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"मेरी प्यारी पत्नी के अलावा, मेरा अच्छा दोस्त था जिसने मेरे बुरे समय में मेरी मदद की"

दमन के ग्रामीण इलाके में बड़े होते हुये, युवा मुकेश ने हमेशा एक 'कमज़ोरी' महसूस की थी, खासकर अपने निचले अंगों में, लेकिन चूंकि यह उनकी नियमित दिनचर्या को बाधित नहीं करता था, इसलिए इसे नजरअंदाज कर दिया गया था। उनके माता-पिता मगनभाई और सुखीबेन हलपति दिहाड़ी मज़दूर थे जो दूसरों के धान के खेतों में काम करते थे। स्कूल के बाद, मुकेश और उनका भाई सचिन, जो उनसे चार साल छोटा था, अपने माता-पिता को खेतों में काम करने में मदद करके परिवार की मामूली आय में हाथ बंटाते थे।
 
जब मुकेश 20 साल के थे तब उनके माता-पिता ने उनके लिये दुल्हन खोजने का फैसला किया। उनके गाँव के लड़कों की शादी जल्दी हो जाती थी लेकिन वह परंपरा का पालन करने से कतराता थे। हालाँकि जब वे पहली बार सुधादेवी से मिले तो वे तुरंत प्रभावित हो गये! मुकेश, जो अब 44 वर्ष के हैं, कहते हैं, "यह मेरे जीवन का सबसे अच्छा निर्णय है।" "वह बहुत दयालु है और उसका स्वभाव बहुत प्यारा है।" दंपति बेहतर संभावनाओं की तलाश में दमन शहर चले गये। हालाँकि मुकेश स्कूल से आगे नहीं पढ़े थे, फिर भी उन्हें एक मेडिकल स्टोर में नौकरी मिल गई। सुधादेवी को भी पास की एक आंगनवाड़ी में रोज़गार मिला जहाँ उन्होंने मध्याह्न भोजन पकाया। तीन बेटियों निशा, गार्गी और हितैषी के आशीर्वाद के बाद उन्हें लगा कि उनका जीवन पूर्ण हो गया है। लेकिन कभी-कभी जिंदगी आपको अनजाने ही झटका दे देती है।
 
लगभग पाँच साल पहले, बचपन में मुकेश ने जो "कमज़ोरी" अनुभव की थी, वह अचानक बढ़ गई। उमके पैरों में दर्द हो रहा था और वो खड़े भी नहीं हो पा रहे थे, चलना तो दूर की बात है। क्या यह मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (एमडी) थी जो मांसपेशियों की प्रगतिशील कमज़ोरी का कारण बनती है? यद्यपि अधिकांश प्रकार के एमडी बचपन में शुरू होती हैं, लेकिन वयस्क-प्रारंभिक एमडी के कुछ रूप हैं जो 20 से 70 वर्ष के बीच और आम तौर पर 40 वर्ष के बाद दिखाई देते हैं। चूंकि मुकेश के पास कोई अक्षमता प्रमाण पत्र या स्पष्ट मेडिकल डायग्नोस नहीं है, इसलिए हम निश्चित रूप से नहीं कह सकते। बहरहाल, परिवार सदमे में चला गया।
 
कुछ ही समय बाद, मगनभाई की मृत्यु हो गई और सुखीबेन मुकेश के साथ रहने आ गई। तीन साल पहले, एक और त्रासदी हुई जब सचिन की अचानक मृत्यु हो गई, संभवतः एक छिद्रित डुओडेनम ("उसका पेट सूज गया") के कारण। दो साल तक मुकेश व्यायाम और दवा के एक नियम पर था और वह सुधादेवी पर बहुत अधिक निर्भर था। उनके दोस्त और पड़ोसी जाफर-दादा एक देवदूत के भेस में आये जिन्होंने उन्हें पैसे और किराने का सामान देने में मदद की और लगातार नैतिक समर्थन प्रदान किया जब तक कि वे चलने-फिरने की ताकत पाने में सक्षम नहीं हो गये। उनका कहना है कि यह जाफर-दादा का उन पर विश्वास ही था जिसने उन्हें अपनी समस्याओं का डटकर सामना करने का साहस दिया। शुक्र है, उनकी पुरानी नौकरी को उनके  ठीक हो जाने पर फिर से शुरू करने के लिये खुला रखा गया था।
 
आज मुकेश उस मेडिकल स्टोर पर काम करते हैं जहाँ वे  उसके सबसे पुराने कर्मचारी हैं। दिन के दौरान वह पुराने ग्राहकों से मिलना पसंद करते हैं और काम बंद करने के बाद वे अपने शाम के भोजन की प्रतीक्षा करते हैं। वे बहुत जोश से कहते हैं,  "मेरी पत्नी अब तक की सबसे अच्छी रसोइया है!" स्पष्ट रूप से, वे केवल आंगनवाड़ी में ही नहीं बल्कि घर पर भी अपने पाक कौशल का प्रदर्शन करती हैं, जहाँ वे अपने पति को उनकी पसंदीदा दाल बाटी और खिचड़ी परोसती हैं। निशा शादीशुदा है और उसका एक साल का बेटा है - कियान। गार्गी 12वीं में और हितैषी 10वीं में है; मुकेश को उम्मीद है कि वे अच्छी तरह से पढ़ेंगी और एक दिन "ऑफिसर" बनेंगी।
 
मुकेश के सप्ताह का मुख्य आकर्षण है - रविवार। क्यूंकि तब निशा आ जाती है और वे  कियान के साथ खेलते हुये कई सुखद क्षण बिताते हैं। रविवार वो दिन भी होता है जब वे अपने घर के पास देवी मेल्दी माता मंदिर में भक्ति गीत सुनते हैं या सेवा करते हैं। उन्होंने कहा, "आप हमसे मिलने ज़रूर आइये।" "मैं खुद आपको मंदिर ले जाऊंगा।"


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विक्की रॉय