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“पहले ‘डिसेबिलिटी’ मेरी कमज़ोरी थी, लेकिन अब वो मेरी ताक़त बन चुकी है”

खुशमिज़ाज और ज़िंदादिल ऐश किबा से अगर आज मिलेंगे, तो आप अंदाज़ा भी नहीं लगा पाएंगे कि एक वक़्त वो कितनी शर्मीली बच्ची थी। उसके प्रदेश में कई लोगों का मानना था कि वो शापित है, दरअसल उनके हाथ और उंगलियां सामान्य से कुछ छोटे हैं और इस लिहाज से वो औरों से कुछ अलहदा दिखती हैं। उनके अपने शहर अकुलुतो के लोगों का भी कुछ यही मानना था। ये वही शहर है जहाँ वो पली-बढ़ी। एक बार, जब वो किसी दवाई दुकान से दवाएं ख़रीद रही थी, तो दुकान के मालिक ने उसके हाथ से लिये पैसे उसके मुँह पर फेंक दिये।  
जब ऐश बच्ची थी तो वो चाहती थी कि सिंडरेला की तरह उसके पास भी एक  गॉडमदर हो जो उसे आम लोगों के जैसा सुडौल हाथ दे दे। वो अपने हाथों को हमेशा ‘पॉन्चो’ के नीचे छिपा कर रखती। स्कूल में वो भी दूसरे बच्चों के साथ खेलना चाहती थी, ख़ासतौर पर वॉलीबॉल, लेकिन दर्शक बने रहने के अलावा उसके पास कोई विकल्प नहीं था। कई बार वो दोपहर को लंच तक नहीं करती थी क्योंकि वहाँ मौजूद दूसरे बच्चे उसके हाथों को घूरते थे। हिम्मत हार चुकी एश भीड़भाड़ वाली जगहों पर जाने से भी बचती थीं।
शिक्षकों और छात्रों के इस बर्ताव से ऐश डिप्रेशन की मरीज़ हो गईं, यहाँ तक कि वो ख़ुदकुशी के बारे में भी सोचने लगीं। हाई स्कूल के बाद उन्होने पाँच साल का ब्रेक लिया लेकिन उसकी माँ येहोली त्सुकु की कही हुई एक बात उसके कानों में गूंजती रही- "शिक्षा के बिना आप कुछ नहीं कर सकते”। बाद में उन्होने दीमापुर में प्रभानंद महिला कॉलेज से अंग्रेज़ी साहित्य में ग्रेजुएशन भी किया।
लेकिन ये हुआ कैसे?  शायद ऐश के साथ ये महत्वपूर्ण घटना नहीं होती, तो उनकी ज़िन्दगी ख़ुद पर तरस खाते-खाते ही बीतने वाली थी।   
**दूसरे कार्यकाल के लिए **खेहुतो ग्राम छात्र संघ के अध्यक्ष के लिए उसके नाम की भी चर्चा हुई। संघ की बैठक में, एक आदमी ने खुलेआम ऐलान किया कि अगर ग़लती से भी उन्हे अध्यक्ष चुन लिया गया तो ये पूरे गाँव को शर्मसार करने वाली बात होगी, क्योंकि वो न सिर्फ़ "दिव्यांग हैं, बल्कि एक महिला भी"। इसके बाद तो ऐश की बर्दाश्त करने की सीमा पार हो गई। 1 जनवरी 2015 को ऐश ने ख़ुद से वादा किया कि वो अपने अधिकारों के लिए डट कर खड़ी होगी और अपने जैसे दूसरे लाचार लोगों की आवाज़ बुलंद करेंगी।
धीरे-धीरे, उन्होने अपनी हिचकिचाहट पर क़ाबू पाने का साहस हासिल किया। ‘नागालैंड स्टेट डिसेबिलिटी फ़ोरम’ (एनएसडीएफ) ने उन्हे गुवाहाटी में ‘पर्सन विथ डिसेबिलिटी’ के लिए आयोजित एक सेमिनार में हिस्सा लेने भेजा। 2017 में उन्होने पुणे के पंचगनी में टाटा स्टील के ‘ट्राइबल लीडरशिप प्रोग्राम’  में पहली बार मंच पर अपनी कहानी सुनाई। 2018 में जब उन्हे फिर से TLP में जा कर बोलने का मौक़ा मिला, तो वहाँ उन्होने अपनी हिचक को दरकिनार करते हुए, पहली दफ़ा अपने हाथों को छिपाने की कोशिश नहीं की, पूरी दुनिया को दिखाया वो कैसी हैं?
इस ऐतिहासिक पल के बाद उसकी ताक़त बढ़ती गई। आज ऐश NSDF की महासचिव हैं और दिव्यांगों के लिए काम करने वाले अन्य संगठनों में भी अहम पदों पर हैं। अपने ख़ाली वक़्त में वो डिज़्नी की परियों की कहानियों को देखना, ‘स्मोक्ड पोर्क’ को वहाँ की ख़ास डिश अख़ुनी के साथ पकाना, वहाँ के लोकल ‘ऐपलोनो गॉस्पेल बैंड’ को सुनना और अपने जैसे दोस्तों के साथ घूमना पसंद करती हैं।
अपने जैसे सभी लोगों के लिए उनका एक ही संदेश है- "मज़बूत और निडर बनो।” वो कहती हैं, हमें अपनी विशिष्टता को स्वीकार करना चाहिए। "आइए हम इसे छिपाना बंद करें।”

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विक्की रॉय