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"मुझे गाने सुनना बेहद पसंद है, मैं उनकी धुन पर डांस करने की कोशिश भी करती हूँ"

सेरेब्रल पल्सी से जूझ रही 8 साल की मनीषा कुमारी से फ़ोटोग्राफ़र विकी रॉय ने ज़मीन पर उसके क़रीब बिखरे पड़े कुछ कंचे (कांच की गोलियां)उठाने को कहा। ये सुनकर जब उसने अपने हाथों को हिलाने डुलाने की कोशिश की, तो इस प्रयास में उसकी अकड़ी हुई बाज़ुओं में थोड़ी सी हरकत हुई। अपनी बेजान सी उंगलियों की मदद से उसने किसी तरह एक कंचे को लगभग उठा लिया। जैसे ही उसने ऐसा किया, उसकी गहरी काली आंखें खुशी से चमक उठीं

'सेरेब्रल पल्सी' एक ऐसी बीमारी है, जिसके बारे में आज भी देश के ज़्यादातर लोग कुछ नहीं जानते। शहरों में रहने वाले कुछ गिने चुने शिक्षित लोगों को ही शायद इस बीमारी के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी हो, तो भला झारखंड के रामगढ़ ज़िले में गोला ब्लॉक के हप्पू गाँव में रहने वाले एक दिहाड़ी मज़दूर को इस बीमारी के बारे में क्या पता होता। जनवरी 2021 में गांव में लगे एक कैम्प में एक डॉक्टर ने मनीषा का दिव्यांग सर्टिफिकेट बनाया और उसमें बीमारी के तौर पर CP (सेरेब्रल पल्सी) लिखा। हालाँकि उस डॉक्टर ने भी मनीषा के माता पिता मुकेश महतो और सविता देवी को इस बीमारी के बारे में कुछ नहीं बताया। शायद वो उन्हे ये बताने में अपना समय ख़राब नहीं करना चाहते थे कि "सेरेब्रल पल्सी से पीड़ित किसी इंसान (जिसे आमतौर पर मंदबुद्धि या दिमाग़ी रूप से कमज़ोर कहा जाता रहा है) का दिमाग़ पूरी तरह विकसित नहीं हो पाता है। या ये कि ये बीमारी मरीज़ की मांशपेशियों और 'मूवमेंट' पर ख़राब असर डालती है। सेरेब्रल पल्सी के लक्षण भी हर किसी में अलग अलग होते हैं। सबसे अहम बात ये कि भले ही इस बीमारी का कोई पक्का इलाज मौजूद न हो, लेकिन बेहतर देखरेख के ज़रिए मरीज़ की ज़िन्दगी आसान ज़रूरी की जा सकती है।" 

शुरुआती आठ सालों तक तो दोनों पति पत्नी अपने पहले बच्चे को लेकर डॉक्टरों के पास इधर से उधर भटकते रहे कि शायद किसी की दवा काम कर जाए, उनकी बच्ची ठीक हो जाए। दरअसल उन्हे मनीषा के लिए चिंता तब शुरू हुई जब एक साल की होने के बाद भी वो घुटनों के बल चलना तो दूर, ख़ुद से करवट लेना भी नहीं सीख पाई। वो पहले तो उसे इलाक़े के ही एक डॉक्टर के पास ले गए, जो बीमारी को समझ ही नहीं पाया। बाद में वो उसे रामगढ़ के सरकारी ज़िला अस्पताल ले गए, लेकिन वहाँ भी उन्हे कोई जवाब नहीं मिला।

उनके लिए मनीषा का दिव्यांग प्रमाणपत्र भी उसकी बीमारी के बारे में जानकारी हासिल करने के बजाए, उसको मिलने वाली सुविधाओं के लिहाज से ज्यादा जरूरी था। क्योंकि इस प्रमाणपत्र की वजह से उसे दिव्यांगों को मिलने वाली कई सुविधाएं मिल जातीं।

मुकेश एक ज्वाइंट फेमिली में रहते हैं। उनके परिवार में वो, उनकी पत्नी सविता और उनके तीन बच्चों के अलावा मुकेश के बड़े भाई अखिलेख, उनकी पत्नी और बेटे शामिल हैं। इसके अलावा उनके पिता कैलाश महतो (55) और उनकी माँ मिन्नी देवी (50) भी साथ ही रती हैं। मुकेश महीने में तकरीबन 6 हज़ार रुपये कमा लेते हैं। कैलाश भी दिहाड़ी मज़दूर हैं, और उनकी कमाई भी लगभग इतनी ही है। अखिलेश ग्रेजुएट ज़रूर हैं, लेकिन वो एक अस्पताल में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करते थे। हालाँकि उनकी ये नौकरी भी छूट गई है और अब वो सरकारी नौकरी के लिए हाथ पैर मार रहे हैं। इस पूरे परिवार के आधा एकड़ से भी कम ज़मीन है, जिसमें वो धान और कुछ मौसमी सब्ज़ियां, जैसे आलू, प्याज और अरबी वगैरह उगाते हैं।

जहां सविता अपने दो महीने के बेटे के साथ घरेलू कामों में व्यस्त है, तो वहीं उनका चार साल का बेटा चंदन और उनका चचेरा भाई इलाक़े के आंगनवाड़ी केंद्र (चाइल्ड केयर सेंटर) के लिए रवाना हो गए हैं। हालाँकि अगर मनीषा की दिनचर्या कुछ खास नहीं है। सुबह आठ बजे उसका नाश्ता होता है, 12 बजे दोपहर में लंच और रात में 8 बजे डिनर। एक तरह से यही उसकी दिनचर्या है। वो न तो बोल सकती है, न ही वो अपने शरीर को ज़्यादा हिला डुला सकती है। कभी कभार उसकी दादी मिन्नी देवी उसे कुछ खिलौने दे देती हैं। इसी तरह कैलाश उसे लेकर सड़क के किनारे चले जाते हैं, जहाँ वो आने जाने वाले लोगों को ताकती रहती है।

लेकिन इस बेजान से शरीर के अंदर जीवन की उमंगें हिलोरें मार रही हैं। वो सब समझती है और आपको इशारों के ज़रिए जवाब भी देती है। जब चंदन से उसका झगड़ा होता है तो वो अपनी पूरी ताक़त से उसे धकेलने की कोशिश करती है। गाने सुनते वक़्त तो उसके चेहरे की चमक देखते ही बनती है। अखिलेश कहते हैं कि जब कभी किसी शादी समारोह में गाने बजते हैं तो वो सहारा लेकर खड़ी हो जाती है और धुन के साथ थिरकने की कोशिश करने लगती है।

अगर वो जीवन से भरी आखें अपनी चमक खो देंगी , तो हमारा दिल भी टूट जाएगा। एक 'मोबाइल इंटरवेंशन यूनिट' (मनीषा की मदद के लिए ) का इंतज़ाम करना कोई बड़ी बात नहीं है। इस यूनिट के ज़रिए उसे उसके घर पर ही 'स्पीच थेरेपी' और 'फीजियोथेरेपी' दी जा सकेगी, जिससे उसकी पढ़ाई और उसके सुनहरे भविष्य की राह भी तैयार हो सकेगी। क्या हम उसके लिए ये सपने बुन सकते हैं - जब एक दिन मनीषा सड़क किनारे बैठ कर दुनिया को अपने सामने आता जाता देखने के बजाए ख़ुद भी उसी दुनिया में उतर सके? अपनी मंज़िल की तलाश में आगे बढ़ सके?- वो भी किसी पर बोझ बन कर नहीं, ख़ुद अपने दम पर?

तस्वीरें:

विक्की रॉय