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“मुझे डांस और बेकिंग का शौक है! मेरा चचेरा भाई मुझे गिटार बजाना सिखा रहा है”

कई 13 साल के बच्चों की तरह, ऐश्वर्या रथ मॉल जाना पसंद करती हैं, फैशनेबल कपड़ों की खरीदारी करती हैं और हर दिन एक नई ड्रेस पहनना चाहती हैं। उन्हें अपने लंबे बालों से प्यार है और इसे कटवाना नहीं चाहती हैं: बालों में कंघी करने के लिये अपनी माँ से लड़ती भी हैं। वो एक फैशन पेजेंट में 30 फाइनलिस्टों में से एक थीं और उन्होंने स्टार आइकन पुरस्कार और ₹25,000 का नकद पुरस्कार जीता था।
 
हालाँकि, 13 साल की कई लड़कियों के विपरीत, ऐश्वर्या को डाउन सिंड्रोम (DS) है। वॉक विद ए डिफरेंस नाम का यह पेजेंट विशेष रूप से विकलांग व्यक्तियों के लिये कोलकाता में एम्स मीडिया द्वारा आयोजित एक फैशन शो था। ऐसा लगता है कि ऐश्वर्या (घर का नाम आशी) ने पुरस्कार और पदक जीतने की आदत बना ली है! उन्होंने 100 मीटर दौड़, स्केटिंग और नृत्य के लिये इंटर-स्कूल प्रतियोगिताओं में कई जीत हासिल की हैं; और उन्होंने कई ऑनलाइन डांस प्रतियोगिताएं भी जीती हैं। पिछले साल वे स्केटिंग में विशेष ओलंपिक ट्रायल के लिये अपने परिवार के साथ गुजरात गई थीं और छह दिनों तक वहाँ रहीं, खुद को संभाला किया, लेकिन उनका चयन नहीं हुआ।
 
जब आशी का जन्म, उनकी बड़ी बहन ख़ुशी (अभीप्सा को घर में इसी नाम से बुलाया जाता है) के पाँच साल बाद हुआ, तो उनकी माँ, सुनंदा को एहसास हुआ कि उनके बारे में कुछ तो गड़बड़ है। डॉक्टरों ने एक कैरियोटाइपिंग परीक्षण की सलाह दी जिसका उपयोग DS का पता लगाने के लिए किया जाता है। यह एक आनुवंशिक स्थिति है जहाँ व्यक्ति अपने डीएनए में एक अतिरिक्त गुणसूत्र के साथ पैदा होता है। परीक्षण, जो दो महीने की आशी ने कोलकाता में किया, ने पुष्टि की कि उसे DS था। इतना ही नहीं, उसे एक ओपन-हार्ट सर्जरी से भी गुजरना पड़ा (DS वाले बच्चों में दिल की खराबी आम है)।
 
सुनंदा तीन महीने तक डिप्रेशन में रहीं। उनके पति अनिल प्रसाद शुरू में आशी की स्थिति को स्वीकार करने में समय लेने की बात स्वीकार करते हैं, लेकिन सुनंदा की स्थिति को देखते हुए उन्हें अपने परिवार को बुलाने के लिए मज़बूर होना पड़ा। सुनंदा की बड़ी बहन मदद के लिए आई और उन्हें वास्तविकता का सामना करने के लिए प्रेरित किया। फिर सुनंदा ने ऐश्वर्या के साथ काम करना शुरू किया, और जितना हो सके उसे एक सामान्य जीवन देने के लिए दृढ़ संकल्पित थीं, जिज्ञासा से लोगों के घूरने के बावजूद अन्य बच्चों के साथ उसका मेलजोल कराती थीं। उस समय वे झारखंड के देवघर में रह रहे थे। वे जोधपुर चले गए जहाँ उन्होंने आशी को मॉडर्न पब्लिक स्कूल में दाखिला दिलाया, जो बहुत मददगार शिक्षकों वाला एक स्कूल था।
  
इस शुभ शुरुआत के बाद पटना के कंगारू स्कूल ने उनको विकसित होने में मदद की। वहाँ दो साल तक आशी के साथ काम करने वाली एक थेरेपिस्ट ने उन्हें बेहतर सुविधाओं के लिए नोएडा जाने की सलाह दी। आशी अब नई आशा स्पेशल स्कूल में पढ़ती है। खुशी और निशांत, जो उनके साथ तीन साल से रह रहे हैं, उन्होंने आशी के साथ काम किया, और उसे आत्मविश्वास से भरी एक किशोरी बनाया। निशांत ने उसे विशेष रूप से लड़कों के साथ सामाजिक तौर पर संपर्क के प्रति संवेदनशील बनाया (DS वाले  बच्चे बहुत आत्मीय होते हैं और जो भी मिलते हैं उन्हें गले लगा लेते हैं)। निशांत ने आशी को गिटार बजाना सिखाया और वो कहती हैं कि वो उनका "सबसे अच्छा दोस्त" है जबकि स्कूल में उनका सबसे अच्छा दोस्त कार्तिक है "क्योंकि वो उनकी परवाह करता है"।
 
सुनंदा अपने पति अनिल प्रसाद के समर्थन को श्रेय देती हैं, जिससे कारण वे आशी पर पूरी तरह से ध्यान केंद्रित कर पाती हैं। अनिल के बारे में परिवार का मज़ाक यह है कि उनका एकमात्र योगदान सेरेलैक और डायपर लाना था। जब वो ऑफिस से वापस आ रहे होते थे! लेकिन वे कहते हैं, 'मैंने खुशी का इतना बचपन नहीं देखा, जितना आशी का देखा।' वे आशी के बारे में कहते हैं, "यह हमारी एंजेल है।" सुनंदा कहती हैं कि उनके ससुराल वालों ने भी उनका साथ दिया; आशी को यहाँ-वहाँ ले जाने के लिए उनके ससुर ने एक स्कूटी उपहार में दी।
 
सुनंदा कहती हैं, ''अब मैं ऐश्वर्या की माँ के तौर पर जानी जाती हूँ।'' "जब मेरा ऑनलाइन इंटरव्यू होता है, तो मुझसे पूछा जाता है कि मैं उसमें इतना बदलाव कैसे ला पाई।" आशी उन्हें व्यस्त रखती हैं और उनका मनोरंजन करती हैं। एक बार जब वे रसोई में कुछ करने की कोशिश कर रही थीं, लेकिन सफल नहीं हुई तो आशी ने अंदर आकर उनसे कहा, "कोशिश करते रहो, हो जाएगा।"
 
जहाँ तक ख़ुशी की बात है, जब वो अपनी छोटी बहन के कुछ अलग होने के शुरुआती एहसास को समझ गईं, तो उन्होंने उसके बिना कहीं भी जाने से इनकार कर दिया। वो कहती हैं, "अब मेरे दोस्त मैं कैसी हूँ पूछने से पहले उसके बारे में पूछते हैं"। और वो "ऐश्वर्या की बेकरी' से कपकेक चुराने" के बारे में सपने देखती हैं! आशी के लिए बेकिंग एक जुनून है और घर में किचन उनकी पसंदीदा जगह है। वो अपनी माँ की मदद से खाना बनाती हैं, और सैंडविच बना सकती हैं और चपाती भी बेल सकती हैं। वो कहती हैं कि उन्हें गणित, हिंदी, पियानो, पेंटिंग और स्केटिंग बहुत पसंद है। उनके दिन की शुरुआत बीस मिनट के योग अभ्यास से होती है। वो एक पेशेवर बेकर बनने के बारे में सोच रही हैं, लेकिन लैपटॉप के साथ काम पर जाने, पैसे कमाने का सपना भी देखती हैं जो वो अपनी माँ और घरेलू नौकरों को देना चाहती हैं। वो सड़कों पर दिखने वाले वंचित बच्चों की भी मदद करना चाहती हैं। 
 
आज सुनंदा की एकमात्र चिंता यह है कि उनके और उनके पति के चले जाने के बाद क्या होगा। लेकिन साथ ही, वो आशी की देखभाल के लिए ख़ुशी और निशांत पर अपना विश्वास रखती हैं। वो DS वाले बच्चों के अन्य माता-पिता से यही कहना चाहती हैं: "काम करते रहिये, आपके बच्चों से सीखने के लिये बहुत कुछ है।"



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विक्की रॉय