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"हमारा चयन हमारी योग्यता के आधार पर करें और हमें हमारी विकलांगता के कारण अस्वीकार न करें"

जब हमने नई दिल्ली की मोनिका डंडरियाल (20)  से बात की तो वे अभी भी एक कपड़ा कंपनी में नौकरी के लिये नजरअंदाज किये जाने के आक्रोश से उबल रही थीं, जिसने एक आईटीआई सहपाठी को काम पर रखा था, जिसकी शैक्षणिक साख मोनिका जितनी अच्छी नहीं थी। शारीरिक बनावट के आधार पर भेदभाव एक ऐसी चीज़ है जिसका रोज़गार बाज़ार में असंख्य विकलांग व्यक्तियों को सामना करना पड़ता है, और मोनिका भी इसका अपवाद नहीं है।
 
मोनिका महरौली में क्लासिक होंडा में ड्राइवर के रूप में काम करने वाले मनोज डंडरियाल और गृहिणी हेमा डंडरियाल से पैदा हुए दो बच्चों में से छोटी हैं। हिंदी और अंग्रेजी के बीच होने वाली हमारी बातचीत में, उन्होंने बताया कि जब वे ढाई साल की थीं, तो एक महीने से अधिक समय तक चले बुखार के कारण उनका दाहिना हाथ कमज़ोर हो गया और उनके चेहरे का दाहिना हिस्सा प्रभावित हुआ। इसके बाद उन्होंने अपने ठीक होने की कठिनाइयों और उस निडर भावना का वर्णन किया जिसने उन्हें आरएसकेवी स्कूल, महरौली में एक प्रतिभाशाली छात्रा के रूप में आगे बढ़ने में मदद की।
 
जब वे 11वीं कक्षा में सीबीएसई स्ट्रीम में पढ़ रही थीं, तो उन्हें उनके अनुशासन और दृढ़ता के कारण प्रीफेक्ट के रूप में चुना गया था और इसके लिये उन्होंने एक पुरस्कार भी जीता, जिससे उनके माता-पिता और बड़े भाई मनीष को गर्व हुआ। हालाँकि स्कूल में उनका पसंदीदा विषय गणित था, लेकिन कॉलेज बहुत दूर होने के कारण वे उस विषय में डिग्री हासिल नहीं कर सकीं। इसलिए उन्होंने कई चीजें करने का फैसला किया - लाल बहादुर शास्त्री संस्थान से ड्रेस डिजाइन में डिप्लोमा, प्रधान मंत्री कौशल विकास योजना के तहत कमला नेहरू कॉलेज से आभूषण डिजाइन पाठ्यक्रम और आईटीआई में कपड़ा डिजाइन पाठ्यक्रम। मानो यह सब पर्याप्त नहीं था, तो वे इतिहास और राजनीति विज्ञान में बी.ए. भी कर रही हैं और निजी अध्ययन के माध्यम से अंतिम वर्ष में हैं। उन्होंने हाल ही में विकलांगता के विषय पर एनजीओ सक्षम द्वारा आयोजित पोस्टर-मेकिंग प्रतियोगिता में नकद पुरस्कार, एक प्रमाण पत्र और पुरस्कार जीता है।
 
बचपन में, अपनी माँ हेमा, जो एक सजावट कलाकार हैं, को उन्होंने कभी भी कुछ भी फेंकते नहीं देखा और मेज़पोश, फूलों की सजावट और सजावटी सामग्री को सुंदर बनाने के लिये चीजों का पुन: उपयोग करते हुये देखकर, मोनिका ने कचरे को शिल्प में बदलने में रुचि विकसित की। उन्हें बचे हुये चावल और खाने की अन्य बची हुयी चीज़ों को कलात्मक और नये तरीके से सजावट के साथ कटलेट और नूडल्स में बदलने में भी आनंद आता है।
 
