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"मैं बोलने का अभ्यास करता रहा हूँ और करता रहूँगा और कभी हार नहीं मानूंगा"

उत्तर प्रदेश के झाँसी में रहने वाली श्रीमती कुमकुम अरोड़ा उस समय थोड़ी चिंतित थीं जब उनके एक वर्षीय करण ने आवाज़ का जवाब नहीं दिया या बोलने का प्रयास नहीं किया। जिन डॉक्टरों से उन्होंने परामर्श किया, वे बोले थोड़ा विलंबित है। हालाँकि, उनकी चिंता तब दहशत में बदल गई, जब उन्होंने तीन साल की उम्र में भी उसकी वही प्रतिक्रिया देखी।

वे और भारतीय स्टेट बैंक के कर्मचारी उनके पति राकेश अरोड़ा, करण को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS), दिल्ली ले गये, जहाँ उसकी सुनने की गंभीर हानि डाइग्नोज़ की गयी और एक श्रवण सहायता (हियरिंग ऐड) बताई गई। चूंकि उसके डाइग्नोज़ में देरी हुई थी, इसलिए उसका बोलना पूरी तरह से विकसित नहीं हुआ था, और एम्स में स्पीच थेरेपी सत्रों के बावजूद उसने धीमी गति से प्रगति की।

अरोड़ा दंपति को करण की शिक्षा की चिंता सताने लगी। उनके पहली संतान ग़ज़ल के साथ सब कुछ सुचारू रूप से चल रहा था, लेकिन जब करण की बात आई तो उन्हें यह तय करना पड़ा: क्या उसे एक बधिर स्कूल में दाखिला लेना चाहिये, जहाँ वो सांकेतिक भाषा सीखेगा, या एक नियमित स्कूल में? उन्होंने बाद वाला चुना - और वो भी हिंदी-माध्यम वाला स्कूल जिसे जगत तारन प्राथमिक विद्यालय कहा जाता है, क्योंकि एक डॉक्टर ने उन्हें अपनी मातृभाषा सीखने पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी थी। एक ईएनटी डॉक्टर और एक स्पीच थेरेपिस्ट के मार्गदर्शन में, और बहुत अधिक धैर्य और प्रयास के साथ, कुमकुम ने करण को यूकेजी से कक्षा 1 में पदोन्नत करने में सक्षम बनाया - एक मुख्यधारा के स्कूल में श्रवण बाधित बच्चे के लिये काफी बड़ी उपलब्धि थी। बाद में करण को 1992 में भेल शिक्षा निकेतन, एक अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में प्रवेश मिला।

लेकिन शब्द और भाषा ही संचार का एकमात्र रूप नहीं है। जब करण केवल चार वर्ष के थे, राकेश ने देखा कि कैसे उन्होंने ड्राइंग में विशेष रुचि दिखाई। जब वे दूसरी कक्षा में थे तब उन्होंने अपनी पेंटिंग के लिये दूसरा पुरस्कार जीता। अपने माता-पिता द्वारा प्रोत्साहित और निर्देशित, उन्होंने प्रकृति से वस्तुओं, जानवरों और दृश्यों के चित्र बनाये। उन्होंने अपने कौशल को निखारने के लिये कला की कक्षाएं लीं और आगे बढ़ते हुये पुरस्कार बटोरते हुए तेल चित्रकला में भाग लिया।

जब करण कक्षा 10 में थे, तब उनका परिवार मुंबई चला गया, जहाँ उन्हें कई कलाकारों और कला प्रदर्शनियों से रूबरू कराया गया। इसने उनकी एक पेशेवर कलाकार बनने की इच्छा को बढ़ावा दिया। वे सर जेजे इंस्टीट्यूट ऑफ एप्लाइड आर्ट, मुंबई द्वारा चुने जाने पर रोमांचित थे, जहाँ उन्होंने अपना बीएफए (बैचलर ऑफ फाइन आर्ट्स) कोर्स पूरा किया। जेजे इंस्टीट्यूट ने उन्हें विभिन्न कला रूपों के साथ प्रयोग करने की अनुमति दी। वे कहते हैं, "मैंने अपने कॉलेज का भरपूर आनंद लिया और बहुत सारी पेंटिंग, पोस्टर डिज़ाइन, पैकेजिंग, रंग और रचना, और विज्ञापन किये।"

करण के प्रतिष्ठित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिज़ाइन, अहमदाबाद से ग्राफिक डिज़ाइन में मास्टर्स पूरा करने के बाद, उनके करियर की राह ने उन्हें डिजिटल ब्रह्मांड तक पहुँचाया। अब 35 साल के करण, यूआई/यूएक्स (यूजर इंटरफेस/यूजर एक्सपीरियंस) डिज़ाइनर के रूप में बेंगलुरु में डेल टेक्नोलॉजीज के लिये काम करते हैं। यह वो डिज़ाइनर है जो किसी कंपनी के उत्पादों या सेवाओं के साथ उपयोगकर्ता के समग्र अनुभव और उपयोगकर्ता और सॉफ़्टवेयर के बीच बातचीत की गुणवत्ता में सुधार करता है।

करण वेब और मोबाइल डिज़ाइन पर काम करते हैं लेकिन उनका घर पारंपरिक कला माध्यमों के लिये उनके स्थायी प्रेम का प्रमाण प्रदर्शित करता है। उन्होंने कई जल रंग पेंटिंग की हैं, रेत कला में अपना हाथ आजमाया है, और सुलेख और चित्रण के बारे में भावुक हैं। पिछले साल उन्होंने एक 40-पृष्ठ सर्पिल-बाउंड पुस्तक, "वयस्कों और किशोरों के लिये रंग और डूडलिंग" (https://www.amazon.in/gp/product/1636403093/ref=ox\_sc\_saved\_image\_2?smid=A3B47YVAXI9QAQ&psc=1) को स्वयं प्रकाशित किया।) उन्हें इंडिया इंक्लूजन फाउंडेशन की पहल, 2022 आर्ट फॉर इंक्लूजन फैलोशिप के लिये भी चुना गया था।

राकेश (अब सेवानिवृत्त) और कुमकुम झांसी में रहते हैं जबकि उनकी बेटी गज़ल अरोड़ा त्रिवेदी मेलबर्न में डिजिटल मार्केटिंग डायरेक्टर के रूप में काम करती हैं। करण का अब अपना परिवार है। उनके माता-पिता ने उनकी शादी रितु के साथ तय की, जो बैंगलोर के सेंट जेवियर स्कूल में पढ़ाती हैं। करण कहते हैं, "रितु एक बेहतरीन महिला हैं और उन्हें मेरी विकलांगता के बावजूद मुझसे शादी करने की कोई चिंता नहीं थी।" "हम आमने-सामने मिले, और हालाँकि मैं बोल नहीं सकता था, उसने मुझे पूरी तरह से समझा।" उनकी एक आठ साल की बेटी है - ज़ारा, जो दिल्ली पब्लिक स्कूल में पढ़ती है।

करण का कहना है कि डेल उन्हें काम करने के लिये अनुकूल माहौल प्रदान करता है और उनके सहकर्मी बेहद सहयोगी हैं। उनका प्रयास विकलांग व्यक्तियों के लिये वेब को सुलभ बनाना है।

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विक्की रॉय