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“मुझे अपने विशेष स्कूल में जाना पसंद है। मैं क्रिकेट देखता हूँ और डिस्कवरी चैनल पर जानवरों को देखना पसंद करता हूँ।”

बी. सतीश (14) का समय बिताने के लिए पसंदीदा काम है: पोर्ट ब्लेयर में अपने घर के बाहर बैठकर पहाड़ियों और घाट को देखना, समुद्र में टकटकी लगाए देखना कि क्या वह अपने पिता की नाव देख सकता है। “पापा आ रहे हैं”, वह बार-बार कहता है – वह एक बार में केवल कुछ शब्द बोलता है, और वह भी बहुत कम। उसके पिता, बी. रमेश, चैथम द्वीप पर अंडमान लोक निर्माण विभाग के कर्मचारी हैं, उन्हें दो महीने में केवल एक बार अपने परिवार से मिलने के लिए छुट्टी मिलती है। उनकी पत्नी पुण्यवती चार साल पहले सतीश और उसकी छोटी बहन वैष्णवी (12) के साथ पोर्ट ब्लेयर चली गईं, जब पता चला था कि सतीश को ऑटिज्म है।  
 
रमेश और पुण्यवती दोनों को अपने बेटे के देर से डाइग्नोस पर अफसोस है। वे कहते हैं,“अगर हमें पहले बताया गया होता तो हम पहले ही इलाज करवा लेते और अब तक वह ठीक हो गया होता” । दंपत्ति तब चिंतित हो गए जब उनका पहला बच्चा अपेक्षित उम्र में रेंगना और बैठना नहीं सीख पाया, लेकिन चैथम द्वीप के डॉक्टर ने उन्हें बताया कि वह थोड़ा धीमा है और ठीक हो जाएगा। वो स्थानीय सरकारी स्कूल में जाता था, लेकिन जब वह कक्षा 5 में पहुँचा तो उसने बोलना बंद कर दिया। (कुछ ऑटिस्टिक बच्चे गैर-मौखिक होते हैं यानी वे बोल नहीं सकते, जबकि कुछ ऐसे भी होते हैं जो बोलना नहीं चाहते।)
 
दंपत्ति सतीश को पोर्ट ब्लेयर ले गए, जहाँ उसे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम पर प्रमाणित किया गया। हैरान और इनकार करते हुए, वे दूसरी राय लेने के लिए वेल्लोर गए। लेकिन इस तथ्य को स्वीकार करने के बाद, रमेश ने अपने परिवार को पोर्ट ब्लेयर में रहने के लिए भेजने का फैसला किया क्योंकि वहाँ बेहतर चिकित्सा सुविधाएं थीं और एक विशेष स्कूल भी था। वे दुखी होकर कहते हैं, "मैंने कई बार पोर्ट ब्लेयर में तबादले के लिए अनुरोध किया है, लेकिन इसे अभी तक मंजूरी नहीं मिली है।" जब कोई आपात स्थिति होती है तो उनकी उपस्थिति महत्वपूर्ण हो जाती है; छह महीने पहले एक गाड़ी ने पुण्यवती को सड़क पर चलते समय टक्कर मार दी थी और उन्हें परिवार की देखभाल के लिए पोर्ट ब्लेयर भागना पड़ा था।
 
कक्षा 8 तक पढ़ी पुण्यवती पहले घरेलू कामगार हुआ करती थीं, लेकिन जब उन्हें अपनी नौकरी और सतीश की देखभाल के बीच संतुलन बिठाना मुश्किल लगा तो उन्होंने काम छोड़ दिया। दंपति को उसकी “व्यवहार संबंधी समस्या” को संभालने के बारे में प्रशिक्षित नहीं किया गया है; उन्हें नहीं पता कि उसके आक्रामक व्यवहार की वजह क्या है जो उसे अचानक लोगों पर, यहाँ तक कि अपनी माँ और बहन पर भी भड़कने पर मज़बूर कर देती है। रमेश कहते हैं, “जब वह बहुत ज़्यादा उत्तेजित हो जाता है तो हमें उसे नियंत्रित करना मुश्किल लगता है।” “वह चीज़ें तोड़ता है। एक दिन उसने बाथरूम का दरवाज़ा तोड़ दिया।”
 
चूँकि उसकी बारीक मोटर कौशल प्रभावित हुए हैं, इसलिए सतीश को लिखना मुश्किल लगता है और उसे अपने कपड़े पहनने में मदद की ज़रूरत पड़ती है। उसके माता-पिता के लिए सबसे ज़्यादा परेशान करने वाली बात यह है कि वह शौच जाने के बाद खुद को धो नहीं पाता है। पुण्यवती बेबस होकर कहती है, “मैं उसे नहलाते समय उसे अपना हाथ पकड़ाती हूँ ताकि वह जान सके कि मैं क्या कर रही हूँ और शायद धीरे-धीरे खुद ही यह करना सीख जाए। आज मैं हूँ, कल मैं नहीं रहूँगी; फिर कौन करेगा?”
 
सतीश एक विशेष स्कूल में जाता है, जहाँ उसे मज़ा आता है और एक नियमित स्कूल में, जहाँ वह सिर्फ़ हाज़िरी लगाता है। पुण्यवती दोनों ही मौकों पर उसके साथ जाती हैं। सुबह के समय उसे फिजियोथेरेपी और विशेष शिक्षा मिलती है, जिसके बाद वह स्कूल जाता है, जहाँ "वह बस क्लास में जाकर बैठ जाता है"। घर पर वह टीवी देखता है, गेंद फेंकता है या अपनी बहन के साथ खेलता है। कक्षा 8 में पढ़ने वाली वैष्णवी को विज्ञान और गणित पसंद है, और वह बड़ी होकर डॉक्टर बनना चाहती है, कहती है, "मैं अपने भाई से बहुत प्यार करती हूँ। वह हमेशा मेरी रक्षा के लिए मौजूद रहता है। वह मुझे सैर पर ले जाता है, और मुझे ट्यूशन क्लास तक ले जाता है और वापस भी लाता है।" उसकी माँ कहती हैं, "अगर कोई उसे डाँटता है तो वह बहुत गुस्सा हो जाता है। अगर मैं उसे मारने की कोशिश करती हूँ तो वह मुझे रोकने के लिए हमारे बीच आ जाता है। अगर वह उसे रोता हुआ देखता है तो वह उसके पास जाता है और कहता है 'मत रोओ'।"
 
पुण्यवती कभी-कभी सतीश की शुरुआती यादों को याद करती है। "वह बहुत सुंदर, प्यारा बच्चा था। मेरे माता-पिता और ससुराल वालों सहित हम सभी ने उसका जन्म की खुशी मनायी। और फिर..." एक पल के लिए वे निराश लगती हैं, लेकिन फिर जल्दी से खुद को सांत्वना देती हैं, "कम से कम उसकी विकलांगता कुछ अन्य लोगों की तरह गंभीर तो नहीं है। वह चल सकता है, उसे बाहर जाना पसंद है। जब हम बाजार जाते हैं तो वह बैग उठाकर ले जाता है और फिर मुझे खुशी होती है कि वह मेरी मदद कर रहा है।" जब वह रमेश के साथ अपने उदास विचार साझा करती है तो वे उसे खुश करते हुए कहते हैं, "निराश मत हो। चलो हम अच्छे दिनों के लिए प्रार्थना करें।" और अच्छे दिन तभी आएंगे जब सतीश, जैसा कि उसके माता-पिता दिल से उम्मीद करते हैं, अपनी सबसे बुनियादी ज़रूरतों का ख्याल खुद रख पाएगा।


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विक्की रॉय