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"मैं स्क्रीन-रीडिंग सॉफ़्टवेयर का उपयोग करता हूँ। हालाँकि, मेरी पत्नी और बच्चे मेरी आँखें हैं”

आधी सदी से भी पहले तमिलनाडु के वेल्लोर जिले के अलिनजिकुप्पम गाँव में एक किसान ने अपनी 2.5 एकड़ उपजाऊ जमीन पर साल भर फसलें उगाईं। रागी, धान, केला, गन्ना और सभी प्रकार की सब्जियां उनके बड़े परिवार की खपत की ज़रूरतों को पूरा करने से अधिक ही होती थीं। जब वह उपज से लदी अपनी बैलगाड़ी को लगभग 60 किमी दूर निकटतम बाजार में ले जाते तो वे चार से पाँच दिनों के लिये घर से दूर होते थे।  

उनकी पाँच बेटियों में से तीन और उनके दोनों बेटे नेत्रहीन पैदा हुये थे। सबसे छोटे, डॉ. ए. चिदंबरम (49) ने अपने जन्म वाले परिवार की कहानी सुनाई और बताया कि कैसे वे पांडिचेरी विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोशल एक्सक्लूजन एंड इनक्लूसिव पॉलिसी में सहायक प्रोफेसर बने। उनके माता-पिता औपचारिक रूप से शिक्षित नहीं थे और केवल अपने नाम के हस्ताक्षर कर सकते थे लेकिन उन्होंने अपने बच्चों को एक सरकारी स्कूल में भेजा। पाँच भाई-बहनों की कम दृष्टि का पता उनकी किशोरावस्था से पहले के वर्षों में ही चला जब उन्होंने कहा कि वे ब्लैकबोर्ड पर लिखी बातों को समझ नहीं पाते हैं। चूंकि वे अपने रोज़मर्रा के अधिकांश कर सकते थे, इसलिये उनकी विकलांगता को गुप्त रखा गया था, खासकर दूल्हे की तलाश के दौरान।

चिदंबरम ने पढ़ाई करते हुये कमाना शुरू कर दिया। छठी से नौवीं कक्षा तक उन्होंने एक रिश्तेदार के लिये काम किया, पहले उनकी कपड़े की दुकान में पार्ट टाइम, प्रति दिन 50 पैसे तक कमाये, और फिर उनकी खाद की दुकान में एक रुपये प्रति दिन के लिये फुल टाइम काम किया। हालाँकि उनकी खराब होती नज़र ने उन्हें चेहरे पहचानने से रोका, लेकिन उन्होंने स्वतंत्र अध्ययन के माध्यम से अपनी स्कूली शिक्षा समाप्त करने का फैसला किया। 1990 में उन्होंने अंबुर हिंदू हायर सेकेंडरी स्कूल में 10वीं कक्षा की परीक्षा दी। परीक्षा की पूर्व संध्या पर उन्होंने जिला शिक्षा अधिकारी को एक याचिका सौंपी, जिसमें उनके लिये परीक्षा के प्रश्नों को पढ़ने के लिये एक व्यक्ति नियुक्त करने के लिये कहा गया ताकि वे समय बचा सकें। (यह विकलांगता अधिनियम पारित होने से पाँच साल पहले था, जिसने विकलांग उम्मीदवारों के लिये लिखने वालों और अतिरिक्त समय की अनुमति दी थी।) उन्हें एक शिक्षक सौंपा गया था और उन्हें लाइनों वाले कागज के बजाय सादे शीट दिये गये थे, जिसपर लिखने के लिये उन्हें संघर्ष करना पड़ा था। शिक्षक लड़के के उत्तरों को देखकर प्रभावित हुये और उन्होंने उसे सुझाव दिया कि वह उच्च शिक्षा प्राप्त करे।

