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"समाज हमेशा यह कहकर एक सीमा तय करता है कि हम बस इतनी दूर ही जा सकते हैं। जब तक हम आगे नहीं बढ़ेंगे, तब तक हम आज़ाद कैसे होंगे।

जो लोग बेंगलुरु से 60 किलोमीटर दूर चिक्कबल्लापुर जाते हैं, उन्हें एक युवा महिला, काव्या नायक द्वारा चलाई जाने वाली एक छोटी सी दुकान के.के. स्टेशनरी और फैंसी स्टोर शायद नज़र आये। ज़ाहिर है, दो ‘K’ उसके और उसके 35 वर्षीय पति किरण बी नायक के नाम के लिये हैं। यह ज़ाहिर नहीं है, कि किरण एक ट्रांसमैन है। उनकी चार साल की बेटी अनन्या साईं परिवार को पूरा करती है।
 
जिस समय हम किरण मिले, काव्या अपने पिता की मृत्यु के रीति-रिवाजों में शामिल हो रही थीं। स्पोंडिलोसिस रूमटॉइड गठिया से पीड़ित होने के बावजूद किरण ने अपनी सामान्य जीवन शक्ति का परिचय दिया। स्टेरॉयड के व्यापक उपयोग ने उनके आंतरिक अंगों पर भारी असर डाला और उन्होंने अपने आयुर्वेदिक उपचार के लिये धन की अपील की है। हालाँकि, उनकी बीमारियों के बावजूद, उनका जोश और जुझारूपन कम नहीं हुआ है।
 
किरण, खानाबदोश लम्बनी समुदाय के सदस्य के रूप में, आंध्र प्रदेश के वारंगल जिले के नरसंपेट में जंगलों से घिरे हनुमान थंडा (आदिवासी बस्ती) में पली-बढ़ी। एक लड़की के रूप में पैदा हुये, वो "हमेशा शॉर्ट्स और शर्ट में रहते थे"। चूंकि उन्हें तीन साल की उम्र में पोलियो हो गया था, इसलिये वो अपने घर से 3 किमी दूर एक-शिक्षक (सिंगल-टीचर) वाले प्राथमिक विद्यालय नहीं जा पाते थे। "कृष्णमूर्ति-सर" ही थे, जिन्होंने अपने स्कूटर पर सवार होकर जाते समय आठ साल के बच्चे को देखा और उसके माता-पिता, जो खेतिहर मज़दूर के रूप में काम करते थे, उनसे यह पूछने के लिये रुके कि बच्चा स्कूल में क्यों नहीं है। अगले दिन से और उसके बाद हर दिन, कृष्णमूर्ति-सर उन्हें खुद स्कूल ले जाते और वापस लाते।
 
स्कूल मास्टर के मार्गदर्शन में, किरण ने तेजी से अकादमिक प्रगति की, हाई स्कूल ख़त्म किया और नरसंपेट में कॉलेज में प्रवेश लिया। सुलभता ऐक्सेसबिलिटी) के मुद्दों का सामना करने के अलावा, उन्हें गर्ल्स हॉस्टल में रहना बहुत अजीब लगा। एक अन्य विकलांग छात्र सरिता और वो सबसे अच्छे दोस्त बन गये। इस 18 वर्षीय ने विकलांगता अधिकार एक्टिविज़्म में अपना पहला कदम तब उठाया जब उन्होंने विश्व विकलांग दिवस के लिये एक एक्शन प्लान पर चर्चा करने के लिये छह विकलांग साथी छात्रों को अपने साथ शामिल किया। उन्होंने वारंगल जिले में 1,000 विकलांग व्यक्तियों के पते निकाले और पोस्टकार्ड लिखकर उन्हें विकलांगता लाभ प्राप्त करने के लिये एक स्थानीय मैदान में इकट्ठा होने के लिये आमंत्रित किया।
 
3 दिसंबर की सुबह, लगभग 700 लोग - विकलांग व्यक्ति (पीडब्ल्यूडी) अपने परिवारों के साथ आये! किरण ने उनसे आग्रह किया कि जब तक उन्हें प्रमाण पत्र नहीं दिया जाता तब तक वे पीछे न हटें। स्थानीय अधिकारी अचानक इतनी भीड़ को संभाल नहीं पाये। स्थानीय विधायक मौके पर पहुँचे और वादा किया कि उनका कर्तव्य है - एक चिकित्सा शिविर आयोजित करना जहाँ डॉक्टर पीडब्ल्यूडी की जांच करेंगे और प्रमाण पत्र जारी करेंगे। किरण ने प्रज्वला ने डिसेबिलिटी राइट्स फाउंडेशन का गठन किया जिसने दो साल में आंध्र प्रदेश के 23 जिलों को कवर किया।
 