वे आईटीआई में मीनाक्षी मैडम को अपनी प्रेरणा मानती हैं। कढ़ाई, ब्लॉक-प्रिंटिंग और रंगाई कौशल सीखने की उनकी गति से प्रभावित टीचर मोनिका को पूरे दिल से प्रोत्साहित करती थीं। जब बाकी छात्र उनसे खराब प्रदर्शन की उम्मीद कर रहे थे, उन्होंने एक सप्ताह में चार स्क्रीन-प्रिंट बनाकर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया, जबकि बाकी ने सिर्फ एक ही बनाया।  ऐसे लोग भी थे जिन्होंने उन्हें हतोत्साहित करने की कोशिश की लेकिन वे अपने सिद्धांत - "अगर वे ऐसा कर सकते हैं, तो मैं क्यों नहीं कर सकती?" - पर कायम रहीं।
 
दाहिने हाथ में लोकोमोटर विकलांगता के कारण, उनका बायाँ हाथ अधिक मज़बूत होकर इस कमी को पूरा करता है। इस प्रकार उन्हें दोनों हाथों का उपयोग करने में कोई समस्या नहीं होती है, हालाँकि वे दाहिने हाथ का कम से कम उपयोग करती हैं। चेहरे के दाहिने हिस्से को कॉस्मेटिक रूप से थोड़ा ठीक किया गया है लेकिन पूरी तरह से नहीं।
 
घर का स्मार्ट टीवी दुनिया के लिये उनकी खिड़कियों में से एक है। एक क्रिकेट प्रशंसक, वे सभी आईपीएल मैच देखती हैं। वे महेंद्र सिंह धोनी, सचिन तेंदुलकर और विराट कोहली की फैन हैं, और विराट उनके आल टाइम फेवरेट हैं। अधिकांश युवाओं की तरह, उन्हें बॉलीवुड और हॉलीवुड फिल्में पसंद हैं जिन्हें वे सिनेमाघरों और ओटीटी प्लेटफार्मों और यूट्यूब दोनों पर देखती हैं। वरुण धवन अपनी फिटनेस और ड्रेस सेंस के कारण और कियारा आडवाणी अपने स्टाइल के कारण उनकी पसंदीदा हैं। दिलचस्प बात यह है कि वे तमिल फिल्में भी देखती हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि वे पारिवारिक थीम वाली फिल्में हैं जिन्हें आप घर पर दूसरों के साथ भी देख सकते हैं।
 
मोनिका को घर का बना राजमा चावल बहुत पसंद है, लेकिन जब वे बाहर खाना खाती हैं तो कभी-कभार पिज्जा, बर्गर और इटेलियन खाना (व्हाइट सॉस पास्ता सबसे ज्यादा पसंदीदा है) खाना पसंद करती हैं। उनकी बचपन की साथी दीपाली एक करीबी दोस्त है, जो लैक्मे स्टूडियो में मेकअप आर्टिस्ट हैं। उनके भाई मनीष (23) एक निजी कंपनी में एचआर विभाग में काम करते हैं।
 
मोनिका इस बारे में स्पष्ट हैं कि वे क्या चाहती हैं: एक उद्यमी बनना और मेज़पोश, बेडशीट, हाथ से और ब्लॉक-मुद्रित कपड़े और गहने बनाने वाला कपड़ा-आधारित स्टूडियो या कारखाना शुरू करना। उनके चार-पाँच दोस्त भी उससे जुड़ने के इच्छुक हैं। वे 2 से 5 लाख रुपये की प्रारंभिक पूंजी की तलाश में हैं। यदि वे उस रकम का प्रबंध नहीं कर पाती हैं, तो वे कहीं और रोजगार तलाशेंगी।
 
उनके उद्यमिता के सपने को क्या प्रेरित करता है? “मैं अपने जैसे लोगों के लिये एक अवसर प्रदान करना चाहूँगी जो अपनी विकलांगता के कारण निराशा और अस्वीकृति का सामना करते हैं। मैं उनकी क्षमताओं को पहचानना चाहती हूँ और उन्हें सफल होने का मौका देना चाहती हूँ।”
 
क्या यह आपको याद दिलाता है कि यह ब्लॉग किस बारे में _एव्रीवन इस गुड एट समथिंग_ यानि हर कोई किसी न किसी चीज़ में अच्छा है।

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विक्की रॉय