चिदंबरम ने 12वीं की पढ़ाई पूरी की और प्रेसीडेंसी कॉलेज, चेन्नई में बी.ए. अंग्रेजी के कोर्स में शामिल हुये। उनकी बड़ी बहन सावित्री, जो नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर द विजुअली हैंडीकैप्ड में वार्डन थीं, ने उन्हें आर्थिक रूप से समर्थन दिया। उनकी आर्थिक और जाति की स्थिति के आधार पर उन्हें मुफ्त छात्रावास और भोजन मिला, लेकिन उन्हें कॉलेज तक लगभग 20 किमी की यात्रा करनी पड़ी। वे हर सप्ताह एक पठन केंद्र (रीडिंग सेंटर) जाते थे, जहाँ वॉलंटियर्स तीन घंटे तक नेत्रहीनों को पढ़ते थे, इस तरह अपने पूरे सप्ताह की अध्ययन सामग्री को कवर करते थे और अपने असाइनमेंट लिखते थे।

1998 में चिदंबरम ने सामाजिक कार्य में मास्टर डिग्री की और वॉक-इन इंटरव्यू में भाग लेने के बाद दीपम एजुकेशन सोसाइटी फॉर हेल्थ (DESH) में नौकरी की। DESH के संस्थापक और अध्यक्ष सरस्वती शंकरन उनके लिये प्रोत्साहन के बड़े स्रोत थे और चिदंबरम की ज़िम्मेदारियों के साथ-साथ उनका वेतन भी लगातार बढ़ता गया। इन वर्षों में उन्होंने ग्रामीण विकास में पी.जी. डिप्लोमा, सामाजिक कार्य में एम.फिल, विशेष शिक्षा में बी.एड और अंत में पीएच.डी. प्राप्त की।

उनकी शैक्षणिक उपलब्धियों के साथ-साथ विकलांगता अधिकारों में उनकी सक्रिय भागीदारी थी। 2004 में उन्होंने 324 विकलांग व्यक्तियों (पीडब्ल्यूडी) की शैक्षिक योग्यता पर डेटा संकलित किया, जो उन्होंने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री को प्रस्तुत किया, जिसके परिणामस्वरूप भर्ती में प्रचलित रोक के बावजूद सभी 324 को सरकारी नौकरी मिली। 2005 में वे तिरुनेलवेली जिला विकलांग कल्याण कार्यालय में व्यावसायिक मार्गदर्शन अधिकारी के रूप में शामिल हुये। उनकी देखरेख में एक विकलांगता सर्वेक्षण किया गया, जिसके आधार पर उन्होंने जिले में पीडब्ल्यूडी की स्थिति पर एक रिपोर्ट संकलित और संपादित की और उसे मुख्यमंत्री को प्रस्तुत किया।

2006 में चेन्नई में, आम चुनाव से ठीक पहले, चिदंबरम ने विकलांग व्यक्तियों के संगठनों (डीपीओ) की एक विशाल रैली का नेतृत्व किया। उनकी मांगों ने प्रमुख राजनीतिक दलों के घोषणापत्र को प्रभावित किया और 2007 में सरकार ने पीडब्ल्यूडी के लिये रखरखाव अनुदान के साथ-साथ लाभार्थियों की संख्या में वृद्धि की।

अक्टूबर 2009 में उन्होंने पांडिचेरी विश्वविद्यालय में अपनी वर्तमान नौकरी में प्रवेश किया जहाँ वे एम.ए. मानवाधिकार पाठ्यक्रम पढ़ाते हैं। उन्होंने विकलांग छात्रों के लिये पूरी तरह से मुफ्त शिक्षा प्रदान करने के विश्वविद्यालय के कदम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, और वे विशेष ज़रूरतों वाले व्यक्तियों के लिये यूजीसी के उच्च शिक्षा के कार्यक्रम के समन्वयक हैं।

2004 में उन्होंने अपने जीवन साथी वाडिवुक्कारासी की तलाश की और पाया, जिनके पास वाणिज्य और पुस्तकालय विज्ञान दोनों में मास्टर्स डिग्री है। उनकी एक बेटी वर्षा (17) और बेटा सुभाषचंदर (12) है। डॉ. चिदंबरम, जिन्होंने अपनी पैरवी के लिये कई पुरस्कार और सम्मान जीते हैं, उनका उद्देश्य डीपीओ को एक आम छतरी के नीचे लाना है। वे बताते हैं, "अभी वे सीमित संसाधनों के साथ स्वतंत्र रूप से काम करते हैं।" "उन्हें एक संयुक्त विकलांगता मंच बनाना चाहिये।"


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विक्की रॉय