यह एक घटनाओं से भरे व्यक्तिगत और राजनीतिक यात्रा की शुरुआत थी। सरिता की छोटी बहन ने किरण के लिये अपने प्यार का इजहार किया और माता-पिता के विरोध के कारण यह जोड़ा तिरुपति भाग गया और 9 मार्च 2008 को एक सामूहिक विवाह समारोह में शादी के बंधन में बंध गया। उसके माता-पिता ने किरण के खिलाफ अपहरण का मामला दर्ज किया और उसके बाद के मीडिया सर्कस ने दंपति को आत्महत्या के कगार तक धकेल दिया। ट्रांसजेंडर अधिकार संगठसंगमा ने उन्हें समय रहते बचाया और किरण और काव्या ने बैंगलोर में अपना वैवाहिक जीवन शुरू किया। 2010 में किरण को अनेका संस्था से ट्रांसजेंडर मुद्दों पर काम करने के लिये एक फेलोशिप मिली, जिसके लिये उन्हें चिक्कबल्लापुर जाना पड़ा, जहाँ यह जोड़ा तब से रह रहा है।
 
विकलांगता और ट्रांसजेंडर अधिकारों ने किरण के एक्टिविज़्म के दो मुख्य आधार बनाये। उन्होंने स्थानीय समस्याओं की पहचान करने और संबंधित अधिकारियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन आयोजित करने में कोई समय नहीं गंवाया। लेकिन उनकी रणनीति है: "पहले लड़ो, फिर दोस्ती करो"। उनके मिलनसार व्यक्तित्व ने उन कई अधिकारियों का दिल जीता जिनके खिलाफ उन्होंने पहले मुक्का दिखाया था और उन्होंने पुलिस, अदालत और सरकारी विभाग के अधिकारियों के साथ नेटवर्क भी बनाया। उनकी दृढ़ता के परिणामस्वरूप सरकारी कन्स्ट्रकशन्स को सुलभ बनाया गया, जैसे कि बस डिपो और वो बिल्डिंग जिसमें जिला आयुक्त का कार्यालय है उसमें सार्वजनिक उपयोग के लिये रैंप, लिफ्ट, व्हीलचेयर है और सुलभ (ऐक्सेसिबल) शौचालय है।

गठबंधन बनाने और अन्य संघर्षों के साथ साझे मुद्दे खोजने की किरण की उल्लेखनीय क्षमता ने स्थानीय आबादी के साथ उनके संबंधों को मज़बूत किया है जो अब उनकी यौन पहचान को पूरी तरह से स्वीकार करते हैं। उन्होंने विभिन्न जातियों, धर्मों और विकलांगों के आर्थिक रूप से कमज़ोर और हाशिए पर रहने वाले समूहों के लगभग 15 लोगों की एक कोर टीम को चुनकर 2010 में कर्नाटक विकासचेतनारा संगठन (KVS), एक विकलांगता संगठन की शुरुआत की। KVS के पास आज पूरे कर्नाटक से 12,000 से अधिक की सदस्यता है। यह पीडब्ल्यूडी को कई कार्ड, पास और प्रमाण पत्र के लिये आवेदन करने में मदद करता है जो उन्हें सरकारी सब्सिडी के लिये हक़दार बनाता है। इनके द्वारा पीडब्ल्यूडी के लिये शुरू की गई कंप्यूटर प्रशिक्षण कक्षाएं महामारी के दौरान बंद हो गईं।
 
 2011 में किरण ने निसर्ग की शुरुआत की, जो ट्रांसजेंडर समुदाय के लिये काम करता है और समाज सेवा के लिये राज्य पुरस्कार भी जीता है। यह अब अपनी ही ताकत से चलता है, किरण इसमें केवल एक वॉलंटियर है। 2019 में उन्होंने हैदराबाद में पैरवी संगठन, सोसाइटी फॉर ट्रांसमेन एक्शन एंड राइट्स (STAR) की शुरुआत की। वे कहते हैं, "सरकार को ट्रांसमेन को एक अलग श्रेणी के रूप में मान्यता देनी चाहिये"। हालाँकि आधार कार्ड में अब तीन श्रेणियां हैं - पुरुष, महिला और ट्रांसजेंडर – सरकार 'T/टी' को अपनेआप ही ट्रांसवुमन और हिजड़ा समुदाय के सदस्यों के रूप में मान लेती है, और ट्रांसमेन के अस्तित्व को मुश्किल ही पहचानती है।
 
किरण खुद एक से अधिक कैटेगरी में हैं। एक आदिवासी, पीडब्ल्यूडी और ट्रांसमैन के रूप में, वह प्रतिच्छेदन इंटरसेक्शनेलिटी एक अनूठा उदाहरण हैं।


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विक्की रॉय