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"मुझे अपनी पढ़ाई जारी न रखने दुख है लेकिन मुझे अपनी नौकरी पसंद है जिससे मुझे अपने परिवार का समर्थन करने में मदद मिलती है"

वो सभी लोग जो दर्शना शिंदे पर हंसते थे और उनके बौनेपन के कारण उन्हें 'छोटी' कहते थे, आज अफ़सोस मना रहे होंगे। कर्नाटक के बेलगावी (पहले बेलगाम) जिले की रहने वाली 26 वर्षीया दर्शना बेंगलुरू में अपनी नौकरी से होने वाली कमाई से अपने परिवार की आय में योगदान देती हैं। उन्होंने हाल ही में अपने 1-बीएचके (बेडरूम-हॉल-रसोई) घर को रेनोवेट किया, शौचालय बनवाया और मिट्टी के फर्श पर टाइलें बिछाईं।
 
दर्शना के पिता मारुति शिंदे महाराष्ट्र के सतारा से अठानी तहसील के मदभवी गाँव चले गये। वे मज़दूरी का काम करते थे, लेकिन उन्होंने अपनी कमाई को शराब पर उड़ाना शुरू कर दिया, जिससे उनकी पत्नी विथा बाई को छह लोगों के परिवार का भरण-पोषण करने का बोझ उठाना पड़ा। 50 से 100 रुपये तक की दिहाड़ी मज़दूरी कमाने वाली एक कृषि श्रमिक के रूप में वो मुश्किल से अपने चार बच्चों का भरण पोषण कर पाती थीं। दर्शना याद करती हैं, "एक समय था जब हम केवल छाछ पर जिंदा रहते थे।"
 
जब वे लगभग चार साल की थीं तब दर्शना शरीर में दर्द के कारण लगातार रोती रहती थीं। उनकी माँ उन्हें डॉक्टर के पास ले गई जिसने उन्हें बताया कि उनकी बच्ची बढ़ेगी नहीं क्योंकि उसकी "हड्डियाँ कमज़ोर हैं"। शुरु में अपना संतुलन बनाये रखने और चीज़ों को पकड़ने के लिये संघर्षों के बावजूद उनकी ताकत में सुधार हुआ और वो स्कूल गई।

जब वो सातवीं कक्षा में थीं तो उनकी बहन, जो दसवीं पास कर चुकी थी, उसकी शादी हो गयी और वो महाराष्ट्र में सांगली चली गई। इससे, जब  उनकी माँ काम पर होती थीं तब  अपने बहन और भाई की देखभाल की ज़िम्मेदारी दर्शना पर आ गयी, जो उनसे क्रमशः 10 और 11 साल छोटे थे। वो सबके लिये दोपहर का खाना बनाती और पैक करती थी, और अपने गाली-गलौज करने वाले पिता को झेलती। उनकी पढ़ाई पर असर पड़ा लेकिन वो  दसवीं पूरी करने और PUC (प्री-यूनिवर्सिटी कोर्स) शुरू करने में सफल रहीं। हालाँकि उन्होंने 2014 में जो PUC की परीक्षा दी उसमें फेल हो गयी और उनका अपनी पढ़ाई जारी रखने का मन हट गया।
 
2015 में, एक स्थानीय परिचित के सुझाव पर, वो ऑफिस मैनेजमेंट में एक साल का कोर्स करने के लिये बेंगलुरु आ गयी। ट्रेनिंग सेंटर में उन्होंने कंप्यूटर चलाना सीखा। सेंटर में एक ट्रेनर "रेखा-मैडम" के मार्गदर्शन की मेहरबानी थी, कि उन्होंने बीपीओ फर्म विंध्य ई-इन्फोमीडिया में नौकरी की तलाश की और उनको नौकरी मिल गयी। 20 दिनों की ट्रेनिंग के बाद वो काम करने के लिये तैयार थीं। उन्होंने 2016 में ₹6,900 के मासिक वेतन काम करना शुरू किया था और आज लगभग उसका दोगुना कमाती हैं।
 
दर्शना सुबह करीब 9.30 हाज़िरी लगाती हैं और शाम 7.30 बजे खत्म करती हैं। उनको दूर नहीं जाना पड़ता है क्योंकि वो ऑफिस के पास दो अन्य लोगों के साथ एक कमरा साझा करती हैं। वो कहती हैं, विंध्य का धन्यवाद है कि उन्होंने धाराप्रवाह बातचीत करना सीखा। वे ग्राहकों को उनके केबल नेटवर्क के लिये डीटीएच रिचार्ज या उनकी ईएमआई के ऋण चुकौती के बारे में याद दिलाने के अपने काम का आनंद लेती हैं। रविवार को काम पर बुलाये जाने से उन्हें कोई ऐतराज नहीं है क्योंकि उन्हें उसकी जगह किसी दूसरे दिन की छुट्टी मिल जाती है।
 
मदभवी में घर पर स्थिति काफी हद तक वैसी ही है, विथा बाई अभी भी अपने पति और अपने बेटे का समर्थन करने के लिये खेतों में काम कर रही हैं, जो अब दसवीं कक्षा में है। दर्शना की छोटी बहन की शादी उससे हो गयी है जिससे उसे प्यार हुआ था। वो कभी-कभी छुट्टी लेकर अपनी बड़ी बहन से मिलने सांगली जाती है। वो कहती हैं, "मुझे वहाँ जो वड़ा पाव मिलता है वो पसंद है।" गुलाब जामुन उनकी पसंदीदा मिठाई है। क्या उसका कोई पसंदीदा टाइमपास है? उसे गाने सुनना और साथ में गुनगुनाना बहुत पसंद है। ओह, और आम तौर पर सोने से पहले सच्ची-अपराध सीरीज़ क्राइम पेट्रोल का एक एपिसोड देखकर उन्हें रात की खुराक मिल जाती है।


तस्वीरें:

विक्की रॉय