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“मैं चिल्ला कर बोलती हूँ और मेरा मूड बदलता रहता है। मुझे अपने फोन से खेलने में मज़ा आता है"

जब किसी बच्चे को दौरे पड़ते हैं तो माता-पिता आम तौर पर उसे तुरंत 'ठीक' करने की उम्मीद में नज़दीकी डॉक्टर या अस्पताल में ले जाते हैं। निश्चित रूप से, कोई इंजेक्शन या दवा इसे ठीक करने के लिये पर्याप्त है? वास्तव में, दौरे या मस्तिष्क में विद्युत गड़बड़ी होने के कई कारण हो सकते हैं - मिर्गी, संक्रमण, बौद्धिक विकलांगता और मानसिक बीमारी, बस कुछ उदाहरण हैं। क्या दौरे दोबारा पड़ेंगे? अगर ऐसा है, तो कब पड़ेंगे? और कितनी बार? इन सवालों का कोई जवाब नहीं है। कभी-कभी, ईईजी, एमआरआई, सीटी, स्पाइनल टैप और कई अन्य परीक्षणों और प्रक्रियाओं से गुज़रने के बाद भी, कारण अज्ञात रह सकते हैं। इलाज़ जटिल हो सकता है: आम तौर पर दौरे रोकने की दवा निर्धारित की जाती है लेकिन सही दवा और खुराक ढूंढना मुश्किल हो सकता है।
 
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में कोसले परिवार कई वर्षों तक अनिश्चितता की स्थिति में रहा। अनिरुद्ध कोसले (47) और उनकी पत्नी माधुरी (38) की बेटी मुस्कान (19) केवल चार दिन की थी जब उसे दौरा पड़ा और उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। माधुरी का कहना है कि वे बच्ची को एक निजी अस्पताल में ले गये और वह एक महीने तक ऑक्सीजन पर थी। दो साल बाद, उसे बार-बार दौरे पड़ने लगे जिसके लिये उसे अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता पड़ी। जब वह लगभग चार साल की थी तो दंपति उसे भिलाई ले गये। वहाँ के एक डॉक्टर ने स्पष्ट रूप से दम्पति को एक अविश्वसनीय रोग निदान दिया: "बहुत अधिक ऑक्सीजन" दिये जाने के कारण उसका दिमाग में गड़बड़ी आ गयी थी!
 
जब भी माधुरी अपनी बेटी को दौरे पड़ते देखती थी तो वह घबरा जाती थी। मुस्कान का चेहरा मुड़ जाता और उसका शरीर अनियंत्रित रूप से काँपने लगता था। माधुरी प्रार्थना करती थी: "भगवान, उसे ठीक कर दो और इसके बदले मेरी जान ले लो।" मुस्कान का दाखिला एक मुख्य धारा के स्कूल - प्रोग्रेसिव कॉन्वेंट स्कूल में हुआ, जो उनके घर के करीब था। वह बहुत रोती थी और दूसरे बच्चे उसे मारते भी थे। वास्तव में स्कूल जाने के डर से उसे दौरे पड़ने लगे, और इसलिए उसके माता-पिता ने उसे स्कूल भेजना बंद कर दिया। जब वह लगभग 12 वर्ष की थी, तो वे उसे बिलासपुर के महादेव अस्पताल ले गये, जहाँ उन्होंने उसे दवाएँ दीं जो काम करने लगीं। तब से उसे दौरे नहीं पड़े और उसने दवाएँ लेना भी बंद कर दिया।
 
अनिरुद्ध का कहना है कि मुस्कान अब पहले से "75 प्रतिशत बेहतर" है। बचपन में वह चल नहीं पाती थी और उसे अपनी चलने-फिरने संबंधी समस्याओं के लिये इलाज़ की आवश्यकता थी। माधुरी का कहना है कि थेरेपी के खर्चों ने उनकी वित्तीय स्थिरता पर असर डाला (अनिरुद्ध एक निजी कंपनी के लिये काम करते हैं और माधुरी एक गृहिणी हैं)। उन्हें ऊंची ब्याज दर पर पैसे उधार लेने के लिये मज़बूर होना पड़ा और कर्ज चुकाने के लिये माधुरी को अपने सारे गहने बेचने पड़े।
 
लेकिन वास्तव में मुस्कान की विकलांगता (या शायद विकलांगता) क्या है? दंपति ने उसके लिये विकलांगता प्रमाण पत्र बनवाने का प्रयास किया लेकिन असफल रहे। हमें माता-पिता दोनों से उसके व्यवहार का विवरण मिला: उसे एकांत पसंद है और उसे घर आने वाले मेहमान पसंद नहीं हैं, हालाँकि जब जेवीपीएएस के मनोज जांगड़े विक्की रॉय को वहां ले गये तो उसने फोटो के लिये काफी खुशी से पोज दिये। उसे अपने दाँत ब्रश करना पसंद नहीं है लेकिन वह सुबह सबसे पहले यही करती है। उसका स्नान बाद में होता है, जब भी उसका मन करता है। वह खुद ही खाती है और कपड़े पहनती है, हालाँकि उसे सीधा उल्टा पता नहीं चलता है और कभी-कभी वह उल्टे कपड़े भी पहन लेती है। वह लोगों और वस्तुओं को सीधे नहीं बल्कि तिरछी नज़र से देखती है। यदि कोई उसके सामान को छूता या हटाता है तो वह गुस्सा हो जाती है; चीज़ें वहीं रहनी चाहिये जहाँ उसने उन्हें रखा था।
 
मुस्कान के बड़े भाई अनिकेत (21) ने हाल ही में बिलासपुर के एक औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान में अपना पहला वर्ष पूरा किया है। मुस्कान इससे अधिक धैर्यवान और प्यार करने वाले भाई की अपेक्षा नहीं कर सकती। जब चीजें उसके अनुकूल नहीं होती हैं तो वह अक्सर गुस्से में आ जाती है और कभी-कभी अनिकेत पर हाथ भी उठा देती है, लेकिन वह कभी प्रतिक्रिया नहीं करता है और हमेशा उसके साथ नरमी से पेश आता है।
 
जिस तरह अनिकेत मुस्कान को प्यार करता है, उसी तरह अनिरुद्ध भी। वह अपने पिता के बहुत करीब है और उनके घर आने का बेसब्री से इंतजार करती है। उनका कहना है कि उसकी याददाश्त बहुत अच्छी है और वह घटनाओं और सूचनाओं को अच्छी तरह याद रखती है, लेकिन पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाती।
 
माधुरी का कहना है कि जब वे एक परिवार के रूप में बाहर जाते हैं, तो मुस्कान जब अपनी ऊंची आवाज में बोलती है तो लोग उस पर हंसते हैं। इससे उसे बहुत बुरा महसूस होता है, लेकिन वे कहती हैं: “मुझे अब इसकी परवाह नहीं है कि दूसरे क्या सोचते हैं या क्या कहते हैं। मुझे इसकी आदत हो गई है।" वे बस यही चाहती हैं कि उनकी बेटी स्वस्थ रहे। यदि वह शिक्षा भी प्राप्त करे और किसी दिन अपना परिवार बनाए तो यह एक बोनस होगा।  

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विक्की रॉय