हमारे आर्टिकल पढ़ने वाले अक्सर हमसे कहते हैं कि EGS का ये मिशन उनके लिए उम्मीद की रौशनी बनकर आया है। लेकिन हम हमेशा ख़ुश करने वाली कहानियाँ देने का वादा नहीं कर सकते। किसी भी वक़्त एक दिव्यांग की ज़िन्दगी में अचानक ऐसा मोड़ आ सकता है कि उसकी ज़िन्दगी बदतर हो जाए। ओडिशा के पुरी में रहने वाली कौशल्या स्वाईं के साथ ऐसा ही हुआ। कोविड की वजह से उन्होंने अपने इकलौते भाई को खो दिया।
बेटे को खोने के दुख में उनके बुज़ुर्ग माता-पिता भी पूरी तरह टूट चुके हैं। उनकी माँ आजकल बातचीत तक नहीं करतीं और पिता, जो कि एक दिहाड़ी मज़दूर हैं, दिन पर दिन कमज़ोर होते जा रहे हैं। कौशल्या की भाभी को लगातार ये चिंता खाए जा रही है कि आखिर वो अपने स्कूल जाने वाले दोनों बच्चों का ख़र्चा कैसे उठाएंगी। कौशल्या की एक छोटी बहन भी है जिसकी अभी शादी नहीं हुई है। पूरा परिवार सरकारी योजना के तहत मिलने वाले राशन (चावल), अपनी गाय से मिलने वाले दूध और सरकार की तरफ़ से BPL (ग़रीबी रेखा के नीचे) परिवारों को मिलने वाली सहायता राशि के सहारे ज़िंदगी गुज़ार रहा है।
उनके लिए तो जैसे परिवार का इकलौता सहारा ही अचानक चला गया। कौशल्या बताती हैं कि वो कपास की बनी बत्तियाँ बनाकर पुरी के प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर के बाहर बेचती थीं। “मेरा भाई मुझे बस से वहाँ तक ले जाता था, लेकिन अब मेरे पास बस का टिकट ख़रीदने तक के पैसे नहीं हैं।” परिवार पर आई त्रासदी ने कौशल्या को बेहद उदास कर दिया है। वो बताती हैं, “मुझे घर पर रहना पसन्द नहीं अब, क्योंकि परिवार में सबके चेहरे पर दर्द पसरा दिखता है, चिंता दिखती है। इसलिए मैं बाहर टहलती रहती हूँ या दोस्तों के साथ समय बिताती हूँ।”
पैर की बीमारी के साथ दुनिया में आई कौशल्या 12-13 साल की उम्र तक ज़मीन पर रेंगते हुए या अपने आप को घसीटते हुए चलती थीं। फिर उनकी एक रिश्तेदार ने (जो अब नहीं रहीं) उन्हें चलने की कोशिश करने के लिए हौसला दिया। वो कौशल्या के लिए एक छड़ी लेकर आईं और उन्हें छड़ी के सहारे चलना सिखाया। कौशल्या ने बताया, “मेरा भाई मुझे स्कूल तक छोड़ आता था। लेकिन 10वीं में फ़ेल होने के बाद मैंने स्कूल जाना बन्द कर दिया।” अब कौशल्या घर पर अपनी भाभी की रोज़मर्रा के काम में मदद करती हैं, कभी सब्ज़ियाँ काटने में, तो कभी चूल्हा देखने में।
वैसे तो, भुवनेश्वर में जोगमाया चैरिटेबल ट्रस्ट के राकेश कुमार प्रधान 2019 के चक्रवाती तूफ़ान फ़ानी से हुए नुक़सान के लिए परिवार को मुआवज़ा दिलाने में मदद कर रहे हैं। लेकिन एक चीज़ है जो जोगमाया चैरिटेबल ट्रस्ट नहीं कर सकता, जो कौशल्या को ख़ुद अपने लिए करनी होगी। उन्हें निराशा की भावना से उभरना होगा और भविष्य का सामना करने की हिम्मत जुटानी होगी।