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"विकलांग बच्चों के लिये मुझे बदलाव का एजेंट बनने की ताकत देने के लिये मैं भगवान का आभारी हूँ"

हमने अक्सर देखा है कि जो लोग जन्म से विकलांगता - खासकर देखने, सुनने या चलने-फिरने की - के साथ पैदा होते हैं,  वे उन लोगों से जिन्हें जीवन में बाद में विकलांगता होती हैं उनकी तुलना में अपने वातावरण का सामना करने और अनुकूलन में उनसे बेहतर होते हैं। अचानक अपनी किसी एक इंद्रिय या क्षमता से वंचित होने की स्थिति सहन करना कभी-कभी बहुत अधिक कठिन होता है और उन्हें अवसाद के गड्ढे में धकेल सकता है। ऐसा ही मेघालय के ऐबोकलांग सोहतुन (39) के साथ हुआ, जो नेत्रहीन और श्रवण बाधित, दोनों हैं।
 
ऐबोकलांग का जन्म लैटकोर रंगी गाँव में टॉम थाबा और ट्रोलियन सोहतुन के घर हुआ था। टॉम एक निर्माण श्रमिक थे जो दिहाड़ी से कमाते थे; ऐबोकलांग के होने के कई साल बाद उनके और ट्रोलियन के दो और बच्चे हुये: एक बेटी वर्सुक (अब 26) और एक बेटा खरबोक (अब 24)। परिवार को घर बदलते रहना पड़ा क्योंकि टॉम को जहाँ भी अगला निर्माण कार्य ले जाता था वहाँ जाना पड़ता था। हालाँकि दंपति लैटकोर में जमीन का एक टुकड़ा खरीदने में कामयाब रहे ताकि उनके बुढ़ापे में उनके सिर पर छत हो

ऐबोकलांग अपनी किशोरावस्था के लिये भावुक हैं। वे याद करते हैं, "मेरे बहुत सारे दोस्त थे और मैं पूरे दिन उनके साथ खेलता और घूमता रहता था"। "जब भी मुझे अपने बचपन की याद आती है तो सोचता हूँ काश उन दिनों में वापस जाना संभव होता।" जब वे कक्षा 9 में पहुँचे तो उन्हें दृष्टि की समस्या होने लगी। 12वीं कक्षा में पहुँचने के बाद जल्द ही उनकी सुनने की क्षमता भी कमज़ोर होने लगी। उनका कहना है कि उन्हें सेरेब्रल मलेरिया हो गया था। डॉक्टर ने उन्हें बताया कि उन्हें "ऑप्टिकल डिस्ट्रोफी" है और उनकी आँखों की रोशनी लगातार खराब होती रहेगी क्योंकि उम्र के साथ उनका कॉर्निया धीरे-धीरे खराब होता जा रहा था। वे कहते हैं, "इन दोनों समस्याओं के साथ [दृष्टि और श्रवण] मैंने आशा खोना शुरू कर दिया और सब कुछ छोड़ने का फैसला किया।" "मुझे लगा कि मरना बेहतर है।"
 
अगर ऐबोकलांग को समय पर प्रोत्साहन नहीं मिला होता तो वे क्या करते? हम कल्पना करने से डरते हैं। दोस्तों, परिवार के सदस्यों और शुभचिंतकों के समर्थन से उन्होंने धीरे-धीरे अपनी निराशा पर काबू पाया और महसूस किया कि "अभी मरने का समय नहीं है, इसलिए इसके बारे में सोचना बेकार है"। उन्होंने न केवल निरर्थक विचारों को अपने मन में रखना बंद किया, बल्कि अपनी शिक्षा के साथ आगे बढ़ने का भी फैसला किया। उन्होंने ग्रेजुएशन पूरी की, शिलांग कॉमर्स कॉलेज से बी.कॉम की डिग्री हासिल की और बाद में नॉर्थ ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी से एम.कॉम किया।
 
ऐबोकलांग कहते हैं, "अगर मैं विकलांग नहीं होता या मैं उचित आवास के साथ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने में सक्षम होता, तो मेरा जीवन बेहतर होता।" "शायद मैं किसी सरकारी कार्यालय में काम करता जैसे मेरे दोस्त कर रहे हैं।" लेकिन वे किसी भी तरह से खुद पर तरस नहीं खाते। वास्तव में वे आभारी हैं कि उनके शिक्षण कार्य ने उन्हें विकलांग बच्चों की मदद करने का मौका दिया। वे कक्षा 11 और 12 के लिये अर्थशास्त्र के सहायक लेक्चरार और बेथानी सोसाइटी द्वारा संचालित ज्योति सरोत समावेशी स्कूल में कक्षा 8 और 10 के लिये गणित और अर्थशास्त्र के टीचर हैं। इसमें समाज के सामाजिक रूप से वंचित और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के विभिन्न विकलांग बच्चे हैं और साथ ही गैर-विकलांग बच्चे भी हैं।
 
ऐबोकलांग दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से अपनी बी.एड. स्पेशल एडुकेशन कर रहे थे, जब उनकी मुलाकात ब्लाइंडा क्लेन से हुई, जो ज्योति सरोत छात्रों के हॉस्टल में काम कर रही थीं। उन्होंने शादी कर ली और अब उनके दो बच्चे हैं: एक बेटा, बंकितलांग खरसोक्लेंग (9) कक्षा 5 में पढ़ता है और बेटी बनरोइलांग खारसोक्लेंग (7) कक्षा 1 में है। उनके माता-पिता, जो अब 75 और 85 वर्ष के हैं, लैटकोर रंगी में अपने घर में रहते हैं।
 
ऐबोकलांग विभिन्न विकलांगता संगठनों और संघों से भी जुड़े हुये हैं। उनके शौक बागवानी करना, शतरंज खेलना, संगीत सुनना और "खाली प्लास्टिक की बोतलें इकट्ठा करना" है। वे  बोतलों का क्या करते हैं? कुछ को रीसाइक्लिंग यूनिट में ले जाया जाता है और कुछ में वे  टमाटर उगाते हैं।


तस्वीरें:

विक्की रॉय