केरल के कन्नूर के श्रीकंदापुरम की रहने वाली अंजलि सनी जब किंडरगार्टन में थी, तब एक डांस कार्यक्रम की प्रैक्टिस के दौरान उसने पैर में दर्द की शिकायत की। उनकी टीचर और माता-पिता को लगा कि वो इस डांस में हिस्सा नहीं लेना चाहती और इसलिए बहानेबाज़ी कर रही हैं। कई साल ऐसे ही बीते और किसी ने अंजलि की शिकायत पर ध्यान नहीं दिया। लेकिन जब वो चौथी क्लास में थी, तब उसकी टीचर को महसूस हुआ कि कुछ तो गड़बड़ है। उन्होंने अंजली के माता-पिता को जाँच करवाने की सलाह दी। जाँच होने पर पता चला कि अंजलि को ‘मस्क्युलर डिस्ट्रॉफ़ी’ है; एक ऐसी बीमारी जिसमें मांसपेशियां कमज़ोर होने लगती हैं।
धीरे-धीरे अंजलि का चलना फिरना बेहद कम हो गया, जिसकी वजह से मजबूरी में उसे स्कूल के दिनों से ही व्हीलचेयर का इस्तेमाल शुरू करना पड़ा। लेकिन उसकी क़िस्मत में कई और भी आज़माइशें लिखी थीं; 2009 में उसके पिता, जो हमेशा उसका हौसला बढ़ाते थे, ख़ुद पैरालिसिस अटैक का शिकार हो गए। तब से लेकर आज तक वो उसकी माँ के ही मोहताज हैं। अंजलि का सबसे बड़ा सहारा है उसकी दोस्त लिनिमल ऐंथनी, जिसे वो प्यार से लिनी बुलाती हैं।
12वीं के बाद पढ़ाई में अंजलि को एक साल का गैप करना पड़ा, क्योंकि वो अपनी पसंद के कॉलेज तक आना-जाना भी नहीं कर सकती थी। आख़िरकार उन्होने पास के ही एक कॉलेज से BBA और M.Com करने की सोची। हालांकि वहाँ उनकी टीचरों ने उन्हे बहुत सपोर्ट किया। “मेरे ‘हेड ऑफ़ डिपार्टमेंट’ ने मेरे लिए एक ‘ईज़ी चेयर’ ख़रीदी ताकि मैं क्लास में आराम से बैठ सकूं”।
जिस साल अंजलि ने गैप लिया था, उस साल उन्होने ऑनलाइन ट्यूटोरियल की मदद से ग्राफ़िक डिज़ाइनिंग भी सीख ली, और अपने परिवार के लिए बर्थडे कैलेंडर बनाने शुरू किये। उसकी दोस्त लिनी उन दिनों फ़ैशन डिज़ाइनिंग कर रही थी, और उसके पेंट वहाँ रखे रहते थे। अंजलि इन्हें लेकर पुराने कैलेंडरों के पीछे ड्रॉइंग बनाने लगी। धीरे-धीरे उनको अपनी ड्रॉइंग अच्छी लगने लगी। अंजली का ख़ुद पर भरोसा बढ़ता गया। फिर एक दिन उन्होने कैलेंडर छोड़ कैनवस पर पेंटिंग शुरू कर दी। इस दौरान उनकी माँ उनकी मदद करती थी, और अंजलि जो भी सामान माँगती, उनकी माँ उसे उठा-उठा कर देती थीं।
वक़्त के साथ अंजलि ने अपनी कमज़ोरी पर चिंता न करना सीख लिया है। ”मैं भविष्य का नहीं सोचती, सिर्फ़ आज और कल के बारे में सोचती हूँ। मेरे सभी लक्ष्य कम समय में पूरा करने वाले होते हैं”
अंजलि जब किशोरावस्था में थी तब उसने घर पर आने वाले एक टीचर से पियानो और कार्नाटिक संगीत भी सीखा था। मांसपेशियां कमज़ोर होने की वजह से उन्होने पियानो बजाना तो छोड़ दिया, लेकिन गाना नहीं छोड़ा। जब हाथों से पेंटिंग करने में उन्हे मुश्किल होने लगी, उन्होने डिजिटल पेंटिंग का सहारा लिया; पहले अपने फ़ोन पर, फिर आईपैड पर। 2018 में जब अंजलि ने अपनी डिजिटल आर्ट इंस्टाग्राम पर शेयर करनी शुरू की तो उसे बेहद पसन्द किया गया। अब उसके पास 300 से ज़्यादा पेंटिंग हैं और अपना यूट्यूब चैनल भी।
“जब भी मैं किसी परेशानी से उलझती हूँ, तब मैं अपने आप को उनसे भी बड़ी दिक़्क़तों की याद दिलाती हूँ जिनका मैंने सामना किया है।”
अंजलि मानती हैं कि ‘कोई डिसेबल्ड नहीं होता, जब तक वो खुद ही ऐसा होने का फ़ैसला न ले ले।’