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“मेरे लिये अपने कमरे से नीचे आना मुश्किल है। लेकिन मेरे पति मेरा और मेरे मायके वाले परिवार का बहुत समर्थन करते हैं।"

ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में विकलांग व्यक्तियों को बेईमान बिचौलियों द्वारा उनके विकलांगता लाभ से वंचित किया जाना असामान्य बात नहीं है। कुछ छोटे मोटे नेता (राजनीतिक नेता) जिनका नाम बी-ग्रेड बॉलीवुड फिल्म के खलनायक से मिलता-जुलता है, किसी विकलांग व्यक्ति से UDID (विकलांगता कार्ड) दिलाने के वादे के साथ संपर्क करते हैं और या तो कमीशन लेते हैं या, सबसे बदतर स्थिति होती है, कि विकलांगता पेंशन को अपने खाते में डाल लेते हैं  
 
हमें संदेह है कि छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले के खमतराई की ममता यादव (33) के साथ कुछ इसी तरह की घटना हुई है। उनको बौद्धिक और लोकोमोटिव दोनों विकलांगताएं हैं। हमारे इंटरव्यू लेने वाले आश्चर्यचकित थे कि उनकी माँ लाल कुसुम यादव (50) उनसे बात करने में इतनी अनिच्छुक क्यों थी, जब तक उन्हें यह पता नहीं चला कि असल में लाल कुसुम को ये लगा था कि इंटरव्यू लेने वाले व्यक्ति उस स्थानीय नेता के चमचे हैं, जिसने ममता का UDID बनवाया था! फरवरी 2021 में प्रमाणपत्र मिलने के बावजूद उन्हें विकलांगता पेंशन क्यों नहीं मिल रही थी? वो जानना चाहती थीं।
 
ममता के पति धर्मेंद्र यादव (38) ही थे, जिन्होंने हमारे कई सवालों के जवाब दिये। एचपीएस लॉजिस्टिक्स के डिलीवरी एक्जीक्यूटिव धर्मेंद्र का कार्य दिवस 12 घंटे है और वो रात में 10 या 11 बजे तक ही घर लौटते हैं; रविवार उनका एकमात्र छुट्टी का दिन है। एक मृदुभाषी व्यक्ति, उन्होंने हमें बताया कि वो अपनी शादी से पहले ममता से नहीं मिले थे और उन्हें नहीं पता था कि ममता को (जैसा कि उनके UDID ​​में उल्लेख किया गया है) 75 प्रतिशत बौद्धिक विकलांगता है या लोकोमोटर समस्याएं (उनके UDID में उल्लेख नहीं है) हैं। 2006 में वो दिल्ली में काम कर रहे थे जब उनके पिता ने शादी के लिये लड़की पक्की की। जाहिर तौर पर ममता के पिता विजय प्रसाद यादव ने धमेन्द्र के पिता से कहा, "हमारे क्षेत्र में शादी से पहले लड़के द्वारा लड़की देखने का रिवाज नहीं है।" उन्होंने कहा, ''ममता को कुछ दिक्कतें हैं लेकिन वो खाना बना सकती हैं।''
 
धर्मेंद्र का कहना है कि किस्मत उन्हें और ममता को साथ लायी है। "यह किस्मत थी," उन्होंने हमसे कहा। “भगवान ने हमारे लिये कुछ सोच रखा है।। वही है जो हमें सब कुछ देता है जो हमारे पास है।” दंपति के तीन बच्चे हैं: भावना (13), लड्डू  गोपाल (6) और आर्यन (5)। धर्मेंद्र बच्चों को नहलाते हैं, उन्हें स्कूल छोड़ते हैं और कुछ घरेलू कामों में मदद करते हैं लेकिन यह लाल कुसुम ही हैं जो सबसे बड़ा बोझ उठाती हैं। वो सारा खाना पकाती हैं और सफ़ाई करती हैं, बच्चों को खाना खिलाती हैं और ममता की उन कामों में मदद करती हैं जो वो खुद करने में असमर्थ हैं (उन्हें सीढ़ियाँ चढ़ने और अपने बालों में कंघी करने में परेशानी होती है)।
 
लाल कुसुम, ममता के जन्म ("वह मेरे प्रसव के कई घंटों बाद तक नहीं रोई थी") और उनके शुरुआती बचपन को याद करती हैं जब डॉक्टरों ने, जो जानते थे कि वे बौद्धिक रूप से अक्षम थीं, माता-पिता को सलाह दी थी: "उसे खिलाओ और उसकी देखभाल करो। उसे ठीक करने के लिये पैसे खर्च करने का कोई फायदा नहीं है, वह बदलने वाली नहीं है। कम से कम उसे कोई शारीरिक विकलांगता नहीं है।” यह धर्मेंद्र ही थे जिन्होंने UDID पाने की शुरुआत की। प्रमाणपत्र दिलाने वाले व्यक्ति के बारे में कुसुम ने कहा, "मैंने उनसे पूछा कि हमें कोई लाभ क्यों नहीं मिल रहा है और उन्होंने कुछ बहाना दिया जैसे कि ममता के पास उचित नाम नहीं हैया कुछ और।"
 
धर्मेंद्र ने कहा कि उनकी सभी बहनें शादीशुदा हैं और खुश हैं। वो हमेशा से अपने ससुराल वालों के साथ रहते रहे हैं; विजय प्रसाद के पिता, जो रेलवे में काम करते थे, उन्होंने रायपुर में एक प्लॉट खरीदा था जिसपर यह घर बनाया गया था। जब ममता छह साल की थीं तो विजय और कुसुम यहाँ आ गये थे। कुछ महीने पहले ही रेलवे में नौकरी पाने वाले अनय भी उनके साथ रहते हैं। सबसे बड़े ओम प्रकाश अलग रहते हैं और निजी क्षेत्र में काम करते हैं।
 
लाल कुसुम ने कहा, "कुछ आंतरिक अशांति" का अनुभव होने पर ममता कभी-कभी गुस्से में आ जाती है, लेकिन बच्चों से प्यार से बात करती है, हालाँकि वह नहीं जानती कि उनकी देखभाल कैसे करनी है। उन्होंने हमसे UDID मुद्दे को सुलझाने में मदद करने की अपील करके हमारी बातचीत समाप्त की।


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विक्की रॉय