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"लोगों ने मेरे माता-पिता से कहा कि बड़ी होकर मैं उनसे नफरत करूंगी कि उन्हों मुझे ज़िंदा रखा"

जब जोधपुर की डॉ. कुसुमलता भंडारी (66) को बुलबार पोलियो हुआ, जिससे साढ़े तीन साल की उम्र में गर्दन के नीचे लकवा मार गया, तो कई लोगों ने उनके माता-पिता से कहा कि उनका मर जाना ही बेहतर है! कुसुम के पिता एक मेडिकल डॉक्टर थे और वो और उनकी पत्नी सीता बच्चे को विभिन्न उपचारों के लिये देशभर के अस्पतालों में ले गये। सबसे अच्छी सलाह महालक्ष्मी, मुंबई में एसआरसीसी चिल्ड्रन हॉस्पिटल के एक डॉक्टर से मिली: "उसके पास जो बचा है - एक सक्रिय दिमाग - उस पर ध्यान दें।"

सीता कुसुम को आत्मनिर्भर बनाने पर तुली थीं। उन्होंने उसे सिलाई और घर के काम करने के लिये अनने हाथों में हरकत की जो सीमित क्षमता थी उसको इस्तेमाल करने में सक्षम बनाया। लेकिन उनकी औपचारिक शिक्षा महज संयोग से शुरू हुई। उनके बड़े भाई के पास होम ट्यूटर था क्योंकि सीता 11 वर्षीय कुसुम और उसकी तीन साल की बहन की देखभाल में व्यस्त थी तो वो पढ़ाई में पिछड़ गये थे। कुसुम अपने भाई के पाठों से आकर्षित थी और वो ट्यूटर से कई प्रश्न पूछती थी। उन्होंने उसे कक्षा 1 की पढ़ाई से परिचित कराने का फैसला किया।


वो सीखने में बहुत तेज़ थीं। केवल तीन वर्षों में वो कक्षा 10 की परीक्षा में बैठने के लिये तैयार थीं। यह  एक ऐसा अनुभव था जिसका उन्होंने इतना आनंद लिया कि "यह फिल्म देखने जाने जैसा था!" उन्होंने अपने पहले प्रयास में पास होकर अपने टीचर की भविष्यवाणी को सही साबित किया। एक महिला कॉलेज से ग्रेजुएट होने के बाद उन्होंने राजनीति विज्ञान में एमए करने के लिये एक सह-शिक्षा कॉलेज चुना और पहली बार लड़कों के साथ बातचीत की। बातूनी और मिलनसार कुसुमलता ने अपनी कक्षा में टॉप किया और स्वर्ण पदक के साथ एमए पास किया।

सीता ने अपनी बेटी की पढ़ाते हुये कल्पना की, और जब भी उनके पति ने संदेह जताया, तो वे जवाब देतीं, "अगर कोई उसे लेक्चरर नहीं बनायेगा तो मैं उसके लिये एक कॉलेज खोलूंगी!" खैर, उन्हें इतनी दूर नहीं जाना पड़ा। डॉ. कुसुमलता जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर में पीएचडी (और इसके कानून की डिग्री) प्राप्त करने के बाद एक बहुत ही प्रिय और सम्मानित प्रोफेसर बन गईं।
जब उन्होंने महसूस किया कि कैंपस में कई विकलांग छात्र किताबें, फीस या रहने के लिये जगह लेने में समर्थ नहीं हैं, तो उन्होंने अपने सहयोगियों और दोस्तों के नेटवर्क का इस्तेमाल किया। उनमें से एक ने उन्हें अपनी हवेली के दो कमरे, एक किचन और गैरेज दे दिया था। दूसरों ने बर्तन और गद्दे दान किये और गैस और बिजली के लिये भुगतान किया। और तब हुआ प्रज्ञा निकेतन का जन्म। अपने वर्तमान अवतार में छात्रावास 100 नेत्रहीन और शारीरिक रूप से विकलांग छात्रों को स्थान देता है, जिनके लिये यह मुफ्त रहना और खाना और सहायक उपकरण प्रदान करता है

डॉ. कुसुमलता अपने छात्र और साथी डॉ. निर्मला बिश्नोय के साथ रहती हैं, और बागवानी और अपनी मोटर चालित इलेक्ट्रिक सिलाई मशीन पर सिलाई का आनंद लेती हैं। एक अथक एक्टिविस्ट, उन्होंने राजस्थान में विकलांग व्यक्तियों के लिये महत्वपूर्ण परिवर्तन - जोधपुर विश्वविद्यालय के छात्रों के लिये शुल्क माफी, सरकारी कर्मचारियों के लिये गृह जिला पोस्टिंग, और डाक मतपत्र - किये हैं। मुकेश का पुराना गीत "किसी की मुस्कुराहटों" उनके मूल विश्वास - किसी के लिये मुस्कान लाना और उनके दर्द को दूर करना यही तो जीवन है - को दर्शाता है।

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विक्की रॉय