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"धैर्य/धीरज और स्वीकृति - दो गुण जो समाज को विकसित करने की ज़रूरत है"

हर माँ अपने बच्चे के जन्म का वर्णन 55 वर्षीय शालिनी सरन गुप्ता की तरह नहीं करती है: "जैसे ही हमारी अनमोल गायत्री का जन्म हुआ, डिलीवरी टेबल पर उन्होंने हमें बताया कि उसे डाउन सिंड्रोम का आशीर्वाद मिला था।” शालिनी और शैलेंद्र की पहले से ही एक सात साल की न्यूरोटिपिकल, अद्विका थी, लेकिन वे जानते थे कि उनकी आगे आने वाली ज़िंदगी पहले जैसी कभी नहीं होगी।
उस समय दिल्ली में रहने वाले दंपति ने मदद के लिये तुरंत पूरे देश में गुहार लगाना शुरू कर दिया और डाउन सिंड्रोम फेडरेशन ऑफ इंडिया, चेन्नई की संस्थापक रेखा रामचंद्रन को पाया। शालिनी के एक चिंता और व्याकुलता से भरे फोन कॉल ने रेखा को मदद देने के लिये तुरंत चेन्नई से उड़ान भरने के लिये मज़बूर कर दिया था। शालिनी कहती हैं, "उन शुरुआती दिनों में व्यक्तिगत रूप से घर आने और अपने चिकित्सक / थेरेपिस्ट को हमारे घर भेजने के लिये हम सुश्री रेखा के बहुत आभारी हैं।"

छोटी बच्ची गायत्री के डाउन सिंड्रोम (डीएस) होने के अलावा, उसके दिल में भी कई छेद थे। उनमें से हर एक चमत्कारिक रूप से एक साल में ठीक हो गया। उसे इन कई महीनों में एक विसंक्रमित वातावरण में रहना पड़ा क्योंकि उसकी फुफ्फुसीय प्रणाली (पल्मोनरी सिस्टम) बहुत अधिक दबाव/तनाव में थी। उसकी आँख और कान की सर्जरी करनी पड़ी। इस दंपत्ति ने बहुत पहले ही गायत्री के जीवन में डीएस से संबंधित सभी मुद्दों से निपटने का मन बना लिया था।

परिवार अमेरिका गया और गायत्री की गहन चिकित्सा के लिये एक छोर से दूसरे छोर तक की यात्रा की। उन्होंने प्रक्रियाओं को रिकॉर्ड किया ताकि वे घर पर फिर से उनका अभ्यास कर सकें। उनकी मेहनत की बदौलत, गायत्री ने अपने बचपन के सभी ज़रूरी मुकामों को पूरा किया और 21 महीने की होते-होते वो एनर्जि से भरपूर दौड़ रही थी। अमेरिका की एक और यात्रा पर, शालिनी को उसके माता-पिता ने लखनऊ में बताया कि उन्होंने हाल ही में कैलिफोर्निया के खाड़ी क्षेत्र में विशेष ज़रूरतों वाले परिवारों के लिये एक सहायता समूह “जीना” के बारे में एक लेख पढ़ा था। शालिनी तुरंत उनके पास पहुँची, और एक अभिभावक विद्या गुहान ने उन्हें राष्ट्रीय बाल विकास अकादमी (एनएसीडी) से जोड़ा, जो एक व्यक्तिगत हस्तक्षेप कार्यक्रम के माध्यम से विकासात्मक विकलांग बच्चों के माता-पिता और देखभाल करने वालों को प्रशिक्षित करती है। शालिनी एनएसीडी को दिल्ली में एक शाखा स्थापित करने के लिये मनाने में कामयाब रही और गायत्री ने नियमित स्कूल में जाना शुरू करने से पहले पाँच साल तक उनके कार्यक्रम में भाग लिया। शालिनी कहती हैं, "एनएसीडी से बहुत अधिक फायदा हुआ है।"

गायत्री दिल्ली के वसंत वैली स्कूल में गयी और एक समावेशी (इंक्लूसिव) कक्षा में शामिल हुयी जो एक विशेष शिक्षा टीचर द्वारा समर्थित थी। रूमेटाइड अर्थराइटिस ने सात साल की गायत्री को गिराया ज़रूर लेकिन पूरी तरह से तोड़ नहीं सका। जैसा कि अद्विका ने अपने स्कूल के न्यूज़लेटर के लिये लिखा था, "मेरी बहन गायत्री को हर दिन स्कूल से पहले मालिश करनी पड़ती है क्योंकि उसकी मांसपेशियां सख्त हो जाती हैं और दर्द होता है, फिर भी, स्कूल आने के लिये वो अभी भी मुझसे ज्यादा उत्साहित है!"

2015 में जब गायत्री सातवीं कक्षा में थी, तब शैलेंद्र ने बैंगलोर में अपना खुद का काम स्थापित करने का फैसला किया। वह अपने समय को दो महानगरों के बीच बांटना चाहता था लेकिन 14 वर्षीय गायत्री का कुछ और ही प्लान था। उसने दृढ़ता से कहा, "मैं बैंगलोर में रहना चाहती हूँ," इसलिये परिवार सब कुछ बेच-बाचकर चला गया। वो उतनी ही अडिग इस बात पर भी थी कि अब उसे और स्कूल नहीं जाना है। वोकेशनल संसाधनों की खोज ने उन्हें प्रोजेक्ट प्रयास का रास्ता दिखाया जो उन लोगों के लिये कंप्यूटर प्रशिक्षण कार्यक्रम था जो ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम पर थे। 
 
गायत्री को कंप्यूटर बहुत पसंद था। वो ऐसी पहली व्यक्ति थी जिसने डीएस होने के साथ कार्यक्रम को सफलतापूर्वक पूरा किया और उसने ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट एरिना एनिमेशन में न्यूरोटिपिकल साथियों के साथ कोडिंग भी सीखी। अपनी अंतिम परीक्षा के हिस्से के रूप में उसने अपनी वेबसाइट बनाई। जब एरिना एनिमेशन ने एक कार्यक्रम आयोजित किया जिसमें संस्थान के सभी क्षेत्रीय प्रमुखों ने भाग लिया, जिसके दौरान उन्होंने कोडिंग पर बेहद शर्मीली गायत्री से काफी सवाल पूछे, तो उन्होंने सवालों की बौछार को बहुत अनुभवी खिलाड़ी की तरह संभाला!
 
अब गायत्री का रचनात्मक पक्ष धीरे-धीरे सामने आया। एक पारिवारिक मित्र, जो एक फोटोग्राफर थे, उन्होंने उसे कैमरे से परिचित कराया और वह बहुत जल्दी सीख गई। उसने डिजिटल कला सीखी, कैनवास पर पेंटिंग करना शुरू किया, और वर्तमान में वो ऐक्रेलिक कला में लगी हुयी है। हालाँकि वह नेचर, फ़ूड और इवेंट्स जैसी अलग-अलग श्रेणियों की फोटोग्राफी में अपना हाथ आजमाती हैं, लेकिन उनकी ख़ासियत लोगों की फोटोग्राफी है। शालिनी और गायत्री ने, गायत्री द्वारा खींची गई तस्वीरों के साथ अमेज़न पर ग्लूटेन-फ्री, कैसिइन-फ्री व्यंजनों की एक पुस्तक भी प्रकाशित की है।

इंडिया इंक्लूजन फाउंडेशन की आर्ट फॉर इंक्लूजन फेलोशिप 2022 के विजेताओं में से एक के रूप में, गायत्री रचनात्मकता की ऊंचाइयों को छूने के लिये एकदम तैयार है।

तस्वीरें:

विक्की रॉय