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"पहला कदम हमेशा कठिन होता है, लेकिन एक बार जब आप इसे उठा लेते हैं, तो यात्रा आसान हो जाती है"

विकलांगता को आधिकारिक तौर पर प्रतिशत में मापा जाता है। आपकी चुनौती जितनी अधिक होगी, प्रतिशत उतना ही अधिक होगा। दिल्ली की काजल मिश्रा (24) की शारीरिक अक्षमता बहुत कम है, लेकिन इसके कारण उन्होंने जो कुछ भी सहा है, उसे संख्याओं में व्यक्त नहीं किया जा सकता है।

शिशु अवस्था में एक चोट ने उनके एक पैर को प्रभावित किया और सर्जरी के बावजूद यह दूसरे पैर से छोटा रहा। एक बेहतर और अपनाने वाले परिवार में यह एक ना के बराबर बाधा होती लेकिन काजल की परिस्थितियाँ इतनी अनुकूल नहीं थीं। वह बताती हैं, “मुझे अपने माता-पिता के ताने सहना मुश्किल लगा। मुझे परिवार के सभी दुर्भाग्य के लिये दोषी ठहराया गया, और एक लड़की होने के कारण चीजें और भी खराब हो गईं।" उनके पिता उन्हें थप्पड़ मारते थे। उनकी माँ ने पढ़ाई में उनकी रुचि को नज़रअंदाज़ किया और उन्हें घरेलू कौशल सीखने के लिये प्रेरित किया जिससे उन्हें एक पति खोजने में मदद मिले।

काजल कहती हैं, ''मैंने अपने घर में कभी घर जैसा महसूस नहीं किया”, जो जितनी बार संभव होता बाहर रहने का बहाना ढूंढती थी। स्कूल की छुट्टियों में वे भागकर पुस्तकालय चली जाती थी। हालाँकि उनके चार छोटे भाई-बहन थे, लेकिन फिर भी उन्होंने अपने दिन काफी हद तक एकांत में बिताये। वह दौड़कर अन्य बच्चों के साथ नहीं खेल सकती थीं, और उनकी विकलांगता उनके चिढ़ाने का कारण बन गई थी। उनके असमान पैरों का मतलब था कि साइकिल चलाना सीखने से इंकार कर दिया गया, उसी तरह ऊँची एड़ी के जूते पहने से भी। लेकिन उन्होंने इन नाकाम इच्छाओं को ज्यादा देर तक परेशान नहीं करने दिया। उन्होंने अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित किया और थिएटर में शामिल हो गईं।

जब वे नौवीं कक्षा में पहुँची तो काजल एक सरकारी स्कूल में शिफ्ट हो गई। तब तक उन्होंने विकलांग लोगों की सफलता की कहानियां सुनी थीं और उन्होंने उनकी किताब से एक पत्ता निकालने का फैसला किया। उन्होंने पाया कि उनके स्कूल में विकलांग विद्यार्थियों को सांस्कृतिक गतिविधियों से बाहर रखा जाता था, इसलिए उन्होंने एक समूह बनाया जो उनका समर्थन करेगा और उनके साथ काम करेगा। उन्होंने स्कूल के अधिकारियों को एक विशेष शिक्षक को नियुक्त करने के लिये राजी किया। इसने उनके जीवन के साथ-साथ विशेष आवश्यकता वाले अन्य विद्यार्थियों के जीवन को भी मौलिक रूप से बदल दिया। आज भी जब वो निराश होती हैं या उन्हें सलाह की ज़रूरत होती है तो वे उस विशेष शिक्षिका के पास जाती हैं। 

काजल अपने शिक्षकों और मेंटर्स की आभारी हैं जिन्होंने उनका आत्मविश्वास बढ़ाया और उन्हें आगे बढ़ाया। उन्होंने जीसस एंड मैरी कॉलेज से हिंदी में ऑनर्स के साथ ग्रेजुएशन किया। 2018 में जब उनकी माँ की मृत्यु हुई तो उन्होंने चिंता और अवसाद का अनुभव किया। उनपर शादी करने का दबाव डाला गया, हालाँकि वे आगे की पढ़ाई करना चाहती थीं। अब और शारीरिक दुर्व्यवहार सहने की ताकत न रहने पर, जुलाई 2019 में उन्होंने घर छोड़ दिया।

शक्ति शालिनी, एक गैर सरकारी संगठन, जो जेंडर और यौन हिंसा से बचे लोगों का समर्थन करता है, उन्होंने उन्हें अपने पास रख लिया और वे पूरे कोविड-19 महामारी के दौरान उनके आश्रय में रही। जब स्थिति थोड़े संभली तो उन्होंने एक छोटा सा घर किराए पर ले लिया। अपनी यात्रा के बारे में बताते हुये वे कहती हैं, "वो पहला कदम उठाना सबसे कठिन था, लेकिन आज मैं बहुत खुश हूँ क्योंकि आखिरकार मुझे आजादी मिल गई।" वे अन्य सभी से भी अपनी जैसी स्थिति में ऐसा ही करने का आग्रह करती है।

आज वे कर्म मार्ग के लिये काम करती हैं, जो बच्चों के लिये एक आश्रय घर है जो उन्हें एक सुरक्षित आश्रय, परिवार जैसा माहौल और शिक्षा, कौशल विकास और रोजगार के अवसर प्रदान करता है। वे 6 से 18 साल के बच्चों के लिये शिक्षा परियोजनाओं का प्रबंधन करती है। उनके साथ काम करते हुये, वे अपनी खोई हुई किशोरावस्था को फिर से जी पाती हैं। वे कहती हैं, ''मैं उनकी तरह से सोच सकती हूँ क्योंकि वे भी अपने परिवार के समर्थन के बिना आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं।'' "खुद को बचाना मुश्किल है लेकिन मैं हर दिन खुद को चुनौती देने का आनंद ले रही हूँ।"

सामाजिक कार्य में मास्टर्स पूरा करने के बाद काजल एक विशेष शिक्षिका बनने की उम्मीद करती हैं और विकलांग लोगों का समर्थन करने वाली एक गैर सरकारी संस्था के लिये काम करना चाहती हैं। वे उन माता-पिता को प्रेरित करना चाहती हैं जो अपने विकलांग बच्चों को बोझ के रूप में देखते हैं, और विकलांगों के प्रति समाज की धारणा को बदलना चाहती हैं। वह कहती हैं, "सहानुभूति दिखाने के बजाय, लोगों को उनकी ताकत पर ध्यान देना चाहिये और उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए।" 

शक्ति शालिनी आश्रय में रहने के दौरान, काजल का परिचय संजय कुमार द्वारा संचालित पंडीज़ रंगमंच से हुआ। वे रविवार को भी थिएटर करती रहती हैं और उन्होंने अपने व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर तीन नाटकों में लेखन और अभिनय भी किया है। वर्तमान में वे LGBTQ+ समुदाय पर आधारित एक नाटक लिख रही हैं।

रंगमंच के अलावा उनको नृत्य करने और पंजाबी संगीत सुनने का शौक है। उन्हें अकेले यात्रा करने में भी आनंद आता है और उन्होंने नैनीताल और अलवर की यात्राएं की हैं। वे कहती हैं, "आज मैं जो कुछ भी हूँ, अपनी विकलांगता की वजह से हूँ।"" "मेरे जीवन की चुनौतियों ने मुझे बहुत कुछ सिखाया है और मुझे एक आत्मविश्वासी व्यक्ति बनाया है जो अपने मन की बात कह सकती है।"


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विक्की रॉय