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"सभी के प्रति सहानुभूति रखें, केवल लोगों के लिये ही नहीं बल्कि हर प्राणी के लिये"

जब आरती बत्रा दोस्तों के साथ छुट्टी पर जाती हैं, जैसे हाल ही में वो नैनीताल गयी थीं, तो उन्हें छुट्टियों की तारीख और समय की प्लानिंग अपने अस्पताल के अपोइंटमेंट के हिसाब से करनी पड़ती है। गुड़गांव, हरियाणा की 23 वर्षीया को थैलेसीमिया मेजर रक्त विकार विरासत में मिला है, लेकिन उसे उसकी विकलांगता के साथ बॉक्सिंग रिंग में छोड़िए, आप उसे समय-समय पर जोरदार पंच मारते हुये देखेंगे!

आरती के माता-पिता कैलाशचंद और उषा बत्रा दोनों को कम गंभीर थैलेसीमिया माइनर है, और उसके भाई अंकुर को भी वही है, जो उससे 11 साल बड़ा है, लेकिन आरती का टाइप जो है उसमें उसे तीन सप्ताह में एक बार ब्लड ट्रान्स्फ्यूजन की ज़रूरत पड़ती है। कैलाश दिल्ली नगर निगम के शिक्षा विभाग से रिटायर हुये, जबकि उषा ने घर संभालने के लिये 15 साल पहले प्राथमिक विद्यालय की टीचर की नौकरी छोड़ दी थी। दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) अस्पताल जहाँ आरती का जन्म हुआ था, वहाँ के डॉक्टरों ने जब वह छह महीने की थी तब पुष्टि की कि उसे थैलेसीमिया मेजर है।
  
परिवार पिछले 40 साल से गुड़गांव में रह रहा है, पहले रिफ्यूजी क्वार्टर में और फिर अपने घर में। विभाजन के दौरान आरती के दादा-दादी पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के डेरा गाजी खान जिले से यहाँ आये थे। उनके दादा धर्मचंद बत्रा का हाल ही में 97 वर्ष की आयु में निधन हो गया और उनकी 93 वर्षीय दादी रामदेवी उनके साथ रहती हैं। अंकुर ने अपनी इंजीनियरिंग की और वर्तमान में जर्मनी में काम करते हैं, और उनकी पत्नी दिव्या शर्मा, बेंगलुरु में इंडियन ओवरसीज बैंक की ब्रांच मैनेजर, ने उनके साथ रहने के लिये काम से विश्रामसबैटिकल) लिया है।
 
आरती एस.एन. सिद्धेश्वर पब्लिक स्कूल में अपने समय को याद करती हैं, जब अन्य बच्चों के साथ घुलने-मिलने की कोशिश में, वो  लगातार थकान - जो कि थैलेसीमिया का एक लक्षण है - के बावजूद खेल के मैदान में उनके साथ शामिल होती थी। वो कहती हैं, "मैंने खुद को बहुत धकेला और ऐसा व्यवहार करने की कोशिश की जैसे कि मैं अलग नहीं हूँ, और उसके परिणामों का सामना करना पड़ा," हाई स्कूल में, जब उनमें यौवनारंभ के 'सामान्य' लक्षण नहीं आये तो उनके सहपाठियों ने ऐसा व्यवहार किया जैसे कि उनके साथ "कुछ गड़बड़" हो। उन कठिन वर्षों के दौरान उनकी भाभी ने उनकी बहुत मदद की।

हालाँकि कॉलेज में आरती का बहुत समय अच्छा बीता। उन्होंने गार्गी कॉलेज से अंग्रेजी में बी.ए. किया, जहाँ उनके प्रोफेसर बेहद सहायक थे, और वर्तमान में दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम.ए. के अंतिम वर्ष में हैं। एम.ए. के दूसरे सेमेस्टर में, छात्रों को एक ओपन वैकल्पिक पेपर की पेशकश की गई थी जहाँ वे अन्य विषयों से एक विषय चुन सकते थे। आरती ने दर्शनशास्त्र विभाग द्वारा प्रस्तुत "सामान्यता पर सवाल" को चुना, और विकलांगता और पहचान और 'सक्षम-शरीर' होने के मानदंड के बारे में पढ़ा। इसने विकलांगता के क्षेत्र में काम करने के प्रति उनके रुझान को मज़बूत किया; 2018 में उन्होंने (दिवंगत) पार्थ ठाकुर द्वारा स्थापित युवा थैलेसीमिया रोगियों के जीवन को समृद्ध बनाने के लिये समर्पित मुंबई स्थित संगठन द विशिंग फैक्ट्री के साथ तीन महीने की इंटर्नशिप की थी।

आरती को विकलांगता पर 2021 NCPEDP-जावेद आबिदी फैलोशिप मिली है और वे गुड़गांव में विकलांग व्यक्तियों के लिये प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा की पहुँच पर काम कर रही हैं। टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS), मुंबई की एंट्रैन्स टेस्ट पास करने के बाद, वो चयन प्रक्रिया (ऑनलाइन मूल्यांकन) के दूसरे दौर की प्रतीक्षा कर रही हैं। उन्होंने इंतज़ार करो और देखो का नज़रिया  अपनाया है क्योंकि अगर उन्हें एडमिशन मिलता है तो भी उन्हें अपने मेडिकल मुद्दों से निपटना होगा और कौन जाने TISS आवश्यक सहायता और संसाधन भी प्रदान कर दे।
  
आरती दृढ़ता से महसूस करती हैं कि भारत में हमें विकलांगता से संवेदनशीलता के साथ निपटने के लिये अभी एक लंबा रास्ता तय करना है। वह नम्रता से कहती हैं कि उनके जीवन का लक्ष्य "महत्वहीन न होना" है। हमें यह देखकर आश्चर्य नहीं होगा कि वे विकलांगता आंदोलन में महत्वपूर्ण लहरें ला रही हैं और विकलांगता अधिकारों के लिये एक मुखर पैरोकार के रूप में निखर रही हैं।

तस्वीरें:

विक्की रॉय