरी पर हो। सलमा काम पर नहीं जाती हैं क्योंकि वे अपनी बेटियों की सुरक्षा के बारे में चिंतित हैं, क्योंकि वे एक अस्थायी आश्रय में रह रही हैं। सलमा कहती हें, "नसरीन अक्सर मुझसे अपने तरीके से कहती है कि वो चाहती है कि हमारा परिवार एक सामान्य घर में रहे।" शायद उसकी दादी के घर जैसा घर। हर कुछ महीनों में एक बार वे सलमा की माँ से मिलने जाते हैं जो एक ऐसे घर में रहती हैं जो उनके पिता को दशकों पहले एक सरकारी योजना के तहत मिला था। नसरीन वहाँ जाना और अपने चचेरे भाइयों के साथ खेलना पसंद करती है।
इस बीच परिवार साधारण सुखों का आनंद उठाता है, जैसे कि स्वादिष्ट चीज़ें साथ मिलकर खाना जो नसीर ने छुट्टी वाले दिन खरीदी होंगी या सस्ते तरीकों से मौज-मस्ती करना, जैसे कि "साल्ट लेक के बड़े पार्क" में जाना, जिसमें प्रवेश के लिए कोई टिकट नहीं लेना पड़ता। नसीर एक बार हुगली नदी के किनारे बज बज में काम के सिलसिले में गए थे और उन्हें वहाँ का माहौल बहुत पसंद आया। वहाँ वे जमीन का एक टुकड़ा खरीदने का सपना देखते हैं, जहाँ वे पक्का मकान बनाकर बस सके।
सलमा कहती हैं, "चाहे हमारी परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों, हमें ईश्वर पर भरोसा रखना चाहिए और नसरीन को अच्छी शिक्षा देने की पूरी कोशिश करनी चाहिए।" "मैं चाहती हूँ कि विकलांग बच्चों वाली सभी माँएं भी ऐसा ही विश्वास रखें और अपनी उम्मीदें ऊँची रखें